धर्म जाति भाषा में उलझी वसुधा को एकत्व दिखा दो / वर्ग भेद और रंगभेद को भूतल से तत्काल भगा दो / दिशाहीन जलयान जगत को दिशासूचक सा यन्त्र चाहिये / सदा बिलखती मानवता का ओम शांति का मन्त्र चाहिये / भ्रमित भटकती इस जनता को भारत एक अखण्ड चाहिये /मौन मूक कोमल अधरों को थोड़ा सा कम्पन चाहिये ।
" सदा बिलखती मानवता को ओम शांति का मंत्र चाहिए " ( पृष्ठ 41 ) मानवता का संदेश देती कविता " थोड़ा सा कम्पन चाहिए " कवि के अंतर्मन के भावों का ऐसा प्रफुट्टन है जिसमें समस्त मानवता के भलाई के स्वर गूंजते हैं। पिछले दिनों कोटा के एक कार्यक्रम में हाड़ोती के इस कवि को सम्मानित किए जाने के अवसर पर मिलना हुआ तब इनके प्रकाशित प्रथम काव्य संग्रह " सप्त सुरभि " की प्रति इन्होंने मुझे भेंट की।
उम्र की परिपक्व वय संधि काल में आई इस कृति में जीवन के अनुभवों और सृजन की कविताएं सभी रसों का आश्वादन कराती हैं। कविताएं मानवता की बात करती हैं तो अध्यात्म और भक्ति रस भी घोलती हैं, राष्ट्र प्रेम के स्वर भी मुखरित हैं, वीर,करुण रस के साथ शृंगार का माधुर्य भी हैं, प्रकृति की सुंदरता के साथ पर्यावरण के संदेश देती कविताएं भी हैं। इन प्रमुख रसों के साथ विविध भावों की रचनाएं भी कोई न कोई संदेश देती दिखाई देती हैं।
मानवता को निष्काम कर्म योग से सन्निहित कर " गीता जान जरूरी है " कविता में लिखते हैं ( पृष्ठ 38 )..........
मानव जब निराश हो जाता, जीवन में लड़ते लड़ते / गीता का हर श्लोक जगाता साहस जीवन में बढ़ते बढ़ते / कर्मवाद की शिक्षा देती निष्काम भाव से करने की / अधिकारों से दूर रहे हम कर्तव्यों से जीने की / मृत्युभय से दूर हटाती आत्म अमरता बताती / सब प्राणी समत्व भाव का पाठ हमें यह सिखलाती।
कर्मवाद को राष्ट्र प्रेम की भावनाओं से जोड़ कर देखते हैं तो " हिंदुस्तान दर्शन " कविता के स्वर यूं उभर कर आते हैं( पृष्ठ 39 )......
" कहीं जौहर की शान कहीं बलिदान देखता हूँ / केसर की घाटी और रेगिस्तान देखता हूँ /जलियां वाला को मैं लहुलुहान देखता हूँ/ वन्देमातरम् जन गण मन अभिमान देखता हूँ / सियाचीन ग्लेशियर पर तैनात जवान देखता हूँ / मैं हर खिलते मुखड़े की मुस्कान देखता हूँ/ ऐसे ही मैं सारा हिन्दुस्तान देखता हूँ।"
देशभक्ति भाव से प्रेरित कविताएं भारत माता, जागो फिर एक बार, मेरा मन तिरंगे को, हिंदी का उत्कर्ष, ऐसे राजस्थान में, कारगिल के शिफॉन को समर्पित देश प्रेम की भावना जगती हैं। एक युवा के देश प्रेम की बलवती भावना का जोश जागते हैं " अभिलाषा " कविता के ये स्वर ( पृष्ठ 46 )...............
