पावापुरी। ( सिरोही ) तेरापंथ के धर्मगुरू आर्चाय श्री महाश्रमणजी ने कहा कि जीवन में त्याग तपस्या का भाव रखे ओर पाप कर्म के बन्धन से बचे। आचार्य श्री आज सिरोही जिले के प्राचीन आर्य तीर्थ दत्ताणी में विहार के वक्त आयोजित एक धर्म सभा में कहे। उन्होंने कहा कि मम्मत्व की जगह सेवा के भाव रखें। किसी की निंदा व सराहना से बचे। निंदा करने से दोष लगता हैं। उन्होने कहा कि साधु का पद इसलिए बडा होता हैं क्योंकि उनका त्याग व तपस्या महान हैं। उन्होनें श्रावक-श्राविकाओं से कहा कि वे जीवन में सम्यक ज्ञान-दर्शन व चारित्र की पालना कर जीवन को धन्य बनावें।
आचार्य श्री के शिष्य श्री जिनेश महाराज ने कहा के श्रद्धा में कमी झुठ-सच नही होता ओर साधना से गुस्सा नही आता। राग-द्वेष मोहनीय कर्म के बीज हैं इसलिए उनसे हमे बचना चाहिए।
आज सुबह रेवदर से विहार करते हुऐ आचार्यश्री के साथ धवल सेना आर्यरक्षित तीर्थ ‘‘ दत्ताणी ‘‘ पहुंचा तो ग्राम पंचायत दत्ताणी के सरपंच नीतिन हीराभाई अग्रवाल व दत्ताणी तीर्थ ट्रस्ट के चेयरमेन मोहनभाई व ट्रस्टी पोपट भाई जैन के साथ ग्रामीणो ने उनका सामैया कर स्वागत किया ओर कहा कि आचार्यश्री के आगमण से दत्ताणी ग्रामवासी धन्य हो गए।
पोपट भाई ने स्वागत करते हुऐ कहा कि आचार्यश्री ५४ हजार किमी. की यात्रा करते हुऐ देश में मानव को जाग्रत कर उन्हे इंसान बनने के लिए प्रेरित कर जैन दर्शन को जन जन तक पहुंचा रहे हैं। आचार्यश्री के साथ बडी तादाद मे उनके भक्त देश भर से विहार मे पहुंच कर दर्शन लाभ ले रहे हैं। इस विहार यात्रा में लगभग १५० से अधिक साधु-साध्वी भगवंत शामिल हैं। इस अवसर पर अचलगछ सम्प्रदाय के मुनिराजश्री मोक्षसागरजी व वीर शेखर मुनिराज ने आचार्यश्री से भेंट कर उनको वंदन किये ओर धर्मसभा में अपने विचार रखते हुऐ कहा कि व्यक्ति को पाप से बचना चाहिए।
मुनिश्री आज आबुरोड में कल सियावा में
मुनिराजश्री कीर्ति महाराज ने बताया कि आचार्यश्री दत्ताणी से कल मानपुर पहुंचेगे ओर वहॉ पर प्रजापिता बह्रमाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में दादीश्री एवं उनके भक्त उनसे मिलेगें। मानपुर से १७ फरवरी को आबुरोड रीको अम्बाजी क्षेत्र में पहुंचेगें। वहॉ से वे सियावा मार्ग पर स्थित श्री दिगम्बर जैन मंदिर पहुंच कर वहॉ रात्रि विश्राम करेगें। आबुरोड जैन संघ के अध्यक्ष पोपटभाई के नेतृत्व में आबुरोड दिगम्बर, श्वेताम्बर व स्थानकवासी जैन संघ के प्रतिनिधियों ने आबुरोड शहर मे होकर विहार कर सभी को दर्शन वंदन का लाभ देने की विनती की। आचार्य श्री ने सभी को आर्शीवाद देते हुऐ कहा कि उनकी भावनाओं को ध्यान में रखा जायेगा।