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शि़क्षक दिवस - राष्ट्र निर्माता, शिक्षकों का किया सम्मान

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05 Sep 25
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शि़क्षक दिवस - राष्ट्र निर्माता, शिक्षकों का किया सम्मान

उदयपुर  शिक्षक दिवस पर राजस्थान विद्यापीठ के संघटक लोकमान्य तिलक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में आयोजित किया गया जहाॅ शिष्यों द्वारा गुरूओं का उपरणा एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया गया। पूरे समारोह की कमान छात्राध्यापकों नेे  संभाली। प्रारंभ में काजल चैहान ने अतिथियों का स्वागत करते हुए समारोह की जानकारी दी।

आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि सृष्टि की प्रथम गुरू माॅ है, दूसरा शिक्षक - माॅ विद्यालय है तो शिक्षक विश्वविद्यालय। उन्होनें कहा कि  डॉ. सर्वपल्ली के शिक्षक, राजनेता, राजदूत, दार्शनिक, प्रोफेसर, कुलपति के रूप में जो जीवन मूल्यों  व   दृष्टिकोण का जो आदर्श प्रस्तुत किया, उसे युवाओं को प्रेरणा लेने की जरूरत है। वे 10 वर्ष उपराष्ट्रपति, 05 वर्ष राष्ट्रपति के पद पर रहे। शिक्षा ऐसा हथियार है जो दुनिया को बदल सकता है। शिक्षक ही आने वाली पीढी में राष्ट्रीयता की भावना को जगाते है, मौलिकता की बात करते है। उन्होंने राधाकृष्णन के जीवन के माध्यम से शिक्षक की गरिमा और सामर्थ्य पर प्रकाश डाला। शिक्षक में निहित वर्तमान का स्वरूप और भविष्य की संभावनाओं को बताया। उन्होंने सर्वपल्ली ने जो भारत की ज्ञान परंपराओं की वकालत की उस ओर रोशनी डाली। सारंगदेवोत ने बताया कि आज की शिक्षा में सूचना ज्यादा समाहित है, लेकिन  शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति  के लिए विद्यार्थी केंद्रित  मौलिकता और मूल्यों युक्त विद्या और ज्ञान का समाहित होना आवश्यक है। उन्होंने गुरु के रूप में मां की भूमिका को रेखांकित किया और वर्तमान समय में उसके स्वरूप में जो बदलाव आया है उस पर भी विचार रखे।

मुख्य अतिथि कुलाधिपति एवं कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर ने डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन के प्रेरणादायी प्रसंगों पर विचार रखें एवं पंडित मनीषी जनार्दनराय नागर के शिक्षा के क्षेत्र में योगदान को याद किया। उन्होंने छात्राध्यापकों का आह्वान किया कि वे समाज और देश को दिशा दिखाने और प्रगति में अपना योगदान दें।

संचालन निहारिका चुण्डावत, जयश्री लौहार ने किया जबकि आभार कुसुम डांगी ने जताया।

समारोह में प्राचार्य प्रो. सरोज गर्ग, डाॅ. बलिदान जैन, डाॅ. अमी राठौड, डाॅ. रचना राठौड़, डाॅ. भुरालाल श्रीमाली, सहित गुरूओं का माला, उपरणा ओढ़ा कर सम्मान किया गया।


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