" हे माता ! विश्वास करो तुम देश का मान बढ़ाऊँगा / पुर्जा - पुर्जा कट जाऊँगा पर झण्डा नहीं झुकाऊंगा / फोलादी सीना लेकर के में सीमा पर जाऊँगा / दूध पिलाया है जो तू ने उसकी लाज बचाऊँगा / चन्दन भारत माँ की माटी उसकी पूजा कर लूँगा / शत्रु से लोहा लेने को माता मुझको जाने दे / वहीं मिलेगी शांति मुझे माँ वहीं प्रफुल्लित मन होगा / माँ का ऋण भी वहीं चुकेगा वहीं रक्त तर्पण होगा / मां मुझको भी जान लुटाने / अब सीमा पर जाने दे ।"
देश भक्ति के भावों के साथ - साथ मानभंग, रिश्ते, नारी जीवन, बारहमासी, महाराणा प्रताप का रन कौशल, किसान करुण कथा और जिंदगी में मुखर हैं वीर और करुण रस के स्वर। इसी शृंखला की " कलम क्रांति "
कविता हमें अपने उत्तरदायित्व का बोध कराती हैं ( पृष्ठ 64 - 65 )..........
"अब नया सवेरा लाना है सोये को शीघ्र जगाना है / तूफानों से टकराना है अब रुढ़िवाद मिटाना है / अब गीत सृजन के गाना है कलम क्रान्ति हमको लाना है / शोषण से सबको मुक्ति मिले गीता से सबको शक्ति मिले / सबको ही न्याय दिलाना हे कलम क्रान्ति हमको लाना है।"
शृंगार माधुर्य का भाव भी इनके मन में हिलोरे लेता है। कवि कोई भी हो शृंगार पर अमूमन सभी लिखते हैं। प्रतीक्षा, मैं कोई कविता लिख दूं, चांद गीत, महाकवि कालिदास के प्रति, आज फिर कुछ गाने दे और बात बने - ग़ज़ल इसी ही रचनाएं हैं जिनमें शृंगार भाव ही प्रबलता से शब्दों में पिरोया गया है। " प्रेमोत्सर्ग" सृजन के भाव देखिए ( पृष्ठ 90)....
" प्रीत में मारा गया ऐसा भ्रमर हूँ / मैं नृत्य में तोड़ा गया ऐसा नुपुर हूँ मैं / चलता हुआ उलझ गया कमल प्रसून से / यौवन भरी कलि का प्यारा जिगर हूँ मैं / वायु के रुख को देखकर निकल पड़ा था / मैं तट बन्ध से टकरा गया ऐसी लहर हूँ मैं / मधुमास की मादक पवन मुझको रीझा गई / दीपक शिखा पर मर गया ऐसा शलभ हूँ मैं / करता रहा प्रतिक्षा रातों में जागकर / उषा तेरी प्रभा का प्रथम प्रहर हूँ मैं ।/ पाती लिखी थी मैंने सिन्दूरी मांग से / बिछुड़े हुए नगर का उजड़ा चमन हूँ मैं / मैं तो फंस गया हूँ कोमल कलि में आकर / मजबूरियों का मारा मादक मधुप हूँ मैं / आवारा बन गया हूँ तेरी याद में ऐ प्रियतम / शान्तेय जी रहा हूँ पर बेखबर हूँ मैं ।"
कविताओं में मौसम और प्रकृति की चर्चा न हो कैसे संभव है। प्रकृति से मुलाकात, और बसंत आ गया, मधुमास, एक निर्झर, संतुलन बिगड़ गया, वृक्ष हमारे परम मित्र हैं जैसी कविताओं के मध्य "मेघ (बादल) आषाढ़ के बादल" की ये पंक्तियां देखिए ( पृष्ठ 60 )......
