जग से न्यार न्यारा राजस्थान हमारा

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27 Mar 22
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जग से न्यार न्यारा राजस्थान हमारा

पर्यटकों के स्वर्ग के रूप में विश्व विख्यात राजस्थान में भारत आने वाला  पर्यटक राजस्थान की यात्रा करना अपना सौभाग्य समझता है। वीरों की रणभूमि, मनीषियों व सन्तों की तपोभूमि, बलिदानकर्ताओं की कर्मभूमि,मनोहारी रेगिस्तान, विशाल किले, सुन्दर महल, जैविक विविधता, समृद्ध लोक कला, आकर्षक हस्तशिल्प, रंग-बिरंगे साफे और पगड़ियाँ बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। विश्व पर्यटन में खास स्थान रखने वाले राजस्थान निर्माण के वर्ष  2022 में तिहतर साल पूरे होने पर जानते है पर्यटन की विशेषताओं को। 

इतिहास 

राजस्थान विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक सिन्धु घाटी सभ्यता का पालना स्थल रहा है। कालीबंगा, पीलीबंगा आदि स्थानों पर लगभग 5000 वर्ष पुरानी सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रामाणिक अवशेष मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता के सप्त सैंधव प्रदेश की प्रमुख नदी सरस्वती वैदिक युग में राजस्थान प्रदेश में बहती थी। यह अब लुप्त हो गई है और इसका कुछ भाग घग्धर नदी के नाम से हनुमानगढ़ तथा गंगानगर जिलों में प्रवाहित होता है। प्राचीन काल में प्रसिद्ध विश्व यात्री चीन का ह्नेनसांग सातवीं सदी में अपनी भारत यात्रा के दौरान राजस्थान भी आया था। उसने जालौर स्थित भीनमाल का विस्तृत विवरण अपनी पुस्तक सी-यू-की में दिया है। विश्व प्रसिद्ध तराईन के दोनों युद्ध 1191 ई. व 1192 में अन्तिम हिन्दू सम्राट दिल्ली अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान एवं पश्चिम एशिया के आक्रान्ता मोहम्मद गौरी के बीच लडे़ गये थे। उल्लेखनीय है कि श्रीलंका के शासक गंधर्वसेन की पुत्री पद्मिनी विश्व की सुन्दरतम स्त्रियों में से एक थी, जिसका विवाह चित्तौड़  के शासक रतनसिंह से हुआ था। राजसमन्द झील के किनारे स्थित “राजसिंह प्रशरित” जो संगमरमर के 25 शिलालेखों पर उत्कीर्ण है विश्व की सबसे बड़ी प्रशस्ति मानी जाती है। यह मेवाड़ के इतिहास का सबसे प्रमुख स्त्रोत है। इंग्लैण्ड के सम्राट जेम्स प्रथम का राजदूत सर टॉमस रो 1616़ ई. में अजमेर स्थित अकबर किले में मुगल सम्राट जहांगीर से मिला था। इस महत्वपूर्ण भेंट को भारत में अंग्रेजी व्यापारिक हितों की शुरूआत मानी जाती है। राजस्थान की राजपूत वीरांगनाओं द्वारा आक्रान्ताओं से अपनी अस्मिता की रक्षा हेतु किये गये जौहर विश्व के इतिहास के एकमात्र द्दष्टांत हैं। इसमें पद्मिनी और कर्मावती के जौहर विशेष रूप विख्यात हैं। जयपुर के जयगढ़ किले में स्थित जयबाण तोप पहियों पर रखी हुई विश्व की सबसे बड़ी तोप के रूप में प्रसिद्ध है।

