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'सहकारिता से समृद्धि ’ की ओर  बढ़ रहा राजस्थान

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08 Jul 25
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'सहकारिता से समृद्धि ’ की ओर  बढ़ रहा राजस्थान

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

सहकारिता की बात जब कभी चलती है तो गुजरात के आनन्द अमूल डेयरी का मॉडल मन- मस्तिक पर उभर आता है। आनन्द की अमूल डेयरी में दुग्ध सहकारी समितियों का गांवों में छोटे स्तर पर गठन और कालांतर में देखते ही देखते इसके जन आंदोलन बन कर भारत की श्वेत क्रान्ति का सूत्रधार बनना किसी से भी  छुपा हुआ नहीं है। आनन्द अमूल डेयरी के इस मॉडल से सीख लेकर देश के अन्य प्रदेशों में भी सहकारी आंदोलन को प्रोत्साहन मिला तथा विभिन्न क्षेत्रों में सहकारी समितियों ने नित नए कीर्तिमान बनाए। सहकारिता के महत्व को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2025 को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष घोषित किया गया है। पूरा विश्व ‘सहकारिता से एक बेहतर दुनिया का निर्माण होता है’ की थीम पर अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष मना रहा है।

सहकारिता को अधिक सशक्त बनाने के लिए  6 जुलाई, 2021 को केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने पहली बार अलग सहकारिता मंत्रालय का गठन किया  और अपने बाएं हाथ केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह को इसकी जिम्मेदारी सौंपी। प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी की परिकल्पना के अनुरूप मंत्रालय द्वारा देश में ‘सहकार से समृद्धि’ योजना क्रियान्वित की जा रही है, जिसके अंतर्गत 60 से अधिक नई पहलों के माध्यम से सहकारी सेक्टर को सशक्त बनाया जा रहा है। ये पहलें विशेष रूप से सहकारी समितियों, किसानों, कारीगरों, पशुपालकों और छोटे उद्यमियों को सशक्त बनाने की दिशा में मील  का पत्थर साबित हो रही हैं। राजस्थान में इस योजना के सफल एवं प्रभावी क्रियान्वयन के लिए मुख्यमंत्री  भजनलाल शर्मा की अध्यक्षता में एक राज्य शीर्ष समिति गठित की गई है।  इसी प्रकार मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य सहकारी विकास समिति एवं जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में जिला सहकारी विकास समिति गठित हुई है। 

सहकारिता हमारे सामाजिक जीवन और अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग रही है। प्राचीन भारतीय लोकाचार में भी सहकारिता के बीज देखने को मिलते हैं। ऋग्वेद जैसे प्राचीन शास्त्र में भी संगठन और सहकारिता पर जोर दिया गया है। वसुधैव कुटुम्बकम से बड़ा सहकारिता मंत्र और क्या हो सकता है, जिसमें कुछ लाख या करोड़ लोगों के बीच नहीं, मानव मात्र के बीच नहीं, सम्पूर्ण प्रकृति जिसमें मूर्त और अमूर्त, चल और अचल, सभी के बीच, अनंत, शाश्वत और सनातन पारस्परिक निर्भरता और सहअस्तित्व की संकल्पना है। समय के साथ सहकारी आन्दोलन मजबूत हुआ और इसने सामाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विशेष रूप से किसानों, श्रमिकों, शिल्पकारों, लघु व्यवसाईयों एवं विविध स्तरों पर उत्पादक गतिविधियों में संलग्न जनसाधारण को बिचौलियों के शोषण से मुक्त कराने में सहकारिता का अहम योगदान है।सहकारिता हमारी सामाजिक परम्परा के साथ ही हमारी आवश्यकता भी है। बदलते दौर में यह और अधिक प्रासंगिक होती जा रही है। यह आर्थिक सशक्तीकरण के साथ ही ग्रामीण विकास में योगदान देती है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है। सहकारी संस्थाएं स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उत्पन्न करती हैं, जिससे पलायन रूकता है। सहकारिता के माध्यम से महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता एवं नेतृत्व के अवसर प्राप्त हो रहे हैं। इतना ही नहीं, सहकारिता जाति, वर्ग, धर्म और लिंग आदि से ऊपर उठकर सबको साथ लेकर चलती है, जिससे सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिलता है।राजस्थान में भी सहकारी आन्दोलन का लगभग 125 वर्षों का गौरवशाली इतिहास है। राजस्थान में वर्ष 1904 में अजमेर से सहकारी आन्दोलन की शुरूआत हुई थी और वर्तमान में इसने विशाल वट वृक्ष का रूप ले लिया है। वर्तमान में राज्य में 41 हजार से अधिक पंजीकृत सहकारी समितियों के 1 करोड़ 10 लाख से अधिक सदस्य हैं। 

