विज्ञान कथा लेखन पर संभाग स्तरीय लिट्रेचर फेस्टिवल में एक दशक से विज्ञान कथा और कविताएं लिख रही लेखिका प्रज्ञा गौतम ने अपने साक्षात्कार में एक प्रश्न हिंदी के एक महान कथा लेखक से. रा. यात्री जी ने कहा था कि विज्ञान कथाएँ एक तरह से पलायन का साहित्य है, यह आजकल की समस्याओं का आभासी समाधान खोजने जैसा है, आप इस कथन से कितना सहमत हैं ? पर उत्तर दिया कि मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ । विज्ञान कथाएं भविष्य की संभावित समस्याओं के प्रति सचेत करती हैं और उनके समाधान भी सुझाती हैं । संभावनाओं के अनंत द्वार हैं, यह हमारे ही हाथ में है कि हम कौनसा विकल्प चुनते हैं । मानव जाति का भविष्य उज्ज्वल होगा या अंधकारमय, यह हम पर ही निर्भर है । तकनीक जहां जीवन को सुविधा सम्पन्न बनाती है, वहीं गलत उपयोग के खतरे भी हैं । इसके अतिरिक्त वर्तमान समय के अधिकतर अनुसंधान पर्यावरण हित को ध्यान में रख कर किए जा रहे हैं । हाल ही में पांच दिवसीय लिट्रेचर फेस्टिवल का आयोजन राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय,कोटा द्वारा किया गया था। यह एक सुखद प्रसंग है कि आयोजक डॉ. दीपक श्रीवास्तव ने साहित्य में विज्ञान कथा और कविता विषय को भी सम्मिलित कर मान दिया।
विज्ञान कथाएं लिखने का मानस कब और कैसे बना प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रज्ञा कहती है
विज्ञान की विद्यार्थी थी और अन्य पत्रिकाओं के साथ- साथ विज्ञान पत्रिकाएं किशोरावस्था से पढ़ती आ रही थी । विज्ञान गल्प पढ़ने में मेरी विशेष रुचि थी । छुटपुट कविताएं लिखती थी किन्तु व्यावसायिक रूप से लेखन अनायास ही शुरू हुआ । विज्ञान प्रगति के लिए पहले विज्ञान कविताएं लिखीं, जब वे छप गईं तो मनोबल बढ़ा और, फिर अपनी कल्पनाशीलता को विस्तार देने के लिए विज्ञान कथा लिखना प्रारंभ किया । मेरी दूसरी विज्ञान कथा ‘विचित्र वृक्ष’ पर मुझे देश भर से पाठकों की प्रतिक्रियाएं मिली । विज्ञान प्रगति में कहानी के लिए मात्र दो पृष्ठ निर्धारित थे, तो अन्य पत्रिकाओं की खोज की, फिर मुझे विज्ञान लेखकों के समूह में शामिल कर लिया गया । अब सृजनशीलता के पथ पर चल निकली हूँ.. सफर जारी है ।
विज्ञान कथाओं में ऐसा क्या है कि इस विधा को शास्त्रीय विधाओं में सम्मिलित नहीं किया जाता| जबकि विज्ञान कथा में अमिधा, लक्षणा और व्यंजना जैसी शब्द शक्तियों के संग कल्पना तथा तर्क का मिश्रण कर बेहतर ताना- बाना बुना जा सकता है के प्रश्न पर उनका जवाब था यह सत्य है कि हमारे यहाँ विज्ञान कथा और कथाकार दोनों ही साहित्य के क्षेत्र में उपेक्षित रहे हैं । इसका एक कारण यह भी रहा कि हिन्दी में इस विधा को आगे बढ़ाने वाले गिने- चुने ही लेखक रहे । हालांकि, अंग्रेजी साहित्य में कुछ ऐसी अनुपम साहित्यिक कृतियाँ लिखी गई हैं जो मूलतः विज्ञान कथाएं हैं । आपने जॉर्ज ऑरवेल के उपन्यास ‘1984’ का नाम सुना होगा, यह एक ऐसी ही साहित्यिक कृति है ।
मैं सोचती हूँ कि समय अब बदल रहा है । यह विज्ञान का युग है और लोगों में विज्ञान कथाओं के प्रति नया दृष्टिकोण विकसित हो रहा है । विज्ञान कथाएं भविष्य का आईना हैं । ये विज्ञान के प्रति रुचि और कौतूहल जगाती हैं, ज्ञान बढ़ाती हैं, वहीं तकनीकी के दुरुपयोग से होने वाले संभावित खतरों के प्रति सचेत भी करती हैं । विकसित देशों में विज्ञान कथा के प्रति युवाओं में जुनून है । हमारे देश में भी कई विश्वविद्यालय विज्ञान कथाओं पर शोध करवा रहे हैं ।
