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 लोक नाट्य एवं उनकी रंगभाषा विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी  प्रारम्भ

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10 Dec 23
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 लोक नाट्य एवं उनकी रंगभाषा विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी  प्रारम्भ

भारतीय लोक कला मण्डल के संस्थापक स्व. पद्मश्री देवीलाल सामर की स्मृति में दिनांक 09 एवं 10 दिसम्बर 2023 से भारतीय लोक कला मण्डल में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘‘लोक नाट्य एवं उनकी रंगभाषा’’ का आयोजन राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान पारम्भ हुआ।

भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डॉ. लईक हुसैन ने बताया कि भारतीय लोक कला मण्डल में राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के तत्वावधान में गत वर्ष कि भाँति इस वर्ष भी पद्श्री देवीलाल सामर स्मृति ‘‘लोक नाट्य एवं उनकी रंगभाषा’’ विषय पर पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि कर्नल, प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत, कुलपति राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर, कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री रमेश बोराणा, पूर्व अध्यक्ष राजस्थान संगीत नाटक अकादमी एवं उपाध्य मेला प्राधिकरण, विशिष्ट अतिथि डॉ. जीवन सिंह वरिष्ठ साहित्यकार एवं लोक कला मर्मज्ञ, डॉ. के.के शर्मा- वरिष्ठ साहित्यकार, श्रीमती बिनाका जैश मालु -अध्यक्ष राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर, एवं श्री राजेन्द्र मोहन शर्मा, सचिव प. जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी, जयपुर थे।  संगोष्ठी के प्रारम्भ में सभी गणमान्य अतिथियों ने पद्मश्री देवीलाल सामर की तस्वीर पर माल्यापर्ण एवं दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम की शुरूआत की।

उसके पश्चात दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में आए सभी अतिथियों का स्वागत एवं परिचय  भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डॉ. लईक हुसैन ने कराया । उद्घाटन सत्र के प्रारम्भ में संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि  डॉ. जीवन सिंह ने अपने उधबोधन में लोक नाट्य की वर्तमान दूर्दशा की स्थिति को बताते हुए कहा कि इसके जिम्मेदार भी पूंजीवादी एवं शहरी लोग है। लोक कलाओं का संरक्षण तो गाँव के लोगों ने किया है। लोक नाट्य की भाषा पर बात करते हुए उन्होंने गाँव में होन वाली रामलीलाओं के उदारहरण प्रस्तुत कर बताया कि लोक नाट्यों की भाषा लोक में ही निहीत होती है। लोक कलाओं की भाषा का चयन स्वयं लोक द्वारा ही बड़ी ही सहजता से किया जाता है।
उसके पशचात्  श्री राजेन्द्र मोहन शर्मा, सचिव प. जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी, जयपुर ने लोक नाट्यों एवं कहानी लेखन पर की गई कार्यशालाओं के अनुभव साझा करते हुए कहा कि अगर लोक कलाओं अथावा लोक नाट्यों को जीवंत रखना है तो युवा पीढ़ी खासकर बच्चों को इसमें प्रशिक्षित करने का कार्य किया जाना चाहिए। इस अवसर पर राजस्थान साहित्य अकादमी, के अध्यक्ष दूलाराम सहारण ने पद्मश्री देवीलाल सामर को याद करते हुए कहा कि पद्मश्री देवीलाल सामर ने अपना सम्पूर्ण जीवन लोक कलाओं को समर्पित कर दिया ऐसी पुण्य आत्मा को में वंदन करता हूँ उन्होंने कहा कि लोक नाटक लोक का समर्पित होते है।  वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. के.के शर्मा ने अपने उद्बोधन में लोक कलाओं की वास्तविक्ता उसके विविध पहलुओं पर चर्चा करते हुए  लोक एवं शास्त्रीय नाटकों की समानताओं पर प्रकाश डाला।  इसके पश्चात कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कर्नल, प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत, कुलपति राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर, ने विभिन्न वक्ताओं द्वारा दिये गये उद्बोधनों को इंगित करते हुए लोक गीतों, लोक संगीत एवं लोक नाट्यों के महत्व पर प्रकाश डाला। श्रीमती बिनाका जैश मालु -अध्यक्ष राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर ने कहा कि लोक में आनंद, उल्लास, उन्माद है। लोक हर खुशी को अभिव्यक्त करता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान घटनाओं अथवा परिपेक्ष को ध्यान में रखते हुए लोक नाट्य लिखे जाने चाहिए जिससे यह लोक कलाएँ जीवंत रह पाएगी।  कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री रमेश बोराणा, पूर्व अध्यक्ष राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, ने कहा कि  लोक नाट्यों की वर्तमान में स्थिति काफी दयनीय है और इस स्थिति के जिम्मेदार हम सभी है आज ऐसी स्थिति है कि लोक नाट्यों को देखने के लिए दर्शक नहीं है। उत्सवों को मात्र इंवेट की तरह आयोजित किया जा रहा है। सच कहे तो हमारे भीतर से उत्स ही गायब हो गया है। लोक को ब्रांड बनाकर बेचा जा रहा है। लोक कला ग्रामीण कला नहीं बल्कि ग्रामीण दर्शकों ने उसे जीवंत रखा है।  
राजस्थान साहित्य अकादमी, द्वारा घोषित पुरस्कार विजेताओं को प्रदान किए गए। राजस्थान साहित्य अकादमी की संचालिका व सरस्वती सभा के सदस्य किशन दाधीच ने बताया कि डॉ. आलमशाह खान अनुवाद पुरस्कार एस. भाग्यम शर्मा, प्रभा खेतान प्रवासी रचनाकार पुरस्कार रामा तक्षक, विजय सिंह पथिक साहित्यिक एवं रचनात्मक पत्रकारिता पुरस्कार कथादेश के सम्पादक हरिनारायण तथा मरूधर मृदूल युवा लेखन पुरस्कार दर्पण चण्डालिया को दिया गया।

 उद्घाटन सत्र के पश्चात प्रथम सत्र का आयोजन किया गया। सत्र की अध्यक्षता डॉ. के.के शर्मा- वरिष्ठ साहित्यकार ने की सत्र के प्रारम्भ में डॉ. हुसैनी बोहरा ने लोक नाट्यों इतिहास एवं उसके विविध प्रकार पर प्रकाश डाला। इसके पश्चात मुम्बई महाराष्ट्र की लोक कला अकादमी, के निदेश डॉ. गणेश चन्द शिवे ने महाराष्ट्र का तमाशा विषय पद अपना पत्रवाचन करते हुए कहा कि पहले रम्मत या तमाशे लोगों द्वारा लोगों के लिए कि जाते थे। इसके साथ ही उन्होंने महाराष्ट में किये जाने वाले विविध लोक नाट्यों के बारे में विस्तार से बताया। सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. के.के. शर्मा ने सत्र में पढ़े गये दोनों पत्र वाचकों को सराहा और कहा कि  वर्तमान समय में हमें लोक नाट्यों के विविध पक्षों पर कार्य करने की आवश्यकता है जिससे यह भावी पीढ़ी तक पहुँच सके। प्रथमसत्र का संचालन कर रहे डॉ. हेमेन्द्र चण्डालिया ने सत्र में उपस्थित सभी श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया।  

उन्होंने बताया दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का दूसरा तथा समापन सत्र दिनांक 10 दिसम्बर 2023 को प्रातः 10 बजे से आयोजित होगा।


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