GMCH STORIES

उदयपुर के संस्थापक महाराणा उदय सिंह की ४९८वीं जयंती

( Read 18521 Times)

31 Aug 20
Share |
Print This Page
उदयपुर के संस्थापक महाराणा उदय सिंह की ४९८वीं जयंती

उदयपुर ।  विश्वस्तर पर पहचाने जाने वाले अरावली पहाडयों की गिर्वा घाटी के पीछोला झील किनारे बसे उदयपुर शहर के संस्थापक मेवाड के ५३वें एकलिंग दीवान महाराणा उदय सिंह (द्वि.) की आज ४९८वीं जयंती है। महाराणा उदय सिंह, महाराणा संग्राम सिंह की रानी कर्णावती (कर्मवती) के द्वितीय पुत्र थे।

महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन उदयपुर के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह ने बताया कि उदयपुर के संस्थापक महाराणा उदय सिंह का जीवन बचपन से ही संघर्षभरा रहा। महाराणा विक्रमादित्य चित्तौड की गद्दी पर बैठे तब उदय सिंह छोटे थे। ई.स. १५३५ में गुजरात के बहादुर शाह ने चित्तौड पर दूसरी बार आक्रमण किया तब उनकी माता रानी कर्णावती ने मेवाड की रक्षा के लिए जौहर कर दिया था। एक दिन बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर चित्तौड पर अधिकार कर लिया तब किसी तरह पन्नाधाय ने अपने पुत्र का बलिदान दे मेवाड के होने वाले स्वामी बालक उदय सिंह के प्राणों की रक्षा की। मातृभू की रक्षा में हुए ऐसे अनेकों बलिदानों से मेवाड का इतिहास विश्वभर में अद्वितीय है। उदयपुर नगर की स्थापना कर महाराणा उदय सिंह ने मेवाड को सदा-सदा के लिए सुरक्षित कर दिया।

मध्यकालीन मेवाड की सैन्य नीति के निर्माता महाराणा उदय सिंह द्वितीय

महाराणा उदय सिंह द्वितीय के पूर्व मेवाड की सैन्य नीति राजपूत योद्वाओं द्वारा युद्व स्थल पर लडते हुये विजय अथवा वीरगति प्राप्त करने की थी। पराजय की स्थिति में राजपूत महिलाएँ जौहर करके अपने स्वाभिमान की रक्षा करती थी। उदय सिंह जी महाराणा संग्राम सिंह के एकमात्र जीवित पुत्र थे और उनके प्राणों की रक्षा करके ही मेवाड राज्य को अक्षुण्ण रखा जा सकता था, इस स्थिति को मेवाड के सरदारों व प्रजा ने भलीभांति समझ लिया था। इसके अतिरिक्त मेवाड की भोगौलिक, व सामरिक स्थिति भी अन्य राज्यों के मेवाड पर आक्रमण का कारण थी। गुजरात व मालवा जाने वाले व्यापारिक मार्ग में चित्तौड केन्द्र था अतः मार्ग पर अधिकार करने के लिये मेवाड पर आक्रमण अवश्यंभावी था। इसी स्थिति को ध्यान में रखकर महाराणा उदय सिंह ने मेवाड की युद्ध प्रणाली व सैन्य-नीति में व्यापक परिवर्तन किसे। सर्वप्रथम, सन् १५५३ *. में उदयपुर की स्थापना करके अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया क्योंकि उदयपुर गिरवा की पहाडयों में स्थित है अतः संकट के समय इसे राजधानी के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है। दूसरा, मैदानी युद्ध के स्थान पर पहाडों का उपयोग करके छापामार युद्ध प्रणाली का विकास किया। इस युद्ध प्रणाली का प्रयोग कालांतर में मेवाड के अन्य महाराणाओं द्वारा भी किया गया। इसी सैन्य नीति का एक महत्वपूर्ण भाग था राज्य के साथ-साथ उसके संघर्ष को दिर्घजीवी रखने के लिये युद्ध में महाराणा व उनके परिवार को सुरक्षित रखना। इसी नीति के कारण सन् १५६७-६८ *. में चित्तोड पर मुगल आक्रमण के समय मेवाड के सरदारों ने महाराणा उदय सिंह द्वितीय व उनके परिवार को युद्ध स्थल से सुरक्षित बाहर निकाल दिया व स्वयं लडते हुये वीरगति को प्राप्त हुए। इस आक्रमण के समय चित्तोड में अंतिम बार जौहर हुआ।

 

महाराणा उदय सिंह कालीन निर्माण

महाराणा उदयसिंह ने उदयपुर नगर की स्थापना करके राजमहल का निर्माण प्रारम्भ करवाया जिसमें रायआंगण, नीका की चौपाड, रावला (वर्तमान में कोठार) आदि का निर्माण करवाया। उदयपुर की सुरक्षा, सिंचा* व पेयजल के उद्देश्य से उदयसागर का निर्माण करवाया। महाराणा के शासनकाल में उदयश्याम मंदिर आदि के भी निर्माण किये गये।

 

 


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Udaipur News
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like