विज्ञान कथाओं को अधिकतर फंतासी की श्रेणी में ही रखा जाता है, जबकि इनके भीतर संदेश अधिक गहरे होते हैं ,ऐसा क्यों है पर उनका जवाब था वास्तव में ऐसा भ्रम इसलिए पैदा होता है कि अक्सर दोनों प्रकार की कथाओं को एक साथ एक ही संग्रह में रख दिया जाता है । विज्ञान कथा (साइंस फिक्शन) और फंतासी (स्पेक्यूलेटिव फिक्शन) दोनों एक दूसरे से भिन्न हैं । फंतासी में कल्पना को असीमित विस्तार दिया जा सकता है, विज्ञान का इससे कोई लेना देना नहीं । विज्ञान कथा में कथाकार कल्पना करता है, लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों की सीमाओं से परे नहीं जा सकता ।
अधिकतर विज्ञान कथाएँ समय यात्रा, परग्रही (एलियन) से दोस्ती/दुश्मनी, रोबोट अथवा कृत्रिम मेधा के दुरुपयोग, और भविष्य की डरावनी कल्पना के इर्द गिर्द ही घूमती हैं । क्या विज्ञान शिक्षण में इनका कोई उपयोग हो सकता है के प्रश्न पर प्रज्ञा का कहना था की
बिल्कुल हो सकता है । छात्रों के स्तर को ध्यान में रख कर विज्ञान कथाएं लिखी जा सकती हैं । मेरी कहानी ‘प्रेम का बीज’ एक लोक कथा शैली में लिखी गई बाल पर्यावरण कथा है, जिसके भीतर पर्यावरण संरक्षण का संदेश छुपा हुआ है । विज्ञान कथा का आधार कोई न कोई वैज्ञानिक तथ्य अवश्य ही होता है । मेरी विज्ञान कथाओं में वैज्ञानिक तथ्यों की बहुत विस्तृत व्याख्या नहीं होती। मैं सोचती हूँ, इससे कहानी के प्रवाह में बाधा आती है और उसका रस चला जाता है । कहानी एक सामान्य पाठक की समझ के बाहर भी हो जाती है| हां, कहानी छात्रों में विज्ञान और तकनीक के प्रति कौतूहल अवश्य जगाती है और उसे इस बारे में और अधिक पढ़ने के लिए विवश कर देती है ।
कथा के सिवा काव्य, निबंध, यात्रा संस्मरण या किसी अन्य विधा में विज्ञान के समावेश द्वारा साहित्य सृजन की क्या संभावनाएं हैं का उत्तर देते हुए वह कहती हैं जी, बिल्कुल है । यात्रा संस्मरण पर मुझे याद आया कि, एक साहित्यिक कार्यक्रम में नाथद्वारा भ्रमण के दौरान मैंने आयोजन स्थल के परिसर में कुछ असामान्य रूप से बड़े घोंघों को देखा था । देखने में ये बड़े ही आकर्षक लग रहे थे । पर्यावरण के लिए अहितकर इस आक्रामक विदेशी प्रजाति पर मैंने बाद में एक लेख लिखा था । यहाँ विज्ञान कविता का जिक्र भी उल्लेखनीय है। विज्ञान के नीरस सिद्धांतों को कविता में ढाल कर सरस बनाया जा सकता है ।
अनुमति हो तो मैं एक विज्ञान कविता पढ़ कर सुनाती हूँ । अनुमति ले कर कहती हैं सभी प्रकाश संश्लेषण के बारे में जानते ही हैं । कविता में इसी को समझाने का प्रयास किया है-
** प्रकाश संश्लेषण कविता......
भोर की पहली किरण
छुकर चली गई जब
हरी पत्ती की नाजुक देह
जल स्फीत द्वार कोशिकाओं ने
कुनमुना कर रंध्र खोल दिए
प्रकाश की ऊष्ण तरंगों से
कम्पित- उत्तेजित हो उठा
कोशिकाओं का हरित वर्ण
जल टूट कर बिखरा था
मुक्त हो गयी थी प्राणवायु
रात्रि के गहन अन्धकार में
कार्बन डाइऑक्साइड बंध गयी थी
चुपके से हाइड्रोजन के साथ
प्रकाश किरणों की ऊर्जा
और प्यार के इस गठबंधन से
जन्मी थी मीठी- मृदुल शर्करा
जो है श्वसन की क्रियाधार
ऊर्जा का अथाह भण्डार
सकल जीव जगत को पोषती
जीवन रस में घुली शर्करा में
सृष्टि के इस उदात्त
प्रेम का अंश है ।
कोटा निवासी प्रज्ञा गौतम रा.उ.मा.वि. तालेड़ा में जीव विज्ञान की शिक्षिका हैं । विगत 10 वर्षों से वे राष्ट्रीय स्तर की विज्ञान पत्रिकाओं (विज्ञान प्रगति, आविष्कार, इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए, और विज्ञान सम्प्रेषण) के लिए लोकप्रिय विज्ञान लेख और विज्ञान कथाएं लिख रही हैं । ये बाल कथाएं और कविताएं भी लिखती हैं । उनके तीन विज्ञान कथा संग्रह और एक बाल विज्ञान उपन्यास प्रकाशित हो चुका है । नई शिक्षा नीति में पाठ्यक्रम निर्माण हेतु उनकी दो बाल कथाएं ली गई हैं ।