भूगोल

राजस्थान का वृहद थार मरूस्थल विश्व का सबसे युवा और सर्वाधिक आबाद रेगिस्तान है। इस मरूस्थल का निर्माण विश्व के प्राचीनतम टैथिस सागर से हुआ है। जैसलमेर के निकट स्थित सम रेत के धोरे विश्व भर के पर्यटकों के लिये प्रमुख आकर्षण हैं।राज्य के मध्य में उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तक फैली अरावली की पर्वत श्रृंखलायें विश्व की प्राचीनतम श्रृंखलायें मानी जाती हैं। इन पर्वतों और हाड़ोती के पठार का निर्माण विश्व के प्राचीनतम भूखण्ड गोंडवाना लैण्ड से हुआ है। उदयपुर जिले की जयसमन्द झील विश्व की सर्वाधिक बड़ी मानव निर्मित झीलों में से एक है और एशिया की कृत्रिम झीलों में दूसरा स्थान रखती है। विश्व में कपास की खेती के सर्व प्रथम साक्ष्य हनुमानगढ़ जिले में कालीबंगा से प्राप्त हुए हैं। कहा जाता है कि यहाँ जुते हुये खेतों के साक्ष्य विश्व में खेती के प्राचीनतम प्रमाण हैं।

धर्म और आध्यात्म 

अजमेर के निकट पुष्कर राज में स्थित ब्रह्माजी का मन्दिर विश्व का एकमात्र मन्दिर है जहाँ इनकी विधिवत् पूजा होती है। पाली जिले के रणकपुर में स्थित चौमुखा आदिनाथ जैन मन्दिर विश्वविख्यात है। अजमेर स्थित विश्वविख्यात सूफी सन्त ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह समूचे विश्व में इस्लामिक आस्था के साथ - साथ सभी की आस्था के प्रमुखतम केन्द्रों में है और इसका स्थान मक्का मदीना के बाद आता है।  नागौर जिले में मेड़ता के निकट कुड़की गांव की राजकुमारी मीरा बाई को कृष्ण भक्ति के लिये पूरे देश में जाना जाता है। दादू पंथ के प्रवर्तक दादूदयाल की कर्मस्थली राजस्थान रहा और उनकी समाधि जयपुर के निकट नारायणा नामक स्थान पर स्थित है। भारत का एकमात्र विभीषण मन्दिर कोटा के निकट कैथून कस्बे में स्थित है। 

पौराणिक कथायें एवं किवदंतियां

लोक मान्यता है कि भगवान राम के परित्याग के बाद सीता ने अपने निर्वासित जीवन का कुछ समय बारां जिले के केलवाड़ा में स्थित वाल्मिकी आश्रम में व्यतीत किया था। यहाँ स्थित सीताकुंड का सम्बन्ध सीता से जोड़ा जाता है। पौराणिक कथाओं से पता चलता है कि आबू पर्वत पर भगवान रामचन्द्रजी के गुरू वशिष्ठ का आश्रम था। यह भी किवदंती है कि कोटा के जंगलों में भगवान परशुराम ने तपस्या की थी। एक किवदंती के अनुसार जिला टौंक के बीसलपुर में स्थित शिव मन्दिर में रावण ने अपने दस शीष भगवान महादेव पर अर्पित किये थे। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार जयपुर के निकट आधुनिक बैराठ महाभारतकालीन मत्स्य जनपद की राजधानी था जहाँ पाण्डवों ने अज्ञातवास का एक वर्ष व्यतीत किया था। किवदंतियों के अनुसार अलवर के निकट पाण्डुपोल का निर्माण भीम की गदा से हुआ था तथा यहाँ पाण्डवों ने कुछ समय व्यतीत किया था। सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनि का आश्रम बीकानेर जिले में कोलायत झील के किनारे स्थित है।

