उदयपुर । आचार्य भिक्षु ने पंथ चलाने का कभी प्रयास नही किया। उन्होंने पहले खुद को आत्म कल्याण रास्ते पर प्रतिष्ठित किया और फिर मार्ग दर्शन दिया। ये विचार मुनि प्रसन्न कुमार ने मंगलवार को तेरापंथ धर्मसंघ के स्थापना दिवस और गुरु पूर्णिमा पर आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि किसी भी धर्मसंघ का गुरु सही रास्ते पर नही होगा तो जनता भटक जाएगी। केवल दिखावा, चमत्कार, आडंबर वाले तथाकथित गुरु जनता को भटका देते हैं। अज्ञान के अभाव में गुरु की पहचान नहीं होने पर रास्ता भटकते हैं और आज भी भटक रहे हैं। उन्होंने कहा कि गुरु तो तुला (तराजू) होते हैं। को* व्यापारी वस्तु को तौलता है तो दोनों कांटों पर उसका ध्यान होता है। पलडे भले ही ऊपर नीचे हो सकते हैं, मूर्ख अज्ञानी पलडा देखेगा लेकिन ज्ञानी भक्त गुरु का आचार, विचार देखेगा कांटे की तरफ नहीं। अज्ञानी चमत्कार, बडा आश्रम, भीड से प्रभावित हो जाता है ऐसे ही तेरापंथ की नींव आचार विचार से लगी हु* है।
आज के दिन जनता, युवाओं और बच्चो को बोध कराया जाता है। गुरु की पहचान करा* जाती है।
२५० वर्ष हो गए। एक आचार्य परंपरा के तहत आज ११ वें आचार्य महाश्रमण हैं। एकनाचार्य के तहत करीब ८०० से अधिक साधु-साध्वियां हैं जो अनुशासित रूप से उनके निर्देशों का पालन करते हैं।
सभाध्यक्ष सूर्यप्रकाश मेहता ने स्वागत किया। सरंक्षक शांतिलाल सिघवी, अणुव्रत समिति के गणेश डागलिया ने तेरापंथ की जानकारी दी। महिला मंडल ने स्वागत गीत की प्रस्तुति दी।