रविवार शाम शिल्पग्राम के दर्पण प्रेक्षागृह में डाक्टर कामतानाथ की कहानी पर आधारित नाटक ‘संक्रमण’ का यादगार मंचन देखने को मिला । पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र,उदयपुर द्वारा प्रत्येक माह के प्रथम रविवार को आयोजित होने वाले मासिक नाट्य संध्या रंगशाला के तहत मंचित यह नाटक “अभिनय गुरूकुल एक्टर्स स्टूडियो, जोधपुर” की प्रस्तुति थी |
नाटक के परिचय में ही कथासार बता दिया गया कि संक्रमण कहानी मुख्य रूप से पिता, पुत्र और माँ के बीच रोजमर्रा के संघर्ष की कहानी है | पिता अपने रोजमर्रा के संघर्ष, त्याग और जीवन के अनुभवों का महत्व सिद्ध करता है | उसकी एकमात्र श्रोता उसकी पत्नी होती है । पिता को अपने जीवन का सत्य अपने नजरिए से सार्थक लगता है लेकिन बेटा अपने पिता के नजरिए पर सवाल उठाता रहता है क्योंकि उसने वह संघर्ष, बलिदान और अनुभव नहीं देखा है जिससे उसके पिता गुजरे हैं । इन दोनों नजरियों के टकराव में पिसती है मां, जो किसी भी पक्ष में खड़ी नहीं हो पाती | यह नाटक पिता और पुत्र के बीच तथाकथित ‘पीढ़ी के अंतर’ और ‘वैचारिक मतभेद’ पर सवाल उठाता है ।लेकिन बीतते हुए समय के साथ पिता का झक्की व्यवहार एक तरह का संक्रमण बन जाता है जो आगे चलकर उसके बेटे में फैलता है। वही बेटा जो अपने पिता पर सवाल उठाता रहता था, जब वह खुद पिता बनता है, तो वह खुद को भी उसी स्थान पर पाता है।
एक साधारण से मध्यम वर्ग के परिवार की इस कहानी का सार पता होने के बावजूद नाटक की ज़बरदस्त पकड़ ने दर्शकों को अपना बना लिया | कलाकारों के उम्दा अभिनय और सुलझे हुए निर्देशन से दर्शक भावनात्मक रूप से जुड़े रहे और नाटक के अंत में खड़े होकर कलाकारों का अभिवादन किया | माँ के किरदार में स्वाति व्यास ने अपने चरित्र को बखूबी से जीया | उन्होंने संवादों की भावपूर्ण अभिव्यक्ति के अलावा साथी कलाकारों के संवादों पर अपनी सूक्ष्म प्रतिक्रियाओं से बहुत प्रभावित किया | पति से झगड़ना ,शर्माना,सुबकना और उसके गाने पर चाकू से रिदम देना आदि दृश्यों में स्वाति ने कमाल का अभिनय किया | भवानी सिंह चौहान एक मंझे हुए वरिष्ठ कलाकार हैं | उन्होने पात्र की मांग के अनुसार खुद को ऐसा ढाला कि दर्शकों को यह लगने ही नहीं दिया कि वो अभिनय कर रहे हैं | उनका सुर में गाना, खीजना,गुस्सा करना, डींग हांकना,हताश होना और पत्नी से झगड़ा कर उसे मनाना, सभी प्रसंगों में उन्होंने अपनी विलक्षण अभिनय प्रतिभा का परिचय दिया |
युवा कलाकार राजेश बिश्नोई ने बेटे भूमिका में युवा पीढ़ी की आधुनिक सोच की वकालत की | पिता के झक्की स्वभाव और बेतुके व्यवहार पर बहुत कटाक्ष करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी | नाटक के अंतिम दृश्य में गुमसुम युवा और चिंता मग्न बाप की क्रियाओं से खासा प्रभावित किया |
तीनों कलाकार एक दूसरे के पूरक बने | अद्भुत, भय, रौद्र , श्रृंगार, हास्य, वीभत्स, वीर और करुण सभी रसों से भरी नाटक की नैया में दर्शकों को सवारी कराते हुए कहीं मौज कराई तो कहीं झटके दिए | दो पीढ़ियों के बीच की वैचारिक खाई का अनुभव कराते सोचने को मजबूर कर गए | नाटक में योग्य संगीत और ध्वनि प्रभाव से प्रफुल्ल बोराणा ने और रंग दीपन में जयंत कच्छवाहा ने बिलकुल सही समय पर सही योजना से नाटक में जान डाल दी | मंच सहायता तनुज और द्रवित की थी |
अपनी मौलिक परिकल्पना और कुशल निर्देशन के सहारे अरू व्यास ने कहानी को शानदार मंचीय प्रस्तुति बनाया | उन्होंने रंगमंच के सभी तत्वों और रसों का बखूबी के साथ उपयोग करते हुए दृष्यों और संवादों को काफी रोचक बनाया | एक श्रेष्ठ डिज़ाईनर की भांति उन्होंने सेट,प्रकाश,संगीत और ध्वनि प्रभाव पर भी काफी गहराई से काम किया | इस उपलब्धि के लिए अरु व्यास बधाई के पात्र हैं |
सामयिक घटनाओं को जोड़ते हुए उन्होंने बहु द्वारा घरेलु ज़रूरी सामान अमेज़न से मंगाने के संवाद में उत्स्फूर्त ठहाका लगवाया | छोटी सी राय ... जब अमेजोन की बात शामिल की तो इसी काल खंड में बेटे द्वारा मोबाइल का अत्यधिक इस्तेमाल उचित प्रतीत होता....और अंत में मशीन टूल्स ढूँढते हुए बेटा मोबाइल पर आने वाली काल को भी नज़रंदाज़ करते हुए काम में जुटा रहता तो ऑडियो विजुवल इफेक्ट ( दृश्य श्रव्य प्रभाव ) और भी बढ़ जाता |
इस शानदार नाटक की मंचन करने वाली और कराने वाली संस्था बधाई की हकदार हैं | ---विलास जानवे ---