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मनुष्य की ’इच्छा शक्ति‘ मजबूत हो तो सभी दुष्ट शक्तियां परास्त होगी -परम आलयजी

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08 Dec 19
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मनुष्य की ’इच्छा शक्ति‘ मजबूत हो तो सभी दुष्ट शक्तियां परास्त होगी -परम आलयजी

मुम्बई,  सन्त परम आलयजी ने कहा है कि यदि मनुष्य की ’इच्छा शक्ति‘ मजबूत होगी तो सभी दुष्ट शक्तियां परास्त हो जाती है। कालान्तर में अन्य लोगों की शक्तियां के आपसे निरन्तर जुडते दुनिया में व्यक्ति का मान बढने लगता है।

सन्त परम आलयजी शनिवार आजाद मैदान में प्रातः के ’’मनुष्य मिलन साधना शिविर‘‘ में उपस्थित हजारो साधको एवं जिज्ञासुओ को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने गुब्बारो के प्रयोग करते हुए बताया कि इन्सान की स्थित हल्की हवा, भारी हवा एवं पानी से भरे गुब्बारो की तरह है। संस्कारहीनता बढने से बच्चे आज समाज के लिए भारी होते जा कर दुष्कर्मी हो रहे है। उम्र के साथ उनमें विक्षिप्तता बढती ही जा रही है। मस्तिक का विकास ठहर जाता है। जीवन का लक्ष्य स्पष्ट नही होने से सही दिशा में गति नही हो पाती है।

डनहोंने कहा कि हमे समाज एवं संसाधनो का सन्तुलित उपयोग कर जीवनयापन करना होगा। जीवन जितना संवेदनशील होगा उतना ही आकर्षण होगा। हमारी असंवेदनशील व्यवस्थाएं हमे पतन की ओर ढकेल देती है। इसका मुख्य कारण गलत तत्वोयुक्त ’’आहार‘‘ एवं उनका अनियमित सेवन है। सन्त ने प्राकृतिक एवं कम तापमान पर फ आहार के अनुपम तत्वों की व्याख्या करते मनुष्य ’’लार‘‘(सलीवा) मे उपलब्ध विभिन्न रस-रसायनो के सन्तुलित महत्व को समझाया। उन्होंने समयानुसार स्वास्थ्यवर्धक आहार ग्रहण करने के प्राकृतिक नियमो से साधको को अवगत कराया। सन्तुलित आहार, सहज व्यायाम एवं लार(सलीवा) की क्षमता पर आधारित योग-साधना की महत्ता पर बल दिया।

’’सन-टू-ह्मुमन सामाजिक संस्था की ओर से आयोज्य दस दिवसीय ’कुण्डलिनी जागरण‘‘ साधना शिविर के आठवे दिवस के १५ वे सत्र में सामाजिक सरोकारो से जुडे रायपुर के उद्योगपति साधक श्री कैलाश बजाज ने अपने सम्बोधन में ऐसे साधना शिविर की महत्ता पर प्रकाश डाला तथा इसे प्रेम एवं स्वास्थ्य जीवन का सागर बताया। शिविर समन्वयक श्री प्रकाश कानूगो ने अनेक प्रान्तो से आए साधको का स्वागत किया।

सन्त परम आलयजी ने शुक्र्रवार के सांघ्याकालीन साधना सत्र में ’’मन एवं चेतना‘‘ के मध्य की झलक अनेक उदाहरणों सहित प्रस्तुत की। उन्होंने ’आदमी को जाति सूचक‘ एवं ’मनुष्य को चेतना सूचक‘ बताया। उन्होंने कहा कि ’शरीर‘ जन्म लेने के बाद ’जीवन‘ को विकसित करता है लेकिन शरीर को प्रकृति एवं ’जीवन‘ को हम स्वयं विकसित करते है। मन विचारो का बहाव है एवं जिस वस्तु को हम समझ लेते है उसके साथ एक हो जाते है। भौतिक जगत में ’’लगाव‘‘ जीवन के विकास को अवरूद्ध कर देता है वही ’अलगाव‘ जीवन को स्वतन्त्र कर देता है। ’भय‘ मस्तिक की रूकावट है वही ’अभय‘ उसकी खुलावट है।

उल्लेखनीय है कि यह साधना शिविर प्रतिदिन प्रातः ६ से ८ बजे तथा सांय साढे छः से साढे आठ बजे तक सभी जाति सम्प्रदाय के साधको के लिए दक्षिण मुम्बई के आजाद मैदान में निःशुल्क संचालित है। साधना शिविर में प्रतिदिन हजारो साधक स्वास्थ्य, सरल योग-साधना एवं व्यायाम के अनुभव प्रज्ञा गीत-संगीत के साथ जीवन को आल्हादित कर रहे है। साधना शिविर में रविवार मुम्बईकरो के लिए बाल संस्कारो के विशेष प्रयोग उपलब्ध होंगे।


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