उदयपुर । श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में मंगलवार से पर्वाधिराज महापर्व पर्युषण का आगाज हुआ। ये आठ दिन तक चलेगा जिसमें धर्म-ध्यान, पूजा, पाठ, सामायिक, तप व तपस्या आदि की जाएगी। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के पर्युषण महापर्व के आरम्भ होने के साथ ही आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने पर्यूषण महापर्व की विशेष विवेचना करते हुए बताया कि प्रथम दिन हमें पांच कत्र्तव्य के बारे में जानना है। पर्युषण महापर्व प्रतिवर्ष की तरह नई उमंग, नई तरंग, नये विश्वास के साथ आत्म-जागृति का अनुपम संदेश लेकर उपस्थित है। आईये हम बाहर विषादों एवं विवादों को भूल कर अपने जीवन को करुणा एवं मैत्री मानी से सजायें, संवारे। यह महापर्व प्राणी मात्र को प्रेम का पैगाम बाँढना है, जीवन के सांज पर स्नेह की मधुरिम सरगम बजाता है, हृदय में प्रसन्नता के पुष्प खिलाता है तथा मन से कटुता के कालुष्य को काफूर करता है। अध्यात्म के आलोक में आज हम पाँच कर्तव्यों को जाना - अमाहि प्रवर्तन - यानि अहिंसा का प्रवर्तन, अहिंसा में अचूक शक्ति है, अहिंसा वह परम तत्त्व है जिसमे जीनमात्र के प्रति समता सद्भावना हो। साधर्मिक वात्सल्य यानि अहिंसा कर्म का पालन करने वाले साधर्मी हैा उनके प्रति आत्मीय भाव, सहयोग का भाव सौहाद्र्र का भाव हो। क्षमापना यानि क्रोध, मान, माया, लोभ रूपी कपायों के आदेश में किसी 1हमी अपने व्य प्रकार व्यवहार से त्रुटि हुई हो तो मन वचन काया से क्षमापना करनी। अहमतप यानि लगातार तीन दिन तक उपवास करना, यह लप कर्मों के कालुष्य को मिटाता है, आत्मा को पवित्र करता है। चैत्य परिपाटी यानि उमंग, उल्लास, मुद्धा विश्वास तथा आत्म शुद्धि के साथ अपने ग्राम-नगर के मंदिरों में जिनदर्शन पूजन भक्ति का लाभ दर्शन से पाप मिटते है, वन्दना से मनोकामना फलती है, पूजन से श्री सौभाग्य प्राप्त होता है। आयड़ जैन तीर्थ पर पर्युषण महापर्व के तहत प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।