-वासुदेव देवनानी-
भारत के राजनीतिक और वैचारिक इतिहास में जिन महान विभूतियों ने अपने जीवन, चिंतन और कर्म से समाज को नई दिशा दी, उनमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। वे भारतीय राजनीति और चिंतन के शाश्वत मार्गदर्शक थे । उनका जन्म 25 सितंबर 1916 को उत्तरप्रदेश के मथुरा जनपद के नगला चंद्रभान (वर्तमान में पंडित दीनदयाल धाम) नामक छोटे से गाँव में हुआ। पंडित दीनदयाल जी के पिता भगवती प्रसाद जी उपाध्याय रेलवे में स्टेशन मास्टर थे और माता रामप्यारी जी धार्मिक प्रवृत्ति की घरेलू महिला थीं। माता-पिता के निधन के बाद उनका पालन-पोषण नाना-नानी और बाद में चाचा-चाची ने किया। कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में, फिर गवर्नमेंट हाईस्कूल, सीकर (राजस्थान) में और आगे की शिक्षा उन्होंने पिलानी (राजस्थान) , कानपुर और आगरा विश्वविद्यालय में प्राप्त की। वे अपने छात्र जीवन में मेधावी और गोल्ड मेडलिस्ट रहे, साथ ही नैतिकता, अनुशासन और संगठनात्मक क्षमता में भी सबसे आगे थे। साधारण किसान परिवार में जन्म लेने के बावजूद वे असाधारण व्यक्तित्व और अद्भुत विचारशक्ति के धनी बने। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज और राष्ट्र के पुनर्निर्माण में अर्पित कर दिया। उनकी जयंती केवल एक स्मरण दिवस नहीं, बल्कि उनके आदर्शों को आत्मसात करने का अवसर है।
*सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संवाहक*
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन और विचारधारा में भारतीय संस्कृति और परंपरा गहराई से रची-बसी थी। वे मानते थे कि भारत एक राजनीतिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक राष्ट्र है, जिसकी आत्मा सनातन धर्म के मूल्यों में निहित है। पश्चिमी विचारधाराओं के अंधानुकरण की बजाय उन्होंने भारत की समस्याओं का समाधान भारतीय दृष्टि से खोजने पर बल दिया। उनका जीवन हमेशा सादगीपूर्ण और एक तपस्वी जैसा था। उनकी न तो कोई निजी संपत्ति थी और नहीं उन्होंने कभी वैभव की चाह रखी । उनका जीवन त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति रहा । वे जीवनपर्यन्त अविवाहित रहे और अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित कर दिया । जीवन के इन्हीं आदर्शों से वे एक महान व्यक्तित्व के धनी और प्रेरणादायीपुरुष बने ।
*राजनीतिक यात्रा की शुरुआत*
पंडित दीनदयाल उपाध्याय अपने छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े। आरएसएस के प्रचारक के रूप में उन्होंने गाँव-गाँव जाकर राष्ट्रसेवा और संगठन के कार्य किए। उनकी संगठन क्षमता को देखकर उन्हें भारतीय जनसंघ की स्थापना (1951) के समय महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ दी गईं। 1951 से 1968 तक उन्होंने पार्टी संगठन को ग्राम स्तर तक खड़ा किया। वे व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा के स्थान पर संगठन और विचारधारा को प्राथमिकता देते थे।
*एकात्म मानववाद – पंडित दीनदयाल जी का मौलिक चिंतन*
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का सबसे बड़ा बौद्धिक योगदान “एकात्म मानववाद” का सिद्धांत है। यह उनका मौलिक चिंतन था जो कि भारतीय जीवन-दर्शन का राजनीतिक और आर्थिक स्वरूप है। उनके एकात्म मानववाद के सिद्धांतों के अनुसार मानव को केवल एक प्राणी न मानकर उसके सम्पूर्ण पूर्ण व्यक्तित्व का विहंगम दर्शन करना, समाज के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक विकास और समृद्धि(अंत्योदय) को पहुँचाना, पश्चिमी पूंजीवाद या साम्यवाद से अलग विकास का भारतीय मॉडल बनाना, शिक्षा, कला, भाषा और संस्कृति में स्वदेशी चेतना का विकास करना आदि मुख्य रूप से सम्मिलित है । यह विचार आज भी भारतीय राजनीति और नीति निर्माण में प्रासंगिक है।