पर्यटक 

सवाई माधोपुर के रणथम्भौर का बाघ अभयारण्य समूचे विश्व के सैलानियों में लोकप्रिय है। विश्व में पिंकसिटी के रूप में विख्यात जयपुर विश्व के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है। यहाँ का हवामहल विदेशी सैलानियों में बहुत लोकप्रिय है। जोधपुर का छीतर महल विश्व का सबसे बड़ा रिहायशी महल है जिसमें 300 से भी अधिक रहने के कमरे हैं। चित्तौड़गढ़ का किला विश्व के विशालतम पहाड़ी दुगों में से एक है। झीलों की नगरी उदयपुर विश्व में पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। यहाँ का लेक पैलेस अन्तर्राष्ट्रीय सैलानियों के सर्वाधिक लोकप्रिय होटलों में से एक है। भरतपुर का केवलादेव पक्षी अभयारण्य वर्ल्ड हैरिटेज साइट के रूप में मान्य एवं विश्वविख्यात है जहाँ साईबेरियन क्रेन्स शीतकालीन प्रवास के लिये आते हैं। पुष्कर का पशुमेला विदेशी सैलानियों में सर्वाधिक लोकप्रिय है। जयपुर जिले की सांभर झील के पारिस्थतिकी तंत्र (ईको सिस्टम) को भी वर्ल्ड हैरिटेज साइट के रूप में मान्यता दी गई है। शेखावाटी क्षेत्र के भित्ति चित्र श्रेष्ठता व बहुलता के कारण विश्व भर में ओपन आर्ट गैलरी के रूप में प्रसिद्ध हैं। राजस्थान की शाही रेलगाड़ी “पैलेस ऑन व्हील्स” और भाप से चालित “फेरीक्वीन एक्सप्रेस” विदेशी सैलानियों में सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। जयपुर का हाथी उत्सव, बीकानेर का ऊँट उत्सव व जैसलमेर का मरू उत्सव पर्यटकों में बहुत लोकप्रिय है। राजस्थान का घूमर नृत्य, चकरी नृत्य, अग्नि नृत्य, चरी नृत्य, गवरी नृत्य देश भर में विख्यात है। राजस्थान के लोकवाद्य रावण हत्था, मोरचंग, भपंग, खड़ताल, अलगोजा आदि राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हैं। राजस्थान के राजपूत शासकों की छतरियां स्थापत्य की दृष्टि से पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। बून्दी व टोंक जिलों की बावड़ियां पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। लोकदेवताओं में सर्पाें के लोकदेवता तेजाजी, ऊँटों के लोकदेवता पाबूजी, व पिछड़ी जातियों के रामदेवजी राजस्थान के पड़ौसी राज्यों में भी लोकप्रिय हैं।

वन और वन्य जीव

 राजस्थान में मिलने वाले गोड़ावण, चौसिंघा और उड़न गिलहरी विश्व विख्यात हैं। जैसलमेर स्थित “आंकल वुड फोसिल्स पार्क” विश्व के प्राचीनतम जीवाश्म को संरक्षित किये हुए है। रेगिस्तान का जहाज कहलाने वाले पशु ऊँट की विश्व की श्रेष्ठतम नस्लें राजस्थान में मिलती हैं। जोधपुर जिले के खेजड़ली गाँव में अमृतादेवी के नेतृत्व में 363 व्यक्तियों ने खेजड़ी वृक्षों को कटने से बचाने के लिये अपने प्राण न्यौछावर किये थे। इस घटना को विश्व का सर्वप्रथम वृक्ष बचाओं चिपको आन्दोलन माना जाता है। इस घटना की स्मृति में यहाँ विश्व का एकमात्र वार्षिक वृक्ष मेला आयोजित किया जाता है।

