उदयपुर। साध्वी विरल प्रभा श्रीजी ने कहा कि पिछले जन्मों के पुण्य की वजह से ये मनुष्य भव मिला और यह भी पता है कि कितना समय निकल गया। ये किसी को पता नही कि कितना बाकी है? सांसारिक, सामाजिक, राग, द्वेष, मोह, माया में कितना समय चला गया ये मालूम है, जो बच गया उसमें क्या करना है इसका पता होना चाहिए। इस जन्म में जिन वाणी सुनने का अवसर मिला ह।, तो इसे व्यर्थ न गवायें। अच्छी चीजें मिली उसका उपयोग कैसे किया? इसका ध्यान रहना चाहिए। श्रवण, चिंतन और मनन इन तीनों पर ध्यान रहना चाहिए।
सूरजपोल स्थित दादावाड़ी में प्रवचन में साध्वी श्रीजी ने कहा कि जो बचा हुआ समय है उसमें जिनवाणी सुनकर मनन करने और चिंतन करना है। जो अनादिकाल से पकड़ा है, छोड़ना है। जिस ओर ध्यान नही गया उसे पकड़ना है। चातुर्मास हर साल होता है। संत साध्वी अआएँगे और अपनी बात कहकर चले जायेंगे लेकिन जसके बाद मैं और चिंतन कितनों ने किया। उस चिंतन के अनुरूप ही अपने जीवन को ढालना है।
साध्वी विपुल प्रभा श्रीजी ने कहा कि साल भर तक स्कूल में पढ़ने के बाद परीक्षा के समय उसकी दिनचर्या में बदलाव होता है। अपने चातुर्मास काल, पर्युषण काल में यही परीक्षा का समय है। इस दौरान जिनवाणी का श्रवण करना है, उस पर मनन करना है और चिंतन करके अपने जीवन को सही दिशा में ले जाना है। छात्र को समझ है, सीज़न के समय व्यापारी को समझ है वो खाना पीना भूल जाता है। इसी तरह यह समय धार्मिक सीज़न है। थोड़ा थोड़ा ही सही, धर्म को समय देना है। साध्वी कृतार्थ प्रभा श्री जी ने गीत प्रस्तुत किया।