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भारत और नीदरलैंड की लोक-कथाओं का तुलनात्मक विवेचन  

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02 Oct 25
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भारत और नीदरलैंड की लोक-कथाओं का तुलनात्मक विवेचन  

-दिनेश कुमार माली
तालचेर,ओड़िशा  

डॉ. ऋतु शर्मा ननंनपांडे द्वारा ‘नीदरलैंड की चर्चित कहानियां’ वहाँ की प्रसिद्ध लोककथाओं का संकलन है, जो सन् 2025 में आईसेक्ट पब्लिकेशन्स, भोपाल से प्रकाशित हुआ है। इस संकलन में नीदरलैंड की प्रसिद्ध 13 लोककथाएं हैं, जिससे वहाँ की संस्कृति, रहन-सहन, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व धार्मिक परिवेश से हम परिचित हो सकते हैं तथा अपने देश की लोक-कथाओं एवं लोक-संस्कृति से तुलना कर सकते हैं। इस दृष्टिकोण से, डॉ. ऋतु भारत और नीदरलैंड के बीच सांस्कृतिक समन्वय सेतु बनाने का कार्य कर रही हैं।
इससे पूर्व में, उन्होंने ज्यॉ पॉल सार्त्र के प्रसिद्ध अस्तित्ववादी नाटक ‘नो एग्जिट’ का ‘बंद रास्तों के बीच’ शीर्षक से हिन्दी जगत के प्रसिद्ध नाटककार विवेकानंद के साथ संयुक्त रूप से अनुवाद किया है, जिसका प्रथम संस्करण 2006 में, द्वितीय संस्करण 2023 में वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। यह नाटक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली के पाठ्यक्रम में है और कई बार इसका सफल मंचन भी हो चुका है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने प्रसिद्ध डच बाल साहित्यकार के बाल-उपन्यास ‘Dieren Beul’ का ‘जानवरों का जानी दुश्मन’ के नाम से हिन्दी में  अनुवाद किया है। 
मेरा मानना है कि लोककथाओं पर काम करना इतना सहज नहीं होता है, और अगर विदेश की धरती का मामला हो तो और ज्यादा मुश्किल कार्य है। कुछ वर्ष पूर्व मैंने भी उत्तराखंड की प्रोफेसर प्रभापंत की पुस्तक ‘कुमांऊ की लोककथाओं’ का ‘folklore of Kumayun’ शीर्षक से अँग्रेजी में अनुवाद किया था। इस वजह से लोक कथाओं की उत्पत्ति, भाषा-शैली, मान्यताएं, परपराएं, कल्पन-शक्ति और विषय-चयन की मुझे अच्छी जानकारी है। प्रो॰ प्रभापंत द्वारा संकलित लोककथाएं भारतभूमि की है, जबकि डॉ. ऋतु शर्मा द्वारा संकलित लोककथाएं नीदरलैंड के विभिन्न समुदायों, मान्यताओं, संस्कृति, परंपराओं और मूल्य को दर्शाती है। इस संदर्भ में तमिलनाडु के प्रसिद्ध लोककथाकार ए. के. रामानुजन की पुस्तक 'फोकटेल्स फ्रॉम इंडिया' का निम्न उद्धरण याद आता है कि "जहां भी लोग रहते हैं, लोककथाएं बनती हैं, नए चुटकुले, कहावतें, तुकबंदी, किस्से और गीत मौखिक परंपरा में प्रसारित होते हैं। मौखिक लोककथाएं, विशिष्ट शैलियों (जैसे कहावत, पहेली, लोरी, कहानी, गाथागीत, गद्य कथा, गीत), गैर-मौखिक विधा (जैसे नृत्य, खेल, फर्श या दीवार डिजाइन), खिलौनों से कलाकृतियों से लेकर गांवों में बाहरी मिट्टी के घोड़ों तक) और समग्र प्रदर्शन कला (जैसे कि सड़क-छाप  जादू, स्ट्रीट थिएटर की परिकल्पना, विभिन्न स्थानीय वस्तुएं, पोशाक आदि) के सभी अभिव्यंजक शहर, गांव के लोक जीवन के हर पहलू से बुने जाते हैं।”
जिस तरह कुमायूं गढ़वाल नृत्य और संगीत के मामले में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है, ठीक उसी प्रकार नीदरलैंड की अपनी लोक-संस्कृति है, जहां लकड़ी के जूते पहनकर नृत्य किया जाता है (क्लोंपन नृत्य), चुड़ैलों के उत्सव मनाए जाते हैं (कार्निवल और हैक्स), बच्चों को पानी में डुबाने वाला राक्षस (बुलेबाक), बकरी सवार (बॉकेन राइडर्स), भटकाने वाली रोशनियां (ड्वालिच्ट), डