वीर दुर्गादास की 387 वीं जयंती पर व्याख्यानमाला, युवाओं में निष्ठा व त्याग का संदेश

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09 Aug 25
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वीर दुर्गादास की 387 वीं जयंती पर व्याख्यानमाला, युवाओं में निष्ठा व त्याग का संदेश

उदयपुर, क्षत्रिय विकास संस्थान में राष्ट्रीय वीर दुर्गादास राठौड़ की 387वीं जन्मजयंती के अवसर पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य वीर दुर्गादास जी के जीवन, उनके त्याग, निष्ठा एवं समर्पण जैसे अमूल्य गुणों को वर्तमान पीढ़ी तक पहुँचाना और युवाओं में राष्ट्र एवं समाज के प्रति कर्तव्यनिष्ठा की भावना का संचार करना रहा। पुष्पांजलि के बाद कार्यक्रम की शुरुआत डॉ कमल सिंह बेमला द्वारा अतिथियों एवं प्रतिभागियों के स्वागत संबोधन से हुई। उन्होंने वीर दुर्गादास जी की ऐतिहासिक महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस प्रकार के आयोजन नई पीढ़ी को अपने इतिहास एवं संस्कृति से जोड़ने का सशक्त माध्यम हैं। चंद्रवीर सिंह करेलिया ने उपस्थित अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने श्री क्षत्रिय विकास संस्थान जो 1982 में स्थापित हुआ पर भी जानकारी प्रदान की। 

उद्बोधन क्रम में संस्थान संस्कृतिक सचिव रणबीर सिंह जोलावास ने कहा कि वीर दुर्गादास जी के जीवन के उद्धरणों में हमें निष्ठा, त्याग, समर्पण, कर्त्तव्यपरायणता एवं नारी सम्मान की प्रेरणा मिलती है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी धर्म, संस्कृति और सम्मान की रक्षा सर्वोपरि है।औरंगज़ेब के अत्याचारों के समय वीर दुर्गादास ने महाराजा अजीत सिंह को 30 वर्ष कठिन संघर्ष  कर सुरक्षित मारवाड़ की गद्दी पर बिठाना। मेवाड़ के महाराणा राज सिंह के साथ मिलकर राजपूताना की स्वतंत्रता के लिए सतत संघर्ष तथा प्यासे शत्रु को पानी पिलाने जैसे प्रसंगों का उल्लेख किया। विशिष्ट अतिथि और वक्ता डॉ कमलेंद्र सिंह राणावत ने अपने संबोधन में कहा कि वीरवर योद्धाओं पर आधारित व्याख्यानमाला एवं युवाओं को उनके जीवन से परिचित कराना अत्यंत आवश्यक है। इससे युवाओं में न केवल इतिहास के प्रति गर्व का भाव उत्पन्न होगा, बल्कि यह आवश्यक जीवन-कौशल का भी संचार करेगी। बालकों के संस्कार निर्माण पर उन्होंने विशेष जोर दिया जिसकीआज महती आवश्यकता है। व्याख्यानमाला के मुख्य वक्ता डॉ विवेक भटनागर ने कहा कि मेवाड़ और मारवाड़ के ऐतिहासिक संबंध एवं राजपूताना की रक्षा में वीर दुर्गादास का योगदान अतुलनीय है। वे केवल मारवाड़ ही नहीं, पूरे राजपूताना और भारत के महापुरुष हैं, जिनका स्मरण हमें सदैव प्रेरणा देता है। कार्यक्रम के अंत में संस्थान के उपाध्यक्ष नवल सिंह जुड़ ने सभी वक्ताओं, अतिथियों और श्रोताओं का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि संस्थान भविष्य में भी ऐसे प्रेरणादायी आयोजनों को निरंतरता देगा, जिससे युवाओं को अपने गौरवशाली अतीत से जोड़कर उन्हें राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित किया जा सके। भारत सिंह दवाणा और कल्याण सिंह राणावत ने भी अपने उद्बोधन मे वीरवर की कई घटनाओं को उद्धृत किया और भगतसिंह बेमला ने श्री तन सिंह जी द्वारा लिखित लौट के आ मेरे दुर्गादास... सहगीत प्रस्तुत किया। व्याख्यानमाला में क्षत्रिय विकास संस्थान संस्थापक भवानी सिंह जोलावास, भंवर सिंह ग़ागरोल, इंद्र सिंह जोलावास, महेंद्र सिंह पाखंड, जितेंद्र सिंह दवाणा, ईश्वर सिंह बेमला, कुंदन सिंह मुरौली, शिवराजसिंह रूपाहेली, हेमेंद्र सिंह रामदेरिया, महेंद्र सिंह जोलावास आदि गणमान्य समाजजन उपस्थित रहे। कृष्णदेव सिंह दवाणा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

 


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