उदयपुर, एशियन हेड एंड नेक कैंसर फाउंडेशन व पेसिफिक डेंटल कॉलेज, देबारी, उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में पेसिफिक डेंटल कॉलेज, देबारी में आज से दो दिवसीय डेंटल ऑन्कोलॉजी एंड रिसर्च 2025 पर द्वितीय अन्तर्राष्ट्रीय कान्ॅफ्रेन्स शुरू हुई। काॅन्फ्रेन्स का उद्घाटन आरएनटी के पूर्व प्राचार्य डाॅ. ए.क.ेगुप्ता,डेन्टल कोन्सिल आॅफ इंडिया के संयुक्त सचिव डाॅ. अभिषेक सिंह व डाॅ. जे.एस.बालिया ने किया।
डाॅ. गुप्ता ने इस सम्मेलन को दंत चिकित्सा क्षेत्र में क्रान्ति बताया। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दंत चिकित्सकों की भूमिका उस समय बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है जब उनके पास अनजान ओरल कैन्सर का रोगी पंहुचता है। उसे ठीक का करने का दंत चिकित्सक के पास भी चैलेन्ज होता है।
इस अवसर पर आयोजित प्रेस वार्ता में आयोजन चेयरमैन डाॅ. शक्तिसिंह देवड़ा ने बताया कि देश में कैंसर के अन्तर्गत सबसे ज्यादा ओरल कैन्सर से मौतें हो रही है। इससे बचाव या पहली ही स्टेज में इस कैंसर को पकडने के लिए डेन्टिस्ट की भूमिका अब महत्वपूर्ण हो गई है। इसके लिए देश के ही नहीं एशिया के लगभग सभी देशों में ओरल कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए डेन्टिस को ट्रेनिंग दी जा रही है। उन्होंने चिन्ता जताते हुए कहा कि ओरल केंसर में भारत वल्र्ड कैपिटल बनता जा रहा है। सभी कैंसर में 30 प्रतिशत मरीज ओरल कैंसर के सामने आ रहे हैं। इसीलिए हमनें भारत के साथ ही एशिया के कई दशों में जैसे नेपाल, बांग्लादेश फिलिपिन्स,मलेशिया श्रीलंका जैसे देशों में भी डेन्टिस्टों के ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित किये जा रहे हैं। वहंा के चिकित्सक भी इसमें भगा ले रहे है।
पेसिफिक् डेन्टल कॉलेज में हो रही यह कांफ्रेंस पूरे एशिया में वर्चुअल रूप से देखी जा रही है और विचारों का आदान प्रदान किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वह पाकिस्तान जैसे देश में भी इस सम्बन्ध में काम करने को तेयार हैं क्योंकि डॉक्टर के लिए किसी तरह का बन्धन या कोई बाउण्ड्री नहीं होती है। पूरे देश में इस समय 4 लाख डेन्टिस्ट हैं। अगर एक डेन्टिस्ट रोजाना एक मरीज की जांच करे और ओरल कैंसर का पता लगाता है तो एक महीने में यह आंकड़ा एक करोड़ से भी ज्यादा का हो जाएगा। अगर एक महीने में एक करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग हो जाती है तो डॉक्टर और सरकार भी कैंसर जैसे गम्भीर रोग को बढने से रोक पाएगी और ऐसा करने से लोगों को नया जीवन मिल सकेगा।
आयोजन सचिव डाॅ. मोहितपालसिंह ने बताया कि ओरल कैंसर के लिए बचने का सही और एक मात्र उपाय यही है कि हम डेन्टिस्ट को इस सम्बन्ध में ट्रेनिंग दें। डेन्टिस्ट ही वो जरिया हो सकते हैं जो पहली ही स्टेज में कैंसर का पता लगा सकते हैं। कई बार लोग कैंसर के बारे में हल्की सी भनक लगते ही वह गायब हो जाते हैं। डेन्टिस्टों के पास कई बार लोग दांतों के इलाज के लिए आते हैं। अगर डॉक्टर उन्हें सीधे तौर पर नहीं बल्कि उन्हें बायोप्सी करवाने की सलाह देते हैं। लेकिन इसका नाम सुनते ही वह डर के मारे गायब हो जाते हैं। उन्हें लगता है इसकी जांच करवाना मतलब हमें कैंसर हैं। जबकि यह तो सामान्य जांच का एक हिस्सा होता है। बस यहीं से मरीज की लापरवाही शुरू हो जाती है। धीरे- धीरे वह कैंसर आकार लेने लग जाता है और एक समय ऐसा आता है जब कैंसर की लास्ट स्टेज आ जाती है। लास्ट स्टेज यानि कैंसर की फोर्थ स्टेज में जब मरीज डॉक्टर के पास आते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। ऐसे 20 प्रतिशत केसों में मुश्किल से 5 प्रतिशत लोग ही बच पाते हैं।
डाॅ. भगवानदास राय ने बताया कि डॉक्टर तो हमेंशा चाहता है कि मरीज की जान बचे। वह पूरा मुंह खोल सके। भर पेट खाना खाये। लेकिन ऐसा सम्भव होगा जब कैंसर का पहली ही स्टैज यानि प्रारम्भिककाल में ही पता लगेगा। अब यह पता लगाना आसान हो गया है। इसमें डेन्टिस्टों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है।
आयोजन को-चेयरमैन डाॅ. हिमांशु गुप्ता ने कहा कि अब तो शहर-शहर और गांव- गांव में डेन्टिस्ट मौजूद हैं। अगर डेन्टिस्ट यह काम करते हैं और ओरल कैंसर का पहली ही स्टेज में पता चल जाता है तो कैंसर पीडितों सौ प्रतिशत बचाया जा सकता है। उन्होंने ओरल कैन्सर रोगियों का फोलोअप बहुत आवश्यक है।
दो दिवसीय सम्मेलन देशभर से 200 से अधिक डेलीगेट्स, शोधकर्ताओं और दंत चिकित्सा विद्यार्थी भाग लें रहे है। जिसमें वे डेंटल ऑन्कोलॉजी के क्षेत्र में हाल ही में हुए शोध और प्रगतियों पर अपने वैज्ञानिक शोधपत्र और पोस्टर प्रस्तुत करेंगे।