*संगठन कौशल*
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का संगठन कौशल अद्भुत था। उन्होंने जनसंघ के कार्यकर्ताओं में अनुशासन, समर्पण और सेवा की भावना का संचार किया। वे स्वयं सादगी और नैतिकता के आदर्श व्यक्तित्व थे। वे ट्रेन से हमेशा सामान्य श्रेणी में यात्रा करते थे तथा सामान्य कार्यकर्ताओं की तरह ही रहते थे । उनके नेतृत्व में भारतीय जनसंघ ने देशभर में अपनी अद्भुत पैठ बनाई, उन्होंने अपने परिश्रम, निष्ठा और लगन से पार्टी संगठन को गाँवों तक पहुँचाया।
*अंत्योदय का मंत्र*
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने देश को “अंत्योदय” की अवधारणा दी जिसका मुख्य उद्देश्य समाज के सबसे अंतिम व्यक्ति तक सेवा और विकास को पहुँचाना था । यह केवल एक आर्थिक नारा नहीं था, बल्कि समाज के कमजोर, वंचित और शोषित वर्गों के लिए उनकी सच्ची समर्पित जिम्मेदारी की भावना थी। आज भारत सरकार और राज्य सरकारों की योजनाओं में “अंत्योदय” शब्द और भावना सीधे-सीधे उनके चिंतन की ही देन है।
रहस्यमय परिस्थितियों में निधन
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का 11 फरवरी 1968 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय स्टेशन (अब “पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन”) पर रहस्यमय परिस्थितियों में निधन हुआ । यह घटना भारतीय राजनीति और विशेषकर जनसंघ के लिए अपूरणीय क्षति थी। मात्र 52 वर्ष की आयु में यह दिव्य पुरुष दुनिया छोड़ गया, लेकिन उनके विचार आज भी जीवित और प्रासंगिक हैं। आज जब भारत के यशस्वी प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी “आत्मनिर्भर भारत” की बात करते हैं तो यह “स्वदेशी”और “आत्मनिर्भरता” का नारा पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय के स्वदेशी दृष्टिकोण से मेल खाता है। उनकी अंत्योदय की नीति आज कारगर हो रही है और वर्तमान में गरीब कल्याण की सभी योजनाएँ, जनधन खाता, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत आदि योजनाएँ पंडित जी की अंत्योदय की भावना को मूर्त रूप दे रही हैं। आजभारतीय भाषाओं, परंपराओं और मूल्यों पर गर्व करना उनकी ही प्रेरणा है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन, विचार और कार्य भारतीय राजनीति में एक आदर्श और प्रेरणा का स्रोत बन कर उभरा है। उन्होंने हमें यह सिखाया कि राजनीति केवल सत्ता प्राप्ति का माध्यम नहीं, बल्कि समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण का मार्ग है।
*पंडित दीनदयाल उपाध्याय और राजस्थान*
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का राजस्थान से गहरा सम्बन्ध रहा है। यह सम्बन्ध केवल उनके बचपन और छात्र जीवन में यहाँ रहने, राजस्थान यात्राओं या स्मारकों तक सीमित नहीं है, बल्कि उनकी विचारधारा राजस्थान की राजनीतिक, सामाजिक और विकासात्मक नीतियों के लिए एक आधारशिला बनी है । उन्होंने राजस्थान के सीमांत, ग्रामीण और पिछड़े वर्गों को विकास की मुख्यधारा में लाने का जो दृष्टिकोण दिया था, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है। वर्ष 1951 में जब डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई तब पंडित दीनदयाल उपाध्याय को अखिल भारतीय स्तर पर संगठन की जिम्मेदारी मिली। उस समय अन्य प्रदेशों के समान राजस्थान में भी जनसंघ की पकड़ बहुत कमजोर थी। दीनदयाल जी ने राजस्थान को संगठन विस्तार का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र माना। उन्होंने जयपुर, अजमेर, कोटा, उदयपुर जैसे प्रमुख शहरों में जनसंघ की इकाइयाँ स्थापित करवाईं। संघ के स्वयंसेवकों को जनसंघ के संगठन से जोड़ कर पार्टी की नींव को मजबूत करने में उनका अभूतपूर्व योगदान रहा। पंडित दीनदयाल उपाध्याय कई बार राजस्थान आए और उन्होंने जयपुर, अजमेर, बीकानेर और जोधपुर में कई संगठनात्मक बैठकें की। ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचने के लिए उन्होंने स्वयंसेवकों को प्रेरित किया। उस दौर में राजस्थान के किसान, व्यापारी वर्ग और आम जन को जनसंघ से जोड़ने के लिए उन्होंने विशेष अभियान चलाए। दीनदयाल जी ने अपने भाषणों में राजस्थान के संदर्भ में यह कहा था कि यह क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से दुर्गम है इसलिए प्रदेश के रेगिस्तानी इलाकों, सीमावर्ती क्षेत्रों, वनवासी और पिछड़े अंचलों के विकास के लिए “अंत्योदय” का विचार ही सबसे उपयुक्त मार्ग है। उनके यह विचार कालान्तर में 1977 में राजस्थान में श्री भैरोंसिंह शेखावत के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी की सरकार के समय सर्वप्रथम देश में लागू की गई योजना “अंत्योदय” में साकार हुए जिसे बाद में केंद्र और राज्यों की अन्य सरकारों ने भी लागू किया तथा सरकारों की विभिन्न नीतियों जैसे वनवासी कल्याण, जल संरक्षण, सीमावर्ती विकास योजनाएँ आदि में भी यह विचार झलके। राजस्थान में आदिवासी और पिछड़े इलाकों (उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बारां, सिरोही आदि पिछड़े जनजाति उपयोजना क्षेत्रों) के लिए “अंत्योदय” की अवधारणा विशेष रूप से सार्थक रही।
*दीनदयाल उपाध्याय स्मृति स्थल*
राजस्थान की राजधानी जयपुर के धानक्या गाँव में “पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मारक” बना है, जहाँ उनके जीवन और विचारों को प्रदर्शित किया गया है। देश में कई राज्य सरकारों ने विभिन्न योजनाओं, संस्थानों और मार्गों के नाम पर रखे हैं जैसे “पंडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग”, “पंडित दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज”, “पंडितदीनदयाल उपाध्याय चिकित्सालय” आदि। उनके नाम पर न केवल कई योजनाएँ चल रही हैं बल्कि शिक्षा, कौशल और ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम से कई परियोजनाएँ क्रियान्वित हो रही हैं जैसे- “पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना”, “पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्किल डवलपमेंट सेंटर”, “पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना”, “पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन” आदि। ये सब उनकी अंत्योदय और स्वावलंबन की सोच को आगे बढ़ा रहे हैं।
मैने शिक्षा मंत्री रहते हुए राजस्थान सरकार के स्कूली पाठ्यक्रम में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी सहित करीब 200 ऐतिहासिक हस्तियों और राज्य के महापुरुषों के जीवन और कृतित्व पर नए अध्याय स्कूल की किताबों में जुड़वाएं थे । इसका उद्देश्य नई पीढ़ी के युवाओं को इन महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेने की सीख देना रहा था । साथ ही मैं अपने सार्वजनिक दृष्टांतों में भी हमेशा पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के दर्शन को युवा, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं राजनीतिज्ञों के लिए प्रेरणादायक बताता हूँ।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जयंती पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम उनके एकात्म मानववाद, अंत्योदय और स्वदेशी के आदर्शों को अपने व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन में अपनाएंगे । यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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(लेखक वासुदेव देवनानी राजस्थान विधानसभा के माननीय अध्यक्ष है)