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बाबू गुलाबराय के निबंध गंभीर थे

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16 Apr 15
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हिन्दी साहित्य के आलोचक तथा निबंधकार बाबू गुलाब राय ने वैसे तो तमाम विषयों पर अपनी लेखनी चलाई, लेकिन आम आदमी की जिंदगी से जुड़े विषयों पर लिखे गए उनके लेखों को आज भी काफी पसंद किया जाता है। समीक्षकों के अनुसार बाबू गुलाबराय एक ऐसे निबंधकार थे जो विषयों का गहराई से विश्लेषण करने के बावजूद अपने निबंधों को कभी बोझिल नहीं होने देते थे। उनके निबंधों में हास्यबोध की झलक भी पाठकों को काफी भाती है। हिन्दी साहित्य में ललित निबंध की परंपरा काफी पुरानी रही है। भारतेन्दु युग से शुरू हुई इस परंपरा को जिन लोगों ने आगे बढ़ाया, उनमें बाबू गुलाब राय का नाम भी प्रमुख है। उनके निबंधों में भाव और विचारों का अद्भुत संगम देखने का मिलता है, जिसमें तत्कालीन स्थिति और परिवेश का चित्रण है।

लेखक एवं कवि धनंजय सिंह ने हिन्दी साहित्य में उनके योगदान के बारे में कहा कि मुख्य तौर पर उन्हें एक सधे हुए निबंधकार के रूप में याद किया जाता है। उनकी रचना में मौलिकता झलकती है। सिंह ने कहा कि बाबू गुलाब राय उस वर्ग के रचनाकारों में थे जो कभी भी अपनी विद्वता से पाठकों को प्रभावित करने के पक्ष में नहीं रहते थे। वह निबंध में किसी विषय को उठाते थे और उस विषय के तमाम पक्षों को इस खूबसूरती से पिरोते थे कि विषय के प्रति लोगों की उत्सुकता बनी रहे।

लेखक धनंजय सिंह ने कहा कि गुलाब राय के निबंध उनके हास्य बोध के कारण भी काफी पसंद किए जाते हैं। उनके लेखों का हास्य जबरन थोपा गया नहीं होता। वह आपको मुस्कुराने के लिए मजबूर कर देता है। बाबू गुलाबराय का जन्म सत्रह अगस्त 1888 को उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ था तथा उनकी प्रारंभिक शिक्षा मैनपुरी में हुई थी। आगरा विश्वविद्यालय से उन्होंने दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर तथा एलएलबी किया। उन्होंने अपनी कृतियों के माध्यम से तत्कालीन सामाजिक परिदृश्यों तथा उसमें निहित चीजों की विवेचना करते हुए लोगों के बीच अपने विचारों और बातों को प्रमुखता से रखा। इस प्रख्यात निबंधकार तथा आलोचक ने 13 अप्रैल 1963 को आखिरी सांस ली।

'फिर निराश क्यों' उनकी एक ऐसी रचना है जिसमें अनेक विषयों पर छोटे−छोटे किंतु बड़े प्रभावकारी निबंध हैं जिसका आभास पाठक हृदय की गहराइयों से करता है। इसमें उन्होंने लिखा है कि सौन्दर्य का अस्तित्व ही कुरुपता पर निर्भर है। सौंदर्य की उपासना करना उचित है, पर उसी के साथ−साथ कुरुपता घृणास्पद नहीं। सुंदर पदार्थ अपनी सुंदरता पर चाहे जितना गुमान कर ले, किंतु असुंदर पदार्थों के होने की स्थित मिें ही वह सुंदर कहलाता है।
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