"सार्थक जीवन की राह" जयपुर की सुनामधन्य लेखिका डॉ. ऊषा गोयल द्वारा लिखित ऐसी पुस्तक है जो अच्छा और स्वस्थ जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है। यह पुस्तक उनका अपनी ही अनूठी शैली में लिखी गई है। यह निबंध, कहानी, प्रेरक प्रसंग सभी का मिश्रित रूप है। कहने और लिखने का निराला अंदाज़ है। पुस्तक के 11 अध्याय मनुष्य जीवन को कैसे जिए के संदेशों और उपायों पर आधारित है। अपने उद्देश्य और संदेश को पाठक के मन तक पहुंचाने के लिए हर अध्याय में प्रेरक कहानियों और महापुरुषों के उदाहरण से रोचक शैली में लिखा गया है। मुख्य विशेषता है कि भाषा सहज और सरल है। यथा संभव क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से बचा गया है।
आज के आपाधापी भरे जीवन में जब मनुष्य को सब के लिए समय है केवल अपने ही लिए समय नहीं है कि अवधारणा को लेकर लेखिका ने पाठक को प्रेरित किया है जीवन शैली में स्वयं पर ध्यान देने के लिए समय निकलें। जीवन अमूल्य है, मानव जीवन मिला है तो सद्कर्मों में लगा कर सार्थक करें, आगे मानव जीवन मिले या नहीं। पहले स्वास्थ्य निरोगी काया का मंत्र फूंकती पुस्तक कहती है निरोगी शरीर होगा तो ही अपने, समाज और देश के लिए कुछ कर पाओगे।
खास यह भी है कि लेखिका में अपने जीवन में खुली आंखों से जैसा देखा, अंतर्मन से महसूस किया उसी सत्य को उद्घाटित किया है। जीवनानुभूतियों को शब्दों की मणिमाला में बहुत ही सुंदरता से पिरो कर रोचकता से प्रस्तुत किया है। कह सकते है आज के कुंठाग्रस्त, तनाव, नकारात्मक, भौतिकवाद की अंधी दौड़ के माहौल में ऐसी सकारात्मक पुस्तक दीपक की लौ बन कर प्रकाश दिखाने के लिए अत्यंत उपयोगी पुस्तक है।
पुस्तक के अध्याय क्रमशः तन-मन रहें स्वस्थ-सुंदर, उत्तम गुण, कर्म और जीवन-शैली, अच्छे स्वप्न-लक्ष्य और सफलता के शिखर पर ,कठिनाइयों में संघर्ष और आगे बढ़ने का साहस, मानवीय सेवा से संतुष्टि व आनन्द , निर्बलता पर आत्मबल व परिश्रम से जीत आत्मनिर्भरता और स्वाभिमानता ,पारिवारिक सुख का मर्म , प्रकृति, सत्साहित्य और अन्य ललित कलाएँ, ज्ञान से बौद्धिक व आन्तरिक विकास एवं आध्यात्मिक व धार्मिक आस्था से ऊर्जा स्वयं ही इनकी विषय वस्तु का भान कराने को पर्याप्त हैं। हर शीर्षक अपनी अंतर्विषय वस्तु का स्वर है।
" स्वस्थ रहने के लिए महात्मा गाँधी का उदाहरण लें। वे शुद्ध शाकाहारी सात्विक आहार लेते थे और नियमित रूप से खुली हवा में टहलते थे। इससे उनका शरीर स्वस्थ बना रहा। वे मांस और मदिरा से दूर रहे। पानी और मिट्टी के उपचार से उन्होंने अपने और कुछ अन्य लोगों के कुछ रोग ठीक भी किए थे। उनका मानना था कि "शरीर में अनेक प्रकार के पाक और रसायन दूँसने से मनुष्य न सिर्फ अपने जीवन को छोटा कर लेता है बल्कि अपने मन पर काबू भी खो बैठता है। फलतः वह मनुष्यत्व गँवा देता है और शरीर का स्वामी रहने के बदले उसका गुलाम बन जाता है।" (आत्मकथा-गाँधी) ( पृष्ठ 24)
