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एकांत और सूतक (क्वारेंटाईन ) सदियों से हमारी परंपरा रही है 

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25 Mar 20
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एकांत और सूतक (क्वारेंटाईन ) सदियों से हमारी परंपरा रही है 

 वैश्विक महामारी कोरोना से मानव जीवन बचाने के लिये किये जा रहे उपायों,अपनाई जा रही सावधानियां, इलाज के प्रबंध, केन्द्र एवं राज्य सरकारों की सक्रियता और समय-समय पर जारी निर्देश के साथ बाहर देशों से भारतीयों को भारत लाने जैसे हर सम्भव उपाय किये जा रहें हैं। प्रयासों में किसी भी किस्म की कमी नहीं छोडने की कड़ी में 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर पूरा राष्ट्र एक जुट हो गया है। समस्त राजनीतिक संगठनों सहित सभी प्रकार के संगठनों और स्वयं प्रत्येक मनुष्य ने मानव जीवन बचाने एवं राष्ट्र हित के प्रति संकल्पबद्ध और प्रतिबद्ध  हो कर इसे सफल बनाया।  अब जबकि पूरे देश को ही तीन सप्ताह के लिए लोक डाउन कर दिया गया है ऐसे में घर में एकांत में अलग रहने की हम सब की जिम्मेदारी बढ़ गई हैं। सवाल यह नहीं की कोई आपसे कहे तब ही आप चेतें। देश का हर जिम्मेदार नागरिक अपने आप सारी स्थिति को समझ कर स्वयं जागरूक हो और महामारी की इस व्यापक आपदा में स्वयं को बचाते हुए आगे आकर अपना स्वेच्छिक सहयोग करें। 

      जब कोरोना को हराने के लिए  एकांत और क्वारेंटाईन के लिए कहा जा रहा है तो यह कोई होवा नहीं है बल्कि सदियों से हमारी परंपरा का अभिन्न हिस्सा है,जिसे हम भूल चुके हैं और उसके स्थान पर नई-नई जीवन शैलियों को अपना लिया है। आज जब कि कोरोना का भयावह खतरा सर पर मंडरा रहा है तब हमें वापस अर्वाचीनकाल से चली आ रही परम्पराओं से जुड़ ने का अवसर मिला है। हमें पुनः अपनी संस्कृति को समझने ,चिंतन करने,मनन करने का अवसर मिला है, कोरोना के बहाने से ही सही।

सबसे पहले हम एकांत, अकेले में रहने, भीड़-भाड़ से दूर रहने पर पर विचार करते हैं।

       इतिहास गवाह है हमारे ऋषिमुनियों ने वर्षो पहाड़ों, वनों में रह कर साधना की। पृथ्वी एवं जल  समाधी के अनेक उदहारण मिलते हैं। एकांत में ही महात्मा बुद्ध को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। हम योग-ध्यान ,व्यायाम एकांत में करते हैं।  माता रानी के धाम भी अधिकांश पर्वतों पर एकांत में बने हैं। अध्यन एवं ज्ञान प्राप्ति के लिए पुस्तकालय से बढ़ कर कोई जगह नहीं। शांति प्राप्त करने एवं आत्मचिंतन करने के लिए हम एकांत में रहना चाहते हैं। जीवन में शांति सुख प्राप्त करने का अमोध मंत्र है एकांत।

  शुरू में एकांत में बैचेनी एवं बाहरी मोह मन को डगमगाता है परंतु कुछ समय बाद निरन्तर अभ्यास से सब कुछ स्थिर लगने लगता है। एकांत में ध्यान केंद्रित एवं आत्मावलोकन कर सकते हैं।आत्मशुद्धि के लिए एकांत को आवश्यक बताया गया है। माना गया है कि जीवन के प्रति आस्था बनाये रखने एवं प्रकृति के करीब जाने,खुद को पहचानने-समझने, चिंतन को नई दिशा देने, प्राकृतिक ऊर्जा बढ़ाने, बीमारियों से लड़ने की शक्ति का विकास करने, आनन्द की अलग ही अनुभूति कराने में एकांत रामबाण है। एकांत का सुंदर और सुखद पहलू है स्वयं की भीतरी अभिव्यक्ति का मुखर होना।

