उदयपुर। श्वेताम्बर वासुपूज्य मंदिर ट्रस्ट की ओर से सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में साध्वी विपुलप्रभा श्रीजी ने कहा कि श्रावक का अर्थ श्रद्धावान, विवेकवान और क्रियावान। जो क्रिया करें उसमें श्रावक धर्म का पालन होना चाहिए। ज्ञान है तो विवेक आएगा। क्रिया जो भी करें श्रद्धा से करें। क्या हम वाकई श्रावक और श्राविकाएं हैं। श्रावक के 12 व्रत होते हैं। 5 अणुव्रत यानी छोटे छोटे व्रत। निजी जीवन भी चलता रहे और व्रत भी पालन कर लें।
पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा चाहकर भी नही करूँगा। गर्भपात नहीं करवाऊंगा। भोजन झूठा नही छोड़ें। भोजन थाली में आया है उसके पीछे किसान की कितनी मेहनत लगी है। पुण्य मजबूत है इसलिए थाली में खाना आया है। हरि वनस्पति पर नही चलूंगा। पापों का चक्र लगातार दौड़ रहा है। पाप कर्म सोते हुए भी बन्ध रहे हैं। पुरुषार्थ करना पड़ेगा तभी पुण्य होंगे। मांस, मदिरा का उपयोग नहीं करना। शहद, मक्खन से दूर रहना। अतिचार सुनते ही वैराग्य हो जाना चाहिए। अतिचार में इतनी चीजें होती हैं।
उन्होंने नवकार महामंत्र की व्याख्या करते हुए बताया कि अरिहंतों को, सिद्धों को, उपाध्यायों को, समस्त साधु-संतों को प्रणाम है। अतिचार में कितना पाप होता है अभी हमें यह भी मालूम नहीं है। प्रतिक्रमण कब क्यों करते हैं। प्रतिक्रमण में 25 मिनट क्यों लगते हैं सामायिक 48 मिनट की क्यों होती है। नरक की वेदना भुगतना सिर्फ सोचना भी दुष्कर है।