" लो मोती लुटाने आ गये आषाढ़ के बादल / शीतल जल गिराने आ गये आषाढ़ के बादल / रवि की प्रखरता से अब यहाँ व्याकुल हुए प्राणी / तपन भू की मिटाने आ गये आषाढ़ के बादल / सूखे सर, तलैया ताल वापी कूप, सरितायें / उन्हे परिपूर्ण करने आ गये आषाढ़ के बादल / अनावृत थी रत्न गर्भा शुष्कता व्यापी / हरी चुनर ओढ़ाने आ गये आषाढ़ के बादल / प्रतिक्षारत खड़े हलधर कब जलधार बरसेगी / उनके सपने संजोने आ गये आषाढ़ के बादल / पपीहा मोर, चातक रट लगाये कब से बैठे हैं / अगन उनकी बुझाने आ गये आबाढ़ के बादल / पलक कब से बिछाए नव वधु द्वार पर बैठी / पावस आएगी तो प्रियतम पास आयेंगे /मुझे उत्संग में लेकर झूला वे झुलायेंगे / झूले डालने फिर आ गये आबाढ़ के बादल / लो फिर मोती लुटाने आ गये आषाढ़ के बादल ।"
भक्ति रस और आध्यात्म की खुशबू लिए देव - देवियों की रचनाओं के साथ अन्य सृजन में देखिए " हमारी बेटिया " कविता के ये खूबसूरत भाव ( पृष्ठ 112)........
"कलियाँ है ये गुलशन की इन्हें यों ही न कुचलो/ बगिया की है बहार ये हमारी बेटियाँ / दुर्गा का जो अवतार है हमारी बेटियाँ / भगवान का उपहार है हमारी बेटियाँ /रोशन करेगी घर को ये हमारी बेटियाँ / पढ़ने दो इन्हें तुम, बढ़ने दो इन्हें तुम / परिवार की पतवार है हमारी बेटियाँ / मत समझो कि उधार है हमारी बेटियां / परिवार का श्रृंगार है हमारी बेटियाँ ।"
आनंद, खुशी, प्रेरणा, अनुभव की अनुभूति करती रचनाओं के बारे कवि आत्म निवेदन में लिखते हैं , " मैंने रस पाठ को ही जीवन का माध्यम बनाया, सूर,तुलसी, मीरा, मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, छायावादी कवि, रीतिकालीन कवि, हरिवंश राय बच्चन और श्याम नारायण पांडे की रचनाओं से अभिभूत रहा हूं "। संपादकीय में सुरेश निगम लिखते हैं,
" 'शान्तेय' जी की यह कृति 'सप्त सुरभि पाठक को राष्ट्रभक्ति, भारतीय संस्कृति - साहित्य, सेवा, त्याग, समर्पण, बलिदान है मानवीय संवेदनाओं, जीवन मूल्यों, आदर्शों की प्रेरणा देकर स्वर्णिम भविष्य। सृजन में सहायक होगी "। भूमिका में डॉ. साधना गुप्ता लिखती हैं, " इस संग्रह की सभी कविताएं भारतीय सांस्कृतिक धरातल पर वैविध मय एकत्व को दर्शाते हुए जीवन के संघर्षो के मध्य परिस्थितियों को सही रूप में समझकर सही तरीके से सुलझाने के लिए एक सकारात्मक चिंतन विकसित करने का प्रयास है"। शुभकामना संदेश में प्रकाश सोनी ' यौवन ' लिखते है, " इनके साहित्य की भाषा एवं शब्द सौष्ठव, सरल, सहजग्राह्य एवं अनुकरणीय भावप्रवणता, सहजप्रवाह, मार्मिकता, सामाजिक सरोक प्रासंगिकता एवं चेतना उनके साहित्य का अप्रतिम वैभव है। " यह पुस्तक इन्होंने सोने माता - पिता के चरणों में समर्पित की है। पुस्तक के 119 पृष्ठों में 72 कविताओं का सतरंगी गुलदस्ता विभिन्न भावों, रसों और खुशबुओं से महकता , पाठक को पढ़ने के लिए प्रेरित करता हैं।रंगबिरंगे फूलों से सजा आवरण पृष्ठ अच्छा है।