उदयपुर। न्यू भूपालपुरा के अरिहंत भवन परिसर में सैकड़ो भाई बहनों के बीच ’पर्युषण पर्व की आराधना के तीसरे दिन जैनाचार्य ज्ञानचंद्र महाराज ने कहा जो आज है, वह कल रहना जरूरी नहीं है। इसलिए ’अच्छी स्थिति में अहंकार और बुरी स्थिति में परेशान होने की जरूरत नहीं’ है। यह चक्र है, जिसे चलना ही है।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि देखो तो ख्वाब है जिंदगी,पढ़ो तो किताब है जिंदगी,सुनो तो ज्ञान है जिंदगी और मुस्कुराते रहो तो आसान है जिंदगी। हर परिस्थिति में मनोबल को मजबूत रखिए। बड़े-बड़े करोड़पति, रोड़पति होते देर नहीं लगती। इसलिए पुरुषार्थ के साथ भाग्य भी अच्छा होना जरूरी है। अच्छे भाग्य के लिए इंसान, इंसान की सेवा की जाएं, बल्कि प्राणी जगत की रक्षा की जाए। जीव रक्षा सभी धर्मों का मूल है।
आचार्य श्री ने रात्रि भोजन के नुकसान समझाते हुए कहा कि सूर्याेदय होने पर ही कमल खिलता है। सूर्यास्त के बाद कमल सिकुड़ जाता है। यही स्थिति इंसान के जठरागिनी की है, जो सूर्याेदय के बाद आहार पचाने लगती है। वैसे भी जैनियों को रात्रि भोजन का निषेध है, लेकिन अधिकांश जैनी रात्रि को खाने लगे हैं।
आचार्य श्री ज्ञानचंद महाराज के आव्हान पर 51 भाई बहनों ने रात्रि भोजन का एक वर्ष तक पूरा त्याग कर दिया। 100 से ऊपर भाई बहनों ने एक महीने में 15 दिन का त्याग किया। अवशेष भाई बहनों ने महीने में 8 दिन रात्रि भोजन छोड़ दिया। इस प्रकार पूरी सभा के सभी भाई बहनों ने रात्रि भोजन त्याग की मिसाल पेश की।