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दो दिवसीय फसल विविधीकरण प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापनः

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19 Jul 25
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दो दिवसीय फसल विविधीकरण प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापनः

 

उदयपुर,ः महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय द्वारा फसल विविधीकरण परियोजना के तहत तुरगढ, झाडोल तहसील में आयोजित दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आज सफल समापन हुआ। इस कार्यक्रम में 25 किसानों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया, जिसमें आधुनिक कृषि तकनीकों और फसल विविधीकरण के लाभों पर गहन चर्चा हुई।
कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य किसानों को फसल विविधीकरण के माध्यम से आय वृद्धि, मृदा स्वास्थ्य सुधार, और सतत कृषि प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रेरित करना था। परियोजना प्रभारी डॉ. हरि सिंह ने अपने समापन संबोधन में कहा, फसल विविधीकरण न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करता है, बल्कि यह खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण, और सतत कृषि विकास की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। यह प्रशिक्षण किसानों को नवीनतम तकनीकों से लैस करने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
डॉ. हरि सिंह मीणा ने फसल विविधीकरण के सिद्धांतों और इसके दीर्घकालिक लाभों पर विस्तृत व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि एक ही खेत में विभिन्न फसलों को उगाने से मृदा की उर्वरता बनी रहती है और कीट-पतंगों का प्रकोप कम होता है। उन्होंने उदाहरण के रूप में मक्का, तिलहन, और दालों की मिश्रित खेती के मॉडल प्रस्तुत किए, जो स्थानीय जलवायु और मिट्टी के लिए उपयुक्त हैं।
डॉ. नरेन्द्र यादव ने तिलहन फसलों, जैसे मूंगफली और सोयाबीन, को फसल चक्र में शामिल करने के लाभों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि तिलहन फसलें मृदा में नाइट्रोजन स्थिरीकरण को बढ़ावा देती हैं, जिससे मृदा की उर्वरता में सुधार होता है। साथ ही, उन्होंने संसाधनों के कुशल उपयोग और बाजार में तिलहन की बढ़ती मांग के आर्थिक लाभों पर भी चर्चा की।
कार्यक्रम के अंत में, किसानों को खरपतवार नियंत्रण के लिए शाकनाशी के उपयोग और उनके सुरक्षित छिड़काव की तकनीकों का जीवंत प्रदर्शन दिखाया गया। यह प्रदर्शन किसानों के लिए विशेष रूप से उपयोगी रहा, क्योंकि उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से आधुनिक उपकरणों और तकनीकों को देखा और सीखा।
समापन समारोह में परियोजना प्रभारी डॉ. हरि सिंह ने सभी प्रतिभागियों, विशेषज्ञों, और आयोजकों को कार्यक्रम की सफलता के लिए धन्यवाद दिया। कार्यक्रम में परियोजना से जुड़े मदन लाल मरमट और गोपाल नाई भी उपस्थित थे, जिन्होंने किसानों को तकनीकी सहायता प्रदान की।


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