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डॉ. मदन के चित्रों की प्रदर्शनी दिल्ली में सम्पन्न

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14 Feb 20
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डॉ. मदन के चित्रों की प्रदर्शनी दिल्ली में सम्पन्न
नई दिल्ली । नई दिल्ली के तानसेन मार्ग स्थित त्रिवेणी कला दीर्घा में आयोजित राजस्थान के कोटा (Kota) जिले के प्रसिद्ध युवा चित्रकार डॉ. मदन मीणा द्वारा चित्रांकित मशूहर पेंटिंग्स की प्रदर्शनी सम्पन्न हो गई।
डॉ. मीणा द्वारा आयोजित इस दस दिवसीय चित्र प्रदर्शनी उनके द्वारा राजस्थान की स्थानीय कला और सांस्कृतिक धरोहरों के साथ-साथ हुनरबंद समुदायों की कला और हस्तकौशल पर किये गए शोध कार्यो पर आधारित थी।डॉ. मीणा द्वारा किये गये करीब दस वर्ष के शोध एवं कला परिश्रम से तैयार इस "मैपिंग मेमोरीज" (Mapping memories) थीम पर आधारित पेंटिंग्स प्रदर्शनी में विशेष रूप से कोटा शहर की भौगौलिक और सांस्कृतिक हैरीटेज को तूलिका के माध्यम से पेंटिंग्स (Paintings) के रूप में बखूबी उतारा है, इस प्रदर्शनी में डॉ मदन द्वारा तैयार रणथंभौर सीरीज, बारहमासा सीरीज की पेंटिंग्स भी दर्शकों के लिए खास आकर्षण का विषय रही।
डॉ मदन ने बताया कि रंग-बिरंगी कला और सांस्कृतिक धरोहर के धनी राजस्थान में कला के विकास का रहस्य वहां की भौगोलिक परिस्थितियों एवं कलाकारों को राज्यश्रय और उनकी रूचि में छुपा हुआ है। उन्होने बताया कि उनके द्वारा बनाई गई इन पेंटिंग्स के माध्यम से कोटा शहर के सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ वर्तमान में महत्वपूर्ण जगहों पर काम करने वाले कलाकारों की कला और उनके जीवन को देश ओर दुनिया के समक्ष पेश किया गया है। इस दिशा में वे लगातार शोध कार्य कर रहे है। उन्होंने बताया कि राजस्थान की ऐतिहासिक कला-बस्तियों में कुछ ही परिवार अपनी परम्परा को जीवित रखे हुए है। परन्तु वास्तव में यहां पर कला अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है।प्रदर्शनी की अन्य पेटिंग्स में राजस्थान की स्थानीय परम्पराओं एवं लोक चित्र शैलियों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया गया है। प्रदर्शनी में प्रदर्शित विश्व प्रसिद्ध कोटा डोरिया साड़ियों पर डॉ. मीणा के कला कार्य को बुनाई के माध्यम से दिखाया गया है जो दर्शकों को आश्चर्य चकित करने वाला हुनर है। प्रदर्शनी में पर्यावरण के खतरों की तरफ ध्यान आकर्षित करती पेटिंग्स के साथ-साथ राजस्थान की स्थानीय जनजातियों और अन्य समुदायों की प्राचीन लोक कलाओं को बखुबी तुलिका के रंगों से साकार किया गया है।उल्लेखनीय है कि डॉ. मीणा राजस्थान की लोक परम्पराओं एवं संस्कृति पर आधारित प्रसिद्ध कला-चित्रों का प्रदर्शन देश-विदेश की कई प्रदर्शनियों में कर चुके हैै। अमेरिका के ‘‘कैब्रिज यूनिवर्सिटी’’ (Cambridge University) से सहायता प्राप्त एवं ‘‘फायरबर्ड फाउंडेशन फॉर इन्थ्रोपोलॉजिकल’’ (Firebird Foundation for Anthropological) अमेेरिका से फैलोशिप प्राप्त डॉ. मीणा ने राजस्थान की जनजाति की प्राचीन संस्कृति एवं भाषा पर गहरा शोध कार्य किया है। उन्होंने बताया कि राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में छोटे-छोटे समुदायों द्वारा बोले जाने वाले करीब 32 भाषाओं का डेटाबेस तैयार किया गया है जिसके माध्यम से इन समुदाय द्वारा बोली जाने भाषाओं का बचाने के प्रयासों को मदद मिलेगी। 
उल्लेखनीय है कि राजस्थान की जनजातिय महिलाओं पर आधारित कला-चित्रों का प्रदर्शन इससे पूर्व में डॉ. मीणा राजस्थान सहित देश-दुनिया के कई हिस्सों में कर चुके है। कला से जुड़ी लघु कला चित्रा फिल्मों के निर्माण के साथ-साथ डॉ. मीणा ‘‘जॉय ऑफ क्रियेटिवटी’’ (Joy of Creativity) और ‘‘नरचरिंग वॉल्स’’ एवं ‘‘तेजा की गाथा’’ आदि किताबें भी लिख चुके है।जोधपुर के रूपायन संस्थान के डेजेट म्युजियम में ‘‘अरना-झरना’’ के क्युरेटर डॉ. मीणा द्वारा बनाई गई ‘‘कांटा लगा’’ ‘‘जयवीर तेजा’’, ‘‘विषकन्या’’ जैसी महत्वपूर्ण पेंटिंग्स को कई विदेशी मंचों पर काफी सराहना मिली है। नई दिल्ली (new Delhi) के तानसेन मार्ग पर स्थित त्रिवेणी कला दीर्घा में दस दिनों तक चली इस चित्रा प्रदर्शनी को करीब एक हजार से भी ज्यादा कला प्रमियों ने देखा व सराहा।

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