GMCH STORIES

सनातन और जैन संस्कृति दोनों में चातुर्मास का विधान

( Read 3133 Times)

21 Jul 24
Share |
Print This Page
सनातन और जैन संस्कृति दोनों में चातुर्मास का विधान

उदयपुर। श्री जैन श्वेताम्बर वासुपूज्य महाराज मंदिर में शुक्रवार को साध्वी डॉ. संयम ज्योति श्रीजी ने कहा कि चतुर्दशी से आज व्याख्यान आरंभ हुए है। चातुर्मास के ये चार महीने स्थिरता का सूचक है। वर्षाकाल में जीवों की उत्पत्ति होती है। परमात्मा ने चार महीने कहीं नही जाने का आदेश दिया। व्यवसाय में इन चार महीनों में मंदी होती है।
उन्होंने कहा कि इस समय साधु संतों की निश्रा में ज्ञानार्जन करना चाहिए। जहां चातुर्मास नही होते, वहां वर्षा नही होने वाले क्षेत्रों जैसी स्थिति होती है।
सनातन और जैन संस्कृति दोनों में चातुर्मास का विधान है। देवउठनी एकादशी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। वैदिक संस्कृति में भगवान विष्णु 4 महीने के लिए सो जाते हैं। जैन संस्कृति में ये परम्परा अक्षुण्ण है। संयम और स्वाध्याय। चतुर्दशी को सूर्यास्त से पहले सन्त एक जगह रह जाएंगे जैसे हम उदयपुर की खूंटी से बंध गए हैं।  18 देशों के राजा कुमारपाल भी पाटन से इन चार महीने बाहर नही जाते। सारी व्यवस्था मंत्रिमंडल के भरोसे छोड़ देते। भगवान कृष्ण द्वारिका से 4 महीने के लिए बाहर नही जाते।
साध्वी संयम गुणा श्रीजी ने कहा कि 12 में से ये 4 महीने बहुत महन्वपूर्ण हैं। विषय वासना, भोग वासना, रात्रि भोजन निषेध आदि से मुक्ति के लिए ये चार माह आवश्यक हैं। संतों की वाणी सुनने को मिलती है। आत्मा के मूल सम्यक दर्शन, सम्यक चारित्र, सम्यक ज्ञान आदि प्राप्त करें। सरल बनें। अपने कॉन्सेप्ट स्पष्ट रखें। साध्वी संयम साक्षी श्रीजी ने लाग्यो लाग्यो चौमासो, अब नई प्रेरणा लेनी है... सुंदर गीत प्रस्तुति दी।


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories :
Your Comments ! Share Your Openion
Subscribe to Channel

You May Like