गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर का नवजात एवं शिशु रोग विभाग सभी विश्वस्तरीय सुविधाओं से लेस है| यहाँ निरंतर रूप से शिशुओं का जटिल से जटिल ऑपरेशन व इलाज किया जा रहा है| पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. निलेश टांक, बाल व शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ देवेंद्र सरीन, डॉ हितेंद्र राव व उनकी टीम के अथक प्रयासों से सिरोही में जन्में नवजात के डायाफ्रामेटिक हर्निया का सफलतापूर्वक इलाज कर उसे स्वस्थ जीवन प्रदान किया गया|
विस्तृत जानकारी:
सिरोही में जन्में नवजात को जन्म के तुरंत बाद से ही सांस लेने में तकलीफ होने लगी और वह माँ का दूध भी नही पी पा रहा था| ऐसी स्तिथि में नवजात को तुरंत गीतांजली हॉस्पिटल के इमरजेंसी में लाया गया| पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. निलेश टांक ने नवजात की जांच की, जिसमें पाया गया कि बच्चे की छाती और पेट के बीच का पर्दा नही बना था जिसे “डायाफ्रामेटिक हर्निया” कहते हैं| इसके कारण पेट के सारे अंग छाती में चले गए थे और फेफड़ों का विकास भी नहीं हुआ था| बच्चे को भर्ती कर ऑक्सीजन पर रखा गया व अगले ऑपरेशन की योजना बनायी गयी| ऑपरेशन के दौरान पाया गया कि बच्चे का बाईं ओर का पर्दा जन्मजात ही नही बना था जिसके कारण लीवर, स्प्लीन, छोटी आंत, बड़ी आंत तथा भोजनथेली सभी छाती के अन्दर चले गए थे जिसे फिर से पेट में डाला गया व पर्दा बनाया गया|
ऑपरेशन के पश्चात् नवजात को 8 दिन वेंटीलेटर मशीन पर रखा गया, हालत में सुधार आने के बाद नवजात की ऑक्सीजन हटा दी गयी और दूध पीलाना चालू किया गया| 14 दिन पश्चात् नवजात को स्वस्थ कर हॉस्पिटल से छुट्टी प्रदान की गयी|
गीतांजली हॉस्पिटल, उदयपुर एक उच्च स्तरीय टर्शरी सेंटर है जहां एक ही छत के नीचे सभी विश्वस्तरीय सुविधाएं उपलब्ध हैं।