उदयपुर । मात्स्यकी महाविद्यालय (एमपीयूएटी) में जैवविविधता दिवस का आयोजन ऑनलाइन किया गया। उल्लेखनीय है कि हर वर्ष 22 मई को दुनिया भर में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पृथ्वी की जैवविविधता पर व्यापक जागरूकता बढ़ाने एवं इसके संरक्षण पर अपने विचार साझा करने तथा संरक्षण हेतु विभिन्न कार्यक्रमों के संचालन हेतु इसका आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर मात्स्यकी महाविद्यालय मे शुक्रवार को एक विशेष संगोष्ठी का आयोजन दो सत्रों में किया गया। ऑनलाइन मीटिंग के प्रारम्भिक सत्र में मात्स्यकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. सुबोध शर्मा ने कोविड़ महामारी के दौरान जैवविविधता दिवस के ऑनलाइन आयोजन की सार्थकता बताते हुए कहा कि इस वर्ष जैवविविधता का विषय ‘‘हमारी समस्याओं का समाधान प्रकृति के पास है’’ रखा गया है। उन्हांने कहा कि इस थीम पर विश्व के जैव वैज्ञानिको एंव नीति निर्धारको ने जैवविविधता के कार्यक्रमों को प्राकृतिक समाधानो से जोड़कर देखा है जिससे हम प्राकृतिक रूप से प्रकृति के साथ एकरूपता एवं सांमजस्य के साथ जीना सीख सकें यह बात कोविड त्रासदि में और भी प्रभावशाली ढं़ग से अपनाये जाने की आवश्यकता है। इस अवसर पर विशिष्ट व्याख्यान देते हुए मात्स्यकी महाविद्यालय के पूर्व अधिष्ठाता एंव प्रख्यात पर्यावरण विद् प्रो. एल.एल. शर्मा ने भारत की समृद्ध जैवविविधता पर सारगर्भित जानकारी के साथ जलीय पर्यावरण की जैवविविधता एवं संरक्षण के विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं से प्रतिभगियों को अवगत कराया। उन्होने बताया कि प्रदेश के जलीय पर्यावरण एवं जैवविविधता के संरक्षण की महत्ती आवश्यकता है इसके लिए उन्होने मछली पालन, जलाशयों से मत्स्य प्रग्रहण एवं पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रमो के एकीकृत प्रबन्धन की बात कही। उन्होने कहा कि इसके लिए हमें नवीनतम तकनीकों जैसे जीन मैपिंग, डिजिटल टेक्नोलोजी एंव पर्यावरण हितेशी तकनीकों, ऊर्जा की मितव्यता के अनुपालन की आवश्यकता है साथ ही इस दिशा में निर्मित कानून एवं नीतियों को ईमानदारी और सख्ती से लागू करने की जरूरत है।
इस अवसर द्वितीय सत्र मे प्रतिभागियों मे से डॉ. बी.के. शर्मा, विभागाध्यक्ष जलकृषि विभाग ने जलाशयों मे स्थानीय मत्स्य प्रजातियों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु प्रमाणिकृत बीज संचयन की बात कही। मत्स्य संपदा प्रबन्धन विभागाध्यक्ष डॉ. एम.एल.ओझा ने स्थानीय जलजीव संपदा के संरक्षण हेतु उनके आनुवंशिकी अध्ययन एवं डेटा बेस बनाने की बात रखी। कंवरधा, छत्तीसगढ़ से जुड़े डॉ. निरंजन सांरग ने छत्तीसढ़ में किये जा रहे जैवविविधता संरक्षण एवं मत्स्य संपदा संरक्षण पर जानकारी दी। संगोष्ठी में यह बात उभरकर आई की प्रदेश के जलाशयों, नदियों एवं अन्य जलस्त्रोतों में पायी जाने वाली महत्वपूर्ण व स्थानीय मत्स्य संपदा एवं जैवविविधता के संरक्षण हेतु जलाशयों मे संचित किये जाने वाले मत्स्य बीज का सरकारी स्तर पर गुणवत्ता पूर्ण होना सुनिश्चित करने के लिए फिश सीड सर्टिफिकेशन की तुरन्त आवश्यकता है देखा जा रहा है की अधिक उत्पादन व राजस्व प्राप्ति के लिए जलाशयों मे तेजी से बढ़ने वाली एवं बहुप्रजनक मत्स्य प्रजातियों जैसे तिलापिया, बिगहैड़, थाईमागुर, दोगला, पंगास इत्यादि मछलियों को ज्यादा पाला जा रहा है। जिससे स्थानीय प्रजातियाँ विलुप्तप्रायः हो गई हैं, अतः इनके संरक्षण की नितांत आवश्यकता है।
इस ऑनलाइन संगोष्ठी में महाविद्यालय के फैकल्टी, डॉ. शाहिदा जयपुरी सहित देश के दूरदराज में स्थित पूर्व छात्रों, अन्यत्र सस्थानों की फैकल्टी, महाविद्यालय के अनेक छात्र-छात्राओं ने भाग लिया।