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राष्ट्रीय कृषि विकास योजना अंतर्गत चित्तौड़गढ़ में सम्पन्न हुआ दो दिवसीय हल्दी प्रसंस्करण प्रशिक्षण कार्यक्रम

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17 Jul 25
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राष्ट्रीय कृषि विकास योजना अंतर्गत चित्तौड़गढ़ में सम्पन्न हुआ दो दिवसीय हल्दी प्रसंस्करण प्रशिक्षण कार्यक्रम

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के सामुदायिक एवं व्यावहारिक विज्ञान महाविद्यालय द्वारा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाय) के अंतर्गत संचालित परियोजना "मेवाड़ क्षेत्र की परंपरागत फसलों के प्रसंस्करणों का उत्कृष्टता केंद्र" के तहत चित्तौड़गढ़ में दो दिवसीय कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम का सफल आयोजन किया गया। इस प्रशिक्षण का मुख्य विषय “हल्दी प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन” था,
जिसका उद्देश्य प्रतिभागियों को हल्दी आधारित उत्पादों की व्यावसायिक संभावनाओं से अवगत कराना एवं उन्हें स्वरोजगार की दिशा में प्रेरित करना रहा। परियोजना की प्रमुख अन्वेषक डॉ. कमला महाजनी ने बताया की हल्दी की कृषि, औषधीय एवं पोषणात्मक है बताया कि हल्दी न केवल रसोई की आवश्यकता है, बल्कि यह एक
महत्वपूर्ण औषधि एवं आर्थिक रूप से लाभकारी फसल भी है महिलाओं के लिए हल्दी एक सशक्त माध्यम हो सकता है जिससे वे अपने घर पर ही मसालों, अचार, और अन्य उत्पादों का निर्माण कर एक सफल स्टार्टअप शुरू कर सकती हैं। इसके पश्चात, सुश्री योगिता पालीवाल द्वारा प्रायोगिक प्रशिक्षण का आयोजन किया गया जिसमें प्रतिभागियों को हल्दी से बने मूल्य संवर्धित उत्पादों जैसे हल्दी का अचार, चटनी, गरम मसाला, सांभर मसाला इत्यादि की निर्माण विधियों की विस्तृत जानकारी दी गई। प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और घरेलू स्तर पर व्यावसायिक दृष्टिकोण से इन उत्पादों के निर्माण की प्रक्रिया को सीखा। कार्यक्रम में डॉ. अंजली द्वारा उत्पादों की वैज्ञानिक पैकेजिंग, लेबलिंग और ब्रांडिंग के महत्व पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने बताया कि उचित पैकेजिंग उत्पाद की बाजार में पहचान, गुणवत्ता और बिक्री में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम ने ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं और किसानों को रोज़गार के नए अवसरों से जोड़ने की दिशा में एक सशक्त कदम सिद्ध किया। प्रशिक्षण के समापन पर प्रतिभागियों ने इस तरह के कार्यक्रमों को नियमित रूप से आयोजित करने की मांग की और धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम न केवल मेवाड़ की पारंपरिक फसलों के संरक्षण में सहायक सिद्ध होगा, बल्कि महिला स्वावलंबन और ग्रामीण उद्यमिता को भी एक नई दिशा प्रदान करेगा।


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