उत्पाद - हस्तशिल्प

राजस्थान का संगमरमर विश्व विख्यात है और विश्व के सात आश्चर्यो में एक ताज महल का निर्माण मकराना जिला नागौर के सफेद संगमरमर से ही हुआ था। राजस्थान का कोटा स्टोन वह इमारती पत्थर है जिसका उपयोग विश्व के अनेक देशों में किया जाता है। जिसका उपयोग विश्व के अनेक देशों में किया जाता है। अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया, कुवैत और बेल्जियम, इंग्लैंड आदि यूरोपीय देशों में इसका बड़े पैमाने पर निर्यात होता है। लंदन के टयूब रेल्वे स्टेशनों व संग्रहालयों में, जूरिख और फ्रेंकफर्ट के हवाईअडडों में कोटा स्टोन का प्रचुर प्रयोग हुआ है। राजस्थान विशेषकर जयपुर के हीरे जवाहरात और बहुमूल्य पत्थर अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रसिद्ध है। जयपुर के सांगानेर और बाड़मेर के अजरक प्रिन्ट विश्व भर में लोकप्रिय हैं। राजस्थान की जूतियां, मोजड़ियां व चमड़े के बैग अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हैं। बीकानेर के रसगुल्ले, नमकीन और भुजिया विश्व के लोकप्रिय खाद्य पदार्थो में से एक हैं। कोटा की मसूरिया साड़ी, भीलवाड़ा की फड़ पेन्टिंग और राजस्थान की कठपुतलियां विश्व प्रसिद्ध हैं। अजमेर जिले के किशनगढ़ की बनी-ठनी का चित्र विश्व में “भारत की मोनालिसा” के रूप में विख्यात है। जयपुर की संगमरमर की मूर्तियां पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। जयपुर की सोने पर मीनाकारी, बीकानेर की उस्ताकला (ऊँट की खाल पर मीनाकारी), प्रतापगढ़ जिले की थेवा कला (कांच पर सोने की मीनाकारी) सुविख्यात है। राजमन्द जिले के नाथद्वारा की पिछवाई पेन्टिंग, चिŸाौड़गढ़ जिले के बस्सी गांव की काष्ठ कलाकृतियां, जयपुर की पाव रजाई और ब्लू पोटरी तथा जयपुर-जोधपुर के लाख के उत्पाद तथा जोधपुर के बादले पूरे देश में प्रसिद्ध हैं।

पोषाक

राजस्थान के विविध रूपी और रंग-बिरंगे साफे और पगड़ियां विश्व विख्यात हैं। कई अवसरों पर विदेशों के बीच साफे बांधने की प्रतियोगितायें भी आयोजित की जाती हैं। उदयपुर के बागौर की हवेली में स्थित संग्रहालय में रखी पगड़ी विश्व की सबसे बड़ी पगड़ी है।

उद्यमी

राजस्थान के विशेषत: शेखावाटी क्षेत्र के व्यापारिक घरानों व उद्यमियों ने देश के कोने-कोने में अपनी औद्योगिक, व्यावसायिक एवं व्यापारिक क्षमता का प्रदर्शन कर आर्थिक जगत में नाम रोशन किया है। ऐसे व्यापारिक घरानों में श्री बिड़ला, पोद्दार, जालान, मोदी, गोयनका, डालमिया, सिंघानिया, गोलछा, भगेरिया, भगत, केड़िया, सिगतिया, टिबड़ेवाल, लाडिया, चोखानी, नेवटिया, कानोड़िया, बागड़िया, बियाणी, रूईया, खेमका, देवड़ा, बागला, कोचर, थानवी, ढड्ढा, टांटिया बाकोड़िया, बड़जात्या आदि विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।

महत्वपूर्ण

राजस्थान के स्व. करणा भील का नाम उनकी लम्बी मूँछों के लिये गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा जयपुर में निर्मित जन्तर-मन्तर वेधशाला में स्थित “सम्राट यंत्र” विश्व की सबसे बड़ी सौर घड़ी है।जयपुर घराने की कत्थक नृत्य शैली विश्व विख्यात है। भारत में सहकारिता का प्रारम्भ 1905 में अजमेर की भिनाय तहसील से माना जाता है, जब यहाँ देश की पहली सहकारी समिति की स्थापना हुई। भारत में पंचायती राज का शुभारम्भ 2 अक्टूबर 1959 को नागौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. श्री जवाहरलाल नेहरू ने किया। भारत का प्रथम भूमिगत परमाणु परीक्षण दिनांक 18 मई 1974 को जैसलमेर जिले के पोकरण नामक स्थान पर किया गया। पुन: 11 व 13 मई 1998 को यहीं भूमिगत परमाणु परीक्षण किया गया। इस घटना की याद में भारत में प्रत्येक वर्ष 11 मई को प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में मनाया जाना प्रारम्भ हुआ। गत कुछ वर्षाें से कोटा तकनीकी और मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में देश के अग्रणी कोचिंग केन्द्र के रूप में स्थापित हो गया है। अजमेर स्थित मेयो कॉलेज जहाँ तत्कालीन शासकों की संतानों को शिक्षा दी जाती थी, भारत के प्राचीनतम शिक्षा केन्द्रों में से है। इसकी स्थापना 1975 हुई थी। जोधपुर का बन्द गले का कोट देश में राष्ट्रीय पोषाक के रूप में सर्वमान्य है। राजस्थान का दाल-बाटी-चूरमा, अलवर का मावा और कोटा की कचौरी पूरे देश के प्रसिद्ध व्यंजनों में शामिल है। राजस्थान के भीलों की तीरन्दाजी पूरे देश में प्रसिद्ध है। यहाँ का भील धनुर्धर लिम्बाराम अंतर्राष्ट्रीय ख्याती प्राप्त है।

