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गुजरात में आदिवासियों के आन्दोलन और जलियांवाला बाग से भी बड़े बारह सौ लोगों की बर्बर हत्या को दर्शायेंगी गुजरात की झाँकी*

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23 Jan 22
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 गुजरात में आदिवासियों के आन्दोलन और जलियांवाला बाग से भी बड़े बारह सौ लोगों की बर्बर हत्या को दर्शायेंगी गुजरात की झाँकी*

नई दिल्ली। इस वर्ष गणतंत्र दिवस परेड पर नई दिल्ली के राजपथ पर निकलने वाली गुजरात सरकार की झांकी में स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासियों के योगदान और शहीदों के बलिदान को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी गई है जिन्होंने 7 मार्च 1922 को गुजरात के साबरकांठा जिले के भील गांव पाल और दढ़वाव में हुए नरसंहार में अपना बलिदान दिया था। यें आदिवासी राजस्थान के मशहूर किसान नेता मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में भील गांव पाल,दढ़वाव और चितरिया गाँव के संगम के पास हेर नदी के किनारे राजस्व व्यवस्था और सामन्तों एवं रियासतों के कानून के विरोध में आंदोलन कर रहें थे। 

इस झाँकी के माध्यम से आज़ादी से पहलें ब्रिटिश सरकार द्वारा किए गए एक और नरसंहार की कहानी सबके  सामने लाई गई है।

 

उत्तर गुजरात के साबरकांठा जिले में हुई इस शहादत के बारे में कोई नहीं जानता, जहां लगभग 1200 लोग मारे गए थे और कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उनके घर भी जला कर तहस नहस कर दिए गए थे।

 

यह नरसंहार पंजाब के अमृतसर में हुए जलियांवाला बाग में  6 अप्रैल 1919 को हुए हत्याकांड से भी काफ़ी बड़ा था । जलियांवाला बाग में जनरल ड़ायर की अगुवाई में ब्रिटिश सैनिकों ने करीब 600 निहत्थे और बेक़सूर लोगों को मार डाला था। इसी तरह गुजरात में भी 1922 में एक ऐसा ही भीषण नरसंहार हुआ था जोकि जलियांवाला बाग से बड़ा था,लेकिन उसका विवरण कई वर्षों तक गुमनामी में रहा। 

 

गुजरात सूचना केन्द्र के जोईँट डॉयरेक्टर नीलेश शुक्ला ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए इस अनकही और भूली-बिसरी कहानी को दुनिया के सामने लाए थे । इतिहास के इस गौरवपूर्ण अध्याय से दुनिया अब तक अपरिचित थी जिसे प्रधानमंत्री ने फिर ने ताजा किया । गुजरात के पाल चितरिया गांव में बना “शहीद स्मृति वन” और “शहीद स्मारक” इस भीषण घटना के गवाह रूप में सबके सामने है।

 

यह दुर्घटना 7 मार्च, 1922 को हुई जब ब्रिटिश अधिकारी मेजर एच.जी. के नेतृत्व में अर्धसैनिक बल मेवाड़ भील कोर (एमबीसी) के ब्रिटिश सैनिकों ने गुजरात के पाल-दढ़वाव गांवों को घेर लिया और वहां रहने वाले लोगों पर गोलियां चलाईं और घरों में आग लगा दी, जिसमें लगभग 1200 लोग मारे गए और 640 घर जल कर राख हो गए।

किसान नेता मोतीलाल तेजावत को भी दो गोलियां लगी थी लेकिन स्थानीय लोग उन्हें बचा कर अन्यत्र ले जाने में सफल हुए।

 

उल्लेखनीय है कि राजस्थान और गुजरात की सीमाओं पर स्थित राजस्थान के बाँसवाड़ा ज़िले के मानगढ़ धाम पर भी ब्रिटिश अधिकारी कर्नल शटन ने जलियावाला बाग हत्याकांड से भी बड़ा नरसंहार किया था जिसमें करीब 1500 आदिवासी शहीद हुए थे।

 


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