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सत्याग्रह से ‘जय जवान–जय किसान’ तक : भारतीय चिंतन की यात्रा

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04 Oct 25
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सत्याग्रह से ‘जय जवान–जय किसान’ तक : भारतीय चिंतन की यात्रा

राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय, कोटा में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती अवसर पर विचार गोष्ठी का भव्य आयोजन हुआ। गोष्ठी का विषय था – “सत्याग्रह से ‘जय जवान–जय किसान’ तक : भारतीय चिंतन की यात्रा। कार्यक्रम की अध्यक्षता निर्मल कुमार जैन (सेवानिवृत्त लेखाधिकारी) ने की। मुख्य अतिथि परमानंद गोयल (राजस्व सलाहकार, कोटा विकास प्राधिकरण) तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में नाइजीरियन लाइब्रेरी प्रोफेशनल्स इसिका चिक्का एवं हुसैनी मूसा उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन रामनिवास धाकड़ (परामर्शदाता) ने तथा प्रबंधन रोहित नामा और अजय सक्सेना ने किया।

इस अवसर पर हाल ही में लोकार्पित परमानंद गोयल की पुस्तक “विचारों की उड़ान : जीवन आपका, नजरिया आपका और दृष्टिकोण भी आपका” पर भी विमर्श हुआ। कार्यक्रम के उदघाटन सत्र मे डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव संभागीय पुस्तकालय अध्यक्ष ने कहा - “पुस्तकालय केवल पुस्तकों का घर नहीं, बल्कि विचारों का जीता-जागता मंच है। गांधी और शास्त्री का चिंतन हमें नैतिकता, श्रम और आत्मनिर्भरता का संदेश देता है, जिसे नई पीढ़ी तक पहुँचाना हम सबकी जिम्मेदारी है।”

इस अवसर पर गोयल ने कहा -“विचार ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति हैं, जो परिस्थितियों और दिशा दोनों को बदल सकते हैं। मेरा उद्देश्य किसी को उपदेश देना नहीं, बल्कि पाठक को साथी बनाकर विचारों की यात्रा में आमंत्रित करना है। आज की थीम ‘सत्याग्रह से जय जवान–जय किसान तक’ यही सिखाती है कि गांधीजी के सत्य और अहिंसा से लेकर शास्त्रीजी के सादगी व स्वावलंबन तक, भारत की असली ताकत विचारों की शक्ति ही है।”

निर्मल कुमार जैन ने कहा – “गांधी और शास्त्री दोनों ही आदर्श नेतृत्व और नैतिक मूल्यों के प्रतीक हैं। उनकी सादगी, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और परिश्रम से प्रेरणा लेकर हम समाज को सही दिशा दे सकते हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि इन मूल्यों को अपने जीवन और कार्यसंस्कृति में उतारकर आने वाली पीढ़ी को मार्गदर्शन दिया जाए।इसिका चिक्का (नाइजीरिया) ने कहा -“गांधी का सत्य और शास्त्रीजी का ‘जय जवान-जय किसान’ केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत हैं। पुस्तकालय इन विचारों को जीवित रखने का सशक्त मंच है। हुसैनी मूसा (नाइजीरिया) ने कहा-“मैं भारत की इस महान परंपरा से प्रभावित हूँ। गांधीजी की अहिंसा और शास्त्रीजी का किसान व जवान के प्रति सम्मान आज भी वैश्विक समाज में प्रासंगिक है।”

गोष्ठी में बड़ी संख्या में विद्यार्थी, पुस्तकालय उपयोगकर्ता, वरिष्ठ नागरिक, अध्यापक एवं युवा शोधार्थी मौजूद रहे। पाठकों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ शिक्षक सुधीर मेहरा ने विषय को अत्यंत प्रेरक बताते हुए कहा कि -“ऐसे आयोजन हमें केवल इतिहास से नहीं जोड़ते, बल्कि वर्तमान और भविष्य की दिशा भी दिखाते हैं। गांधीजी और शास्त्रीजी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके जीवनकाल में थे। कुछ पाठकों ने यह भी कहा कि पुस्तकालय द्वारा ऐसे आयोजन नई पीढ़ी को विचारों की शक्ति से जोड़ने का सराहनीय प्रयास है। गोष्ठी में बड़ी संख्या में विद्यार्थी, शोधार्थी, वरिष्ठ नागरिक और पुस्तकालय उपयोगकर्ता मौजूद रहे। उन्होंने उत्साहपूर्वक चर्चा में भाग लिया और अपने विचार साझा किए।

अधिवक्ता नरेंद्र शर्मा ने कहा - “हम किताबों में गांधी और शास्त्री के बारे में पढ़ते हैं, लेकिन ऐसी गोष्ठियों से हमें उनके विचारों को गहराई से समझने का अवसर मिलता है।” वही छात्र जीतू मीणा ने कहा कि - आज के युवा वर्ग के लिए गांधी का सत्य और शास्त्री का ‘जय जवान–जय किसान’ मार्गदर्शक बन सकता है। पुस्तकालय इस दिशा में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। गीतांजलि मेडीकल कॉलेज जयपुर के ग्रंथलयी मधुसूधन चौधरी ने कहा -“हमने बचपन में इन आदर्शों को जीया है। आज जब इन्हें पुस्तकालय की चौखट से नई पीढ़ी तक पहुँचते देखता हूँ, तो संतोष होता है कि परंपरा जीवित है।”

 

 


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