" यह भी देखने में आ रहा है कि कभी कभी घातक महत्त्वाकांक्षा, स्वार्थ-परकता और करियर की अंधाधुंध 'रेस' में भागते हुए, यहाँ तक कि एक-दूसरे को धकेलते, रौंदते हुए भी, आगे बढ़ने और हर हाल में, मानवता की भावना को छोड़कर भी, सफलता के उच्च शिखर पर पहुँचने की प्रवृत्ति व्यक्ति के स्वयं के तन-मन को अस्वस्थ करने के साथ ही मानवीय मूल्यों का भी पतन करती जा रही है।"(पृष्ठ 32)
" सबके लिए न्याय' डॉ. अब्दुल कलाम का सिद्धान्त था। वे निष्पक्ष भाव से काम करते थे। अपने नजदीकी लोगों को व्यक्तिगत सम्बन्धों के कारण कोई फायदा नहीं उठाने देते थे। उन्होंने अपने भतीजे के लिए कोई पैरवी करने से इन्कार कर दिया फलस्वरूप उसे नौकरी नहीं मिली। इसके लिए उन्हें कोई पछतावा नहीं हुआ अपितु उन्होंने कहा कि किसी योग्य लड़के को नौकरी मिलने से वे खुश हैं। वे सिफारिश करना पसन्द नहीं करते थे, योग्यता के आधार पर मूल्यांकन चाहते थे, किसी के द्वारा बेईमानी या छल करने पर क्रोधित हो जाते थे। वे किसी को भी अपने निजी स्वार्थों या लाभों के लिए अपने नाम और प्रतिष्ठा का दुरुपयोग नहीं करने देते थे, इस विषय में बहुत सचेत रहते थे।" ( पृष्ठ 41)
" योग्यता और रुचि के अनुसार व्यक्ति निश्चित करे कि वह क्या बनना चाहता है-विद्वान लेखक, साहित्यकार, कलाकार, प्रबुद्ध अध्यापक, प्रशिक्षित इंजीनियर, दक्ष वैज्ञानिक, चार्टर्ड अकाउंटेन्ट, सेवाभावी डॉक्टर, सफल उद्योगपति-व्यवसायी, प्रतिष्ठित पत्रकार, निपुण अर्थशास्त्री, प्रतिभावान वकील, लोकप्रिय राजनेता या कुशल गृहिणी आदि। लक्ष्य को पाने के लिए पूरे मन से, निष्ठा व समर्पण से, एकाग्रचित्त होकर, अथक परिश्रम करने से सफलता मिलती है। कर्मठ व्यक्ति वह होता है जो विफलता ने सीखकर साहस पूर्वक सफलता की ओर बढ़ता है। किसी ने सही कहा है- ( पृष्ठ 42 )
" होकर मायूस न यूँ गुमसुम बैठिये / रात के अंधेरे में चाँद-से चमकिये / ज़िन्दगी में फिर सुखद सुबह होती है / सूरज की तरह उजाला फैलाते रहिये / ठहरोगे एक पाँव पर तो थक जाओगे / धीरे-धीरे ही सही मगर कदम बढ़ाइये / लक्ष्य की ओर हिम्मत से चलते रहिये।"
" वस्तुतः जीवन परिवर्तनशील है, यहाँ सदा एक-सी स्थिति नहीं रहती। दुख-सुख, पतन-उत्थान, निराशा-आशा, शोक-हर्ष का क्रम चलता रहता है। हमारी परीक्षा तब होती है जब दुःख व कठिनाइयाँ आती हैं। सफलता इस पर निर्भर करती है कि हम कितना आत्मविश्वास व साहस रखकर मेहनत से आगे बढ़ते रहते हैं।
कवि सोहनलाल द्विवेदी के ये शब्द संघर्ष में प्रयासरत रहने की प्रेरणा देते हैं। ( पृष्ठ 56)
