हर साल पौधारोपण होता है और कुछ ही पौधे वृक्ष बन पाते है। ऐसे में हरे पेड़ को काट कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने को लेकर रची गई संदेश परक कहानी है। शिक्षिका की तरह सभी नागरिक जागरूक बने और हरे पेड़ों को काटने से रोकथाम में अपना सहयोग करें यही कहानी का समाज को सार्थक संदेश है, पढ़िए कहानी...............
विद्यालय में बड़ी गहमागहमी है। समाजोपयोगी उत्पादक कार्य का शिविर चल रहा है। आज सफाई का दिन है। इंचार्ज महोदय परिसर के बीचों -बीच खड़े अपनी रोबीली आवाज में छात्रों को निर्देश दे रहे हैं। छात्र कागज और टहनियाँ चुन रहे हैं। इंचार्ज स्थानीय हैं और विद्यालय पर उनका पूरा प्रभुत्व है।
“चलो, आज इन पेड़ों की छंटाई भी कर देते हैं, बहुत फैल गए हैं।” उन्होंने कहा तो छात्र झटपट भण्डार से कुल्हाड़ियाँ ले आये। कुल मिलाकर विद्यालय के उदासीन वातावरण में नवीन ऊर्जा का संचार हो गया। बिना नख- दंत के वृद्ध सिंह की तरह अपने कक्ष में बैठे रहने वाले प्रधानाचार्य जी भी बाहर निकल आये और दीवारों पर पड़े पुताई के छींटों को साफ करवाने में जुट गये। वह भी छात्रों के साथ प्रयोगशाला की सफाई करने चली गयी। कुछ समय बाद जब वह बाहर आई तो वहां का दृश्य देखकर दंग रह गयी।
एक लड़का बरामदे से सटे एक तरुण पेड़ के तने पर कुल्हाड़ी से वार कर रहा था। उसके पैर स्वतः ही उस दिशा में दौड़ गये,
“अरे.. अरे.. यह क्या हो रहा है? क्यों इस पेड़ को काट रहे हो?” वह चिल्लाई तो लड़के के हाथ रुक गये।
“अरे काट, काट क्यों रुक गया। ” वे अपनी दबंग आवाज में बोले। लड़के ने सहम कर उसकी तरफ देखा तो उन्होंने उसके हाथ से कुल्हाड़ी छीन ली और स्वयं पूरी शक्ति से पेड़ के तने पर प्रहार करने लगे। वह पेड़ के आगे खड़ी हो गई।
“मैडम, पेड़ के आगे से हटो, नहीं तो यह आप पर गिरेगा।” वे धृष्टता से बोले और लगातार उनके प्रहार जारी रहे। वह बदहवास सी वहाँ खड़े अन्य शिक्षकों से याचना करती रही।
“यह बिलकुल हरा पेड़ है, इसको कटने से कोई तो रोको... ”
बिना एक शब्द बोले सब निर्लिप्त भाव से अपने कामों में लगे रहे। उसको कुछ नहीं सूझा तो उसने एक पत्रकार को सूचना दे दी। घंटे भर में तहसीलदार साहब की गाड़ी विद्यालय में आ गयी। सारा का सारा स्टाफ उनका स्वागत करने बढ़ा।
“क्या बात है भाई, कौन सा पेड़ काट दिया? हमें सूचना मिली है...”
“हे हे, देखिये यह पेड़ है। विद्यालय की दीवार को क्षति पहुंचा रहा था तो हमने काट दिया। वैसे भी यह सूखने ही वाला था।” चापलूसी हंसी के साथ इंचार्ज बोले।
“किसने दी पेड़ के काटने की सूचना?” तहसीलदार साहब ने पूछा।
“जी, मैंने।” वह धीमी आवाज में बोली।
“यह जंगली पेड़ शिरीष है। इसको काटने के लिए अनुमति की आवश्यकता नहीं होती।” वे उसको घूर कर बोले। “जी, इतना जानती हूँ कि किसी भी हरे पेड़ को काटना अपराध है।” उसने विनम्रता से कहा।
“आपको ज्यादा पता है या मुझे?” वे दहाड़े।
“हम तो एक जरूरी मीटिंग में थे। ऊपर से फोन आया तो हमें कार्यवाही करने आना पड़ा।” वे तल्खी से बोले।
“जब्त कर लो पेड़ को।” वे साथ आये कर्मचारी की तरफ मुखातिब हुए। परिसर में कुर्सियां लग गयीं। चाय -नाश्ता आ गया।
“अब देखिये हम भी क्या करें, ऊपर से फोन आ गया तो आना ही पड़ा। लिखवाइए, क्या लिखवाना है...”
“हे हे लिखिए, पेड़ की टहनियाँ टूट -टूट कर गिरती थीं, बच्चों को नुकसान पहुँच सकता था। पेड़ में बीमारी लग गयी थी......”
“अब देखिये न सर, यह ग्राउंड में नीम का पेड़। परेड वाले दिन बहुत बुरा लगता है जब बीच में आता है। उस दिन एडीएम् साहब से कहा था मैंने, तो बोले- कटवाने की अनुमति तो नहीं दे सकता। धीरे दृधीरे काटकर खत्म दो.. हे हे हे।”
“नहीं, नहीं। नीम का पेड़ मत काटना। यदि ऊपर से कार्यवाही हुई तो हम भी कुछ नहीं कर पाएंगे। इस पेड़ की क्षतिपूर्ति के लिए भी आठ- दस नए पेड़ लगवा देना।”
“जी, बिलकुल सर।” गाड़ी लौट गयी।
विद्यालय का स्टाफ उससे कट गया था। स्टाफ सदस्य की शिकायत करने का गंभीर अपराध उससे हुआ था। एक सप्ताह में उसे व्यवस्थार्थ बालिका विद्यालय में भेज दिया गया। जाते -जाते उसने देखा कि बीच परिसर खड़ा वह नीम का कद्दावर पेड़ अपनी शाखाएं फैलाये उसे दुलार रहा था। भले ही अब शिरीष के पीले फूल उसकी गोद में नहीं झरेंगे। पर उम्मीद है कि नीम बच जायेगा।