गीतांजलिश्री के साहित्य पर पीएचडी कर चुकी डॉ. विभा पुरोहित

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01 Jun 22
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 गीतांजलिश्री के साहित्य पर पीएचडी कर चुकी डॉ. विभा पुरोहित

डॉ विभा पुरोहित ने कहा कि गीतांजलि श्री को बुकर पुरस्कार मिलते ही हिन्दी भाषा के साहित्य की धाक दुनिया मे जम गई अब हिन्दी साहित्य को और अधिक पढ़ा जाएगा जिसमें प्रभावी भावप्रवणता है, विषयवस्तु में गहराई है।
बांसवाड़ा मूल की डॉ. विभा ने कहा कि यह पुरस्कार हिन्दी के लिए बड़ी दुनिया लेकर आया है इससे हिन्दी की मान्यता स्वीकारोक्ति भी बढ़ेगी। डॉ.विभा ने कहा कि उन्होंने सन 2019 में गीतांजलि श्री के कथा साहित्य पर मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर से सह आचार्य हिन्दी डॉ. मनोज पंड्या के निर्देशन में  पीएचडी की है उनका विषय ‘गीतांजलि श्री के कथा साहित्य का विवेचनात्मक अध्ययन‘ रहा। शोध गंगा से प्राप्त जानकारी के अनुसार गीतांजलि श्री के सम्पूर्ण कथा साहित्य पर राजस्थान से मैने ही शोध कार्य किया  है। इस शोध के लिए अनेक बार गीतांजलि श्री से बात हुई वे सहज, सरल और मितभाषी है। वे बेबाकी से अपनी बात रखती है, लिखती है और प्रचार से दूर रहती है। वे लेखन की किसी भी पारम्परिक विचारधारा से बंधी नहीं है अपने अलग अंदाज से लेखन करने वाली कथाकार हैं।
डॉ. विभा ने बताया कि गीतांजलि श्री के लेखन का पूर्व में भी अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच में अनुवाद हो चुका है। गीतांजलि श्री ने महान साहित्यकार प्रेमचंद के साहित्य पर पीएचडी की है। डॉ विभा ने कहा कि  गीतांजली श्री के उपन्यास रेत समाधि को पढ़ते हुए कई बार दादी के लिए आँखे भरी, संवेदना जगी, उनकी पोती के साथ रहते हुए रिश्तों का जो ताना बाना पिरोया गया है वह भारतीय परिवेश मे ही सम्भव है  विभाजन के बाद की यह कथा अनेक पहलुओं को सामने लाती है। डॉ  विभा ने कहा कि गीतांजलि श्री का साहित्य लेखन युगीन परिवेश को बेबाकी से अपनी विशिष्ट गद्य शैली में व्यक्त करने से पाठक के मन पर  अमिट प्रभाव डालता है।
 प्राचीन काल में हमारे देश में साहित्य संस्कृत में लिखा गया जिसे हिंदी के साथ ही देश की अन्य भाषाओं मे अनुवाद किया गया। जिससे वह जन-जन तक पहुच गया। साहित्यकार यही तो चाहता हैं कि उसे ज्यादा से ज्यादा पढ़ा जाए इसके लिए अगर अच्छा अनुवादक मिल जाए तो वह पुरस्कार भी दिलवा देता है  और रचना को सम्पूर्ण विश्व के पाठकों तक पहुंचा देता है गीतांजलि श्री के उपन्यास रेत समाधि को विश्व पटल पर  लाने में अनुवादक डेज़ी राकवैल का योगदान रहा।


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