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अच्छे कार्य करेंगे तो मुसीबतें आएंगी ही : डॉ पी सी जैन

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20 Jul 24
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अच्छे कार्य करेंगे तो मुसीबतें आएंगी ही : डॉ पी सी जैन

विद्या भवन गांधी शिक्षा अध्संययन संस्थान, बड़गांव, महाविद्यालय में पद्म भूषण श्री जगत सिंह मेहता के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में 'जल संरक्षण आवश्यक क्यों?' विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया। इस व्याख्यान के मुख्य वक्ता डॉ पी सी जैन , फिजिशियन और जल संरक्षण के लिए प्रसिद्ध (वाटर हीरो) थे।
     कार्यक्रम का प्रारंभ डॉ वीणा लोहार द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। महाविद्यालय प्राचार्य डॉ भगवती अहीर ने मुख्य वक्ता का स्वागत एवं परिचय देते हुए श्री जगत सिंह मेहता के जीवन पर भी अपने विचार रखें ।
      कार्यक्रम की संयोजक डॉ निर्मला शर्मा ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए बताया  कि श्री जगत सिंह मेहता भारत के विदेश सचिव रहे उनकी विदेश नीति  राष्ट्र स्तर पर अलग भी महत्व रखती है ।श्री जगत सिंह मेहता पर्यावरण प्रेमी भी थे । वे ग्रामीण विकास पर बल देते थे अतः उदयपुर के 400 गांवों को विकसित करने का संकल्प लिया।उनके कार्य एवं विचार अनुकरणीय है।
     व्याख्याता डॉ सुषमा इंटोदिया ने श्री जगत सिंह मेहता की विदेश नीति पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए उनके विचारों से अवगत करवाया। वनशाला शिविर उन्हीं की देन है जिसको बीएड पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया है।
     मुख्य वक्ता डॉ पी सी जैन ने अपने वक्तव्य में जल संरक्षण के छोटे-छोटे अनेक तरीके और प्रयोग बताएं कि किस तरह से हम वर्षा का जल सुरक्षित कर सकते हैं और जो कुंए और ट्यूबवेल सूख गए हैं उनमें पानी का पुनः प्रवाह ला सकते हैं। उन्होंने अमेरिका और बेंगलुरु के सूखे क्षेत्रों को पीपीटी के माध्यम से बताते हुए यह बताया कि यदि हमने समय रहते जल का संरक्षण नहीं किया तो हमारे यहां भी इस तरह की स्थिति आने में देर नहीं लगेगी। आरो एवं एसी के प्रयोग से पानी बहुत अधिक नष्ट होता है। इस पानी को भी हमें बचाना चाहिए और उसका समुचित प्रयोग का समुचित प्रबंध करना चाहिए। फ्लोराइड का हमारे शरीर पर कितना प्रभाव पड़ता है इसको उन्होंने बच्चों को साथ लेकर रोल प्ले के माध्यम से प्रत्यक्ष बताया कि यदि हम वर्षा के जल को पुनः धरती में समाहित नहीं करेंगे तो आने वाले समय में फ्लोराइड से हम सभी ग्रसित हो स्टैचू की तरह हो जाएंगे। कार्यक्रम के अंत में खूबसूरत एक्टिंग एवं 'पाणीड़ो बरसा दे मारा राम रे' पर आधारित अपने स्वयं द्वारा लिखे गए गीत के माध्यम से पानी को बचाने का संदेश दिया और कहा कि और यह मेरा 1185 वां कार्यक्रम है और यदि जल संरक्षण पर जो मैंने प्रयोग बताएं उनको प्रयोग में नहीं लाएंगे तो इस तरह के कार्यक्रम की कोई सार्थकता नहीं होगी। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद डॉ कंवराज सुथार ने अदा किया।


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