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व एवं सहकारिता मंत्री गौतम कुमार दक के निर्देशन में राजस्थान भी ‘सहकार से समृद्धि’ के पथ पर निरन्तर अग्रसर हो रहा है। ‘सहकार से समृद्धि’ की विभिन्न पहलों को क्रियान्वित करने एवं सहकारी क्षेत्र में नवाचार करने में भी राज्य देश के अन्य प्रदेशों से अग्रिम पंक्ति में खड़ा है।
राजस्थान में विश्व की सबसे बड़ी विकेन्द्रीकृत अन्न भण्डारण योजना के अंतर्गत राज्य में 500 मीट्रिक टन के 135 गोदाम स्वीकृत किये जा चुके हैं, जिनमें से 97 गोदामों का निर्माण आगामी जुलाई माह के अंत तक पूरा करने का लक्ष्य है।  सहकारी क्षेत्र में प्रदेश की पहली बाइक ऑन रेंट सेवा ‘को-ऑप राइड’ का विगत दिनों उदयपुर से शुभारम्भ हुआ है।राज्य सरकार सहकारी क्षेत्र में विभिन्न योजनाओं के माध्यम से किसानों के मान-सम्मान और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने पर विशेष रूप से फोकस कर रही है। मुख्यमंत्री किसान सम्मान निधि की राशि को 2,000 रुपये से बढ़ाकर 3,000 रुपये कर दिया गया है। पीएम किसान सम्मान निधि योजना के राज्य के पात्र किसानों को अब 9,000 रुपये सालाना मिल रहे हैं। राज्य सरकार इसे चरणबद्ध रूप से 12 हजार रुपये करने के लिए प्रतिबद्ध है। राजस्थान सहकारी गोपाल क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत गोपालक परिवारों को गाय/भैंस के लिए शैड, खेली निर्माण और चारा/बांटा सहित उपकरण खरीदने के लिए 1 लाख रुपये तक का ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध करवाया जा रहा है। वर्ष 2025-26 के दौरान 35 लाख से अधिक किसानों को 25 हजार करोड़ रुपये के ब्याज मुक्त अल्पकालीन फसली ऋण वितरित किए जाने का प्रावधान राज्य बजट में किया गया है। इसके ब्याज अनुदान पर 768 करोड़ रुपये व्यय होंगे। इसी प्रकार, सहकारी भूमि विकास बैंकों के अवधिपार ऋणों हेतु 200 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान कर मुख्यमंत्री अवधिपार ब्याज राहत योजना लागू की गई है। इसमें ऋणी सदस्यों को केवल मूल धन की राशि जमा करवाने पर राज्य सरकार द्वारा अवधिपार ब्याज में 100 प्रतिशत की राहत दी जा रही है। राज्य सरकार सहकारी संस्थाओं में पारदर्शिता के लिए भी प्रतिबद्ध है। सहकारी संस्थाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए नवीन को-ऑपरेटिव कोड लागू करने की कार्यवाही प्रक्रियाधीन है। 

दक्षिणी राजस्थान के माही बजाज सागर और एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील में शुमार जयसमंद बांध में राजस संघ के माध्यम से मत्स्य पालन सहकारी समितियों का गठन एक अच्छा प्रयास था।इससे न केवल आदिवासियों के स्वावलंबन की राह आसान हुई थी वरन रोजगार का एक बड़ा जरिए बनने से पलायन भी रुका था। राज्य सरकार यदि इस दिशा में पुनः प्रयास करें तो दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी अंचल के यह एक वरदान बन सकता है।

उम्मीद है प्रदेश में सहकारिता के क्षेत्र में किए जा रहे प्रयास अन्तर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष में प्रदेश के  सहकारिता आन्दोलन को नई दिशा देंगे । साथ ही विकसित राजस्थान के संकल्प का साकार करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगें।


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