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती / कोशिश करने वालों की हार नहीं होती / असफलता एक चुनौती है/ स्वीकार करो क्या कमी रह गई?/ देखो और सुधार करो / जब तक न सफल हो / नींद-चैन को त्यागो तुम / संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम / कुछ किए बिना ही जय-जयकार नहीं होती।
" सुधा ने हौसला रखकर कृत्रिम पैर के साथ नृत्य कला का अभ्यास किया। इसमें उन्हें बहुत पीड़ा होती थी। लेकिन हिम्मत और परिश्रम से उन्होंने स्टेज पर नृत्य के उत्कृष्ट प्रदर्शन किए। उन्हें बहुत सराहना मिली। उनके जीवन पर बनी 'नाचे मयूरी' नामक हिन्दी फिल्म लोकप्रिय हुई। उन्हें 'राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। उन्होंने अनेक फिल्मों व हिन्दी सीरियल्स में काम किए। उन्होंने सफल नृत्यांगना बनने का अपना सपना पूरा किया। उनका साहस, अटूट लगन और कठोर परिश्रम से परिपूर्ण जीवन प्रेरणादायक है।"( पृष्ठ 90 )
जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण से जीने के ये कतिपय उदाहरण पुस्तक की समग्रता का द्योतक हैं। पुस्तक की प्रस्तावना डॉ. नरेंद्र शर्मा ' कुसुम ' ने लिखते हुए कहा है, " पुस्तक का कथ्य और शिल्प दोनों ही बहुत प्रभावी हैं। दोनों में कुछ भी असंगत नहीं। लेखिका का व्यक्त, अव्यक्त प्रच्छन्न उद्देश्य सकारात्मक जीवन दृष्टि के निर्माण के द्वारा अभीष्ट सफलताओं के द्वार उद्घाटित करना है। आज के नकारात्मक, कुंठाग्रस्त, माहौल में ऐसी प्राणदायिनी, आशा-विश्वास प्रसविनी पुस्तक की बहुत जरूरत है। यह उपदेशों का महज एक 'मैन्युल' नहीं है, अपितु एक श्रेष्ठ साहित्यिक सर्जनात्मक कृति है जिसे पढ़कर पाठकगण ऊर्जस्वित होकर अपने-अपने आदत्त/प्रदत्त दायित्वों को संपूर्ण उत्साह और कर्त्तव्य बोध की भावना से सम्पन्न करेंगे। मुझे पूर्ण विश्वास है कि डॉ. उषा गोयल की यह पुस्तक अवश्य ही विदग्ध विद्वानों और सुधी पाठकों में लोकप्रियता अर्जित करेगी।"
लेखिका अपने निवेदन में लिखती है, "मधुबन' जैसा सुन्दर उपवन में पतझड़ में यदि फूल-पत्ते झड़ जाते हैं तो बसन्त में वह नए-नए खिला देता है। अपने रंगीन पुष्पों-फलों से भरे वृक्षों से सुगंधित करता हुआ वह मधुरता, प्रसन्नता व जीवनी शक्ति देता है, उसी प्रकार सार्थक जीवन भी दुःख-सुख के बीच रहता हुआ, अनेक कष्ट सहता हुआ भी, महकता रहकर खुशियाँ व शक्ति देता है। प्रस्तुत पुस्तक 'सार्थक जीवन की राह पर' में जीवन को बेहतर, आनंदित और सार्थक बनाने के लिए विचारों का विवेचन है। इन्हें अपने आचरण में कैसे अपनाएँ जाएँ? इसके लिए उदाहरण के रूप में अनेक समर्थ व्यक्तियों के जीवन-चरित्र के पहलू, प्रेरक प्रसंग और भाव-प्रवण कथाएँ दी गई हैं जो मानवता को प्रशस्त करने की दिशा में प्रेरणादायक हैं। प्रकृति का सान्निध्य और सत्साहित्य का अध्ययन व ललित कलाओं का रसास्वादन संवेदनशीलता से समन्वित करता है।"