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नाटक ‘‘ ‘‘धरणी धरा वसुंधरा’’ ने दिया “प्रकृति बचाओ, तभी अपना भविष्य बचाओ का ”संदेश

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21 Sep 25
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नाटक ‘‘ ‘‘धरणी धरा वसुंधरा’’ ने दिया “प्रकृति बचाओ, तभी अपना भविष्य बचाओ का ”संदेश


उदयपुर, 20 सितम्बर 2025, गुजरात संगीत नाटक अकादमी द्वारा नाटक के विकासहेतु गुजरात के रंगकर्मियों को आर्थिक सहायता हेतु नाटक तैयार कराए जातेहै।

इसी क्रम में भारतीय लोक कला मण्डल के गोविंद कठपुतली प्रेक्षालय में गुजरात की श्रीरजनी कला संस्था द्वारा डॉ. नीपा दवे पंड्या द्वारा निर्देशित नाटक ‘‘धरणी धरा वसुंधरा’’ का मंचन किया गया नाटक  “धरनी धरा वसुंधरा” एक संगीत- नृत्य आधारित नाट्य प्रस्तुति है, जिसमें धरती माता का महिमा, मानव द्वारा प्रकृति का शोषण और अंततः जागृति के साथ उसका पुनर्जागरण दर्शाया गया है।


कथा का प्रारंभ धरती माता की स्तुति से होता है, जहाँ प्रकृति की सुंदरता, हरे-भरे खेत, नदियाँ, वृक्ष और जीव-जंतुओं का जीवन दृश्य मंच पर जीवंत होता है।  मानव और प्रकृति के बीच का अटूट सामंजस्यपूर्ण जीवन चित्रित किया गया है l जहाँ मानव धरती को “माँ” मानकर उसकी पूजा करता है।  विकास की आड़ में मानव धीरे-धीरे लोभ और औद्योगिकता की ओर बढ़ता है। पेड़ों की निर्दयी कटाई, प्रदूषित नदियाँ, धुआँ उगलते कारखाने दृ यह सब धरती माता के हृदय को घायल कर देते हैं। धरती माता चेतावनी देती हैं कि यदि उनका विनाश किया गया तो मानव अपना भविष्य भी खो देगा।
 प्रकृति का क्रोध फूट पड़ता है दृ भूकंप, बाढ़, तूफान जैसी आपदाएँ मानवजाति को झकझोर देती हैं। धरती माता विलाप करती हैं और मानव अपने ही पापों के सामने मौन खड़ा रह जाता है।
 प्रेरणात्मक गीत -नृत्य के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि “प्रकृति बचाओ, तभी अपना भविष्य बचाओ।”

धरती माता की सेवा और संरक्षण को सर्वोच्च धर्म बताते हुए सामूहिक गीत-नृत्य के साथ मंच पर उजास और हरियाली से भरा नया सूर्योदय प्रकट होता है।


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