           हमें क्वारेंटाईन होना चाहिये, मतलब हमें ‘‘सूतक’’ से बचना चाहिये पर जोर दिया जा रहा हैं। यह वही ‘सूतक’ है जिसका भारतीय संस्कृति में आदिकाल से पालन किया जा रहा है। हमारे यहॉ बच्चे का जन्म होता है तो जन्म ‘‘सूतक’’ लागू करके मॉ-बेटे को अलग कमरे में रखते हैं, महिने भर तक, मतलब क्वारेंटाईन करते हैं। किसी की मृत्यु होने पर परिवार सूतक में रहता है लगभग 12 दिन तक सबसे अलग, मंदिर में पूजा-पाठ भी नहीं। सूतक के घरों का पानी भी नहीं पिया जाता। शव का दाह संस्कार करते है और जो लोग अंतिम यात्रा में जाते हैं उन्हे सबको सूतक लगता है, वह अपने घर में प्रवेश से पहले नहाते हैं। जिस व्यक्ति की मृत्यु होती है उसके उपयोग किये सारे रजाई-गद्दे चादर तक ‘‘सूतक’’ मानकर बाहर फेंक देते हैं। हम मल विसर्जन करते हैं तो कम से कम 3 बार साबुन से हाथ धोते हैं, तब शुद्ध होते हैं तब तक क्वारेंटाईन रहते हैं। बल्कि मलविसर्जन के बाद नहाते हैं तब शुद्ध मानते हैं।

            हमने होम हवन से समझाया कि इससे वातावरण शुद्ध होता है, आज विश्व समझ रहा है, हमने वातावरण शुद्ध करने के लिये घी और अन्य हवन सामग्री का उपयोग किया।  आरती को कपूर से जोड़ा, हर दिन कपूर जलाने का महत्व समझाया ताकि घर के जीवाणु मर सकें। वातावरण को शुद्ध करने के लिये मंदिरों में शंखनाद किये, बड़ी-बड़ी घंटियॉ लगाई जिनकी ध्वनि आवर्तन से अनंत सूक्ष्म जीव स्वयं नष्ट हो जाते हैं। जब कि वातावरण को शुद्ध करने वाली इन क्रियाओं को ढोंग का दर्जा दे दिया गया।

             शुद्धता की दृष्टि  से हमने भोजन की शुद्धताऔर शाकाहार, भोजन करने के पहले अच्छी तरह हाथ धोने, घर में पैर धोकर अंदर आने,जूते-चप्पलों को बाहर उतारने,  सुबह से पानी से नहाने की परंपरा बनाई।  कुंभ- सिंहस्थ और अमावस्या पर नदियों में शुद्धता के लिये स्नान किया, ताकि कोई भी सूतक हो तो दूर हो जाये। बीमार व्यक्तियों को नीम से नहलाया ।  चन्द्र और सूर्यग्रहण 

को सूतक मान कर  ग्रहण में भोजन नहीं करते।

 किसी को भी छूने से बचते थे, हाथ नहीं लगाते थे, दूर से हाथ जोडक़र अभिवादन करते थे। उत्सव भी मंदिरों में जाकर, सुन्दरकाण्ड का पाठ करके, धूप-दीप हवन करके वातावरण को शुद्ध करके मनाते हैं।

           हमने होली जलाई कपूर, पान का पत्ता, लोंग, गोबर के उपले और हविष्य सामग्री सब कुछ सिर्फ वातावरण को शुद्ध करने के लिये। हम नववर्ष व नवरात्री मनायेंगे, 9 दिन घरों-घर आहूतियॉ छोड़ी जायेंगी, वातावरण की शुद्धी के लिये। घर में साफ-सफाई करेंगे और घर को जीवाणुओं से क्वरेंटाईन करेंगे। पर्वो पर गोबर को महत्व दिया, हर जगह लीपा और हजारों जीवाणुओं को नष्ट किया।

 दीपावली पर घर के कोने-कोने को साफ करते हैं, चूना पोतकर जीवाणुओं को नष्ट करते हैं, पूरे सलीके से विषाणु मुक्त घर बनाते हैं।

             हम सुसंस्कृत, समझदार, अतिविकसित महान संस्कृति को मानने वाले हैं। आज हमें गर्व होना चाहिऐ कि पूरा विश्व हमारी संस्कृति को सम्मान से देख रहा है, वो अभिवादन के लिये हाथ जोड़ रहा है, वो शव जला रहा है, वो हमारा अनुसरण कर रहा है।  हमें तो गर्व होना चाहिऐ हम ऐसी देव संस्कृति में जन्में हैं जहॉ सूतक याने "क्वारेंटाईन"  और एकांत का पूरा महत्व है और ये हमारी जीवन शैली  का अभिन्न अंग हैं।


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