सखी बहनों की बनाई राखी से सजेगी भाइयों की कलाई

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08 Aug 25
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सखी बहनों की बनाई राखी से सजेगी भाइयों की कलाई

बहन भाई के त्यौहार राखी को लेकर शहर के बाजारों-घरों में तैयारियां शुरू हो गई हैं। रंग बिरंगी राखियों से दुकानें सज चुकी हैं। इसी बीच चित्तौडगढ़ के पुठोली गांव की सखी उपाया हैंडलुम टेक्टाइल यूनिट की महिलाओं द्वारा हस्त निर्मित इकोफ्रेण्डली राखियां भी भाइयों कलाई में सजने के लिए उपलब्ध है। खास बात यह है कि इस समूह से जुड़ी सभी 20 महिलाएं ग्रामीण क्षेत्र से हैं जिनमें 8 मुस्लिम महिलाएं भी हैं। समूह की महिलाएं पिछले कई वर्षों से समूह से जुड़ी हैं। इनके द्वारा  बनायी गयी राखियां चित्तौडगढ़ ही नहीं प्रदेश के अन्य 4 जिलों उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद और अजमेर सहित अन्य जगहों पर भी भेजी जा रही हैं। ये महिलाएं रूई, कपडे़ और ऊन से राखियां तैयार कर रोजगार पाने के साथ ही इको फ्रेण्डली प्रेक्टिस को बढ़ावा दे कर बेहतरीन उत्पाद उपलब्ध करा रही हैं।



 समूह से जुड़ी सखी महिला हीना बानो बताती हैं कि यहां 25 से अधिक डिजाइन में राखियां तैयार की जा रही है। हिन्दू भाईयों के लिए रंग बिरंगी और इको फ्रेण्डली राखियों से न सिर्फ इस त्यौहार में शामिल होने का मौका मिलता है साथ ही रोजगार भी मिला है। हैंडलुम टेक्टाइल यूनिट में राखियों को बनाने का प्रशिक्षण हिन्दुस्तान ज़िंक के सहयोग से मंजरी फाउण्डेशन द्वारा संचालित सखी परियोजना में डिजाइनर द्वारा दिया गया है।

सखी निर्मित राखियां उपाया ब्रांड से आनलाइन उपलब्ध

राखियां बनाने के बाद पैकेट में पैकिंग भी केंद्र की महिलाएं ही करती हैं जो कि सखी उत्पादन समिति निर्मित उपाया ब्राण्ड से उपलब्ध है। महिलाएं बताती हैं कि इन राखियों की खासियत यह है कि यह पुरी तरह इको फ्रेण्डली और किफायती है। इन्हें बनाने में किसी प्रकार के प्लास्टिक या मशीन का उपयोग नही किया गया है। ये राखियां हिन्दुस्तान जिं़क की विभिनन इकाइयों में स्टाॅल पर भी उपलब्ध होगी।

महिलाओं के लिए लघु उद्यमी का मार्गप्रशस्त कर रहा सखी कार्यक्रम

सखी परियोजना से जुडी  मांगी बाई का कहना है कि हिन्दुस्तान ज़िंक के सखी कार्यक्रम से जुड़ने से पहले गांव की ज्यादातर महिलाएं खेती या मजदूरी का कार्य करती थी लेकिन अब नये नये कार्यो के बारें में जानकारी होने से महिलाएं समूह के माध्यम से लघु उद्योग चलाने के लिए पे्रेरित हुई हैं।

शाीतल चैहान का कहना है ‘हमने सोचा ही नही था कि हम राखी के त्यौहार के लिए जो राखियां बाजार से लाते थे, आज खुद बनाने का हूनर रखते है और परिवार की आमदनी को बढ़ा सकते है। अब हमारे  गांव की महिलाएं भी सखी परियोजना के तहत् संचालित मसाला सेंटर और सिलाई सेंटर से जुड़कर अतिरिक्त आय बढा कर अपनी परिवारिक स्थिति को मजबूत रखने की सोच रखती है।

2017 में एक छोटे से ट्रेनिंग सेंटर के रूप में शुरू हुआ यह सफर, अब 200 से ज्यादा डिजाइन वाले महिला, पुरुष और होम एक्सेसरीज के वस्त्रों को बनाने वाले एक बड़े हब में बदल गया है। आज, पुठोली यूनिट में 20 कुशल महिला कारीगर काम करती हैं। इनके अलावा, उदयपुर, राजसमंद, भीलवाड़ा और अजमेर के सखी केंद्रो में 300 से ज्यादा महिलाएँ जुड़ी हुई हैं।

 

 

मुख्यमंत्री को भेजी गयी सखी द्वारा निर्मित राखियां

 

सखी महिलाओं द्वारा हस्तनिर्मित राखियां माननीय मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को भी बांधी गयी। उनके लिये विशेष रूप से राखियों को जयपुर भेजा गया, जिन्हें अनिल अग्रवाल फाउण्डेशन की प्रमुख परियोजना नंदघर और हिन्दुस्तान ज़िंक की सखी परियोजना से जुड़ी महिलाओं द्वारा उनकी कलाई में बांधी।


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