विशेष

राजस्थान में चलाई गई पीली क्रान्ति ने भारत में सरसों उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। देश में सरसों का सर्वाधिक उत्पादन राजस्थान में ही होता है। राजस्थान जीरा, टमाटर, ईसबगोल आदि के उत्पादन में भारत का अग्रणी राज्य है। देश में उत्पादित लगभग 40 प्रतिशत ऊन राजस्थान से प्राप्त होती है। देश का सर्वाधिक पशुधन राजस्थान में है। भारत के 10 प्रतिशत दूध का उत्पादन राजस्थान में होता है। सन्तरों के उत्पादन में गत कुछ वर्षो से राजस्थान का झालावाड़ जिला राजस्थान के नागपुर के रूप में प्रसिद्ध हुआ है। खनिज राजस्थान भारत में खनिजों के अजायबघर के नाम से प्रसिद्ध है। खनिज उत्पादन में झारखंड के बाद भारत में राजस्थान का अग्रणीय स्थान है। वॉल्स्टोनाईट और जास्पर खनिजों का शत-प्रतिशत उत्पादन राजस्थान से होता है। संगमरमर, टंगस्टन, जिप्सम, रॉक फास्फेट, घिया पत्थर, तामड़ा, पन्ना, चांदी, सीसा-जस्ता आदि के उत्पादन में राजस्थान को देश में एकाधिकार प्राप्त है। ऊर्जा ऊर्जा उत्पादन में देश में राजस्थान का पहला स्थान है। सौर ऊर्जा का उत्पादन भी सर्वाधिक राजस्थान में ही होता है। पवन ऊर्जा के उत्पादन में भी राजस्थान अग्रणी है। राजस्थान के चिŸाौड़गढ़ जिले में स्थित रावतभाटा परमाणु ऊर्जा परियोजना की दूसरी इकाई भारत की ऊर्जा ऊर्जा उत्पादन में देश में राजस्थान का पहला स्थान है। सौर ऊर्जा का उत्पादन भी सर्वाधिक राजस्थान में ही होता है। पवन ऊर्जा के उत्पादन में भी राजस्थान अग्रणी है। राजस्थान के चिŸाौड़गढ़ जिले में स्थित रावतभाटा परमाणु ऊर्जा परियोजना की दूसरी इकाई भारत की स्वदेशी तकनीक से बनी पहले इकाई है। जैसलमेर जिले के घोटारू में प्राप्त हीलियम गैस जिसका उपयोग हवाई जहाज के टायरों में किया जाता है पूरे भारत में यहीं प्राप्त होती है। स्वदेशी तकनीक से बनी पहले इकाई है। जैसलमेर जिले के घोटारू में प्राप्त हीलियम गैस जिसका उपयोग हवाई जहाज के टायरों में किया जाता है पूरे भारत में यहीं प्राप्त होती है ऊर्जा ऊर्जा उत्पादन में देश में राजस्थान का पहला स्थान है। सौर ऊर्जा का उत्पादन भी सर्वाधिक राजस्थान में ही होता है। पवन ऊर्जा के उत्पादन में भी राजस्थान अग्रणी है। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित रावतभाटा परमाणु ऊर्जा परियोजना की दूसरी इकाई भारत की स्वदेशी तकनीक से बनी पहले इकाई है। जैसलमेर जिले के घोटारू में प्राप्त हीलियम गैस जिसका उपयोग हवाई जहाज के टायरों में किया जाता है पूरे भारत में यहीं प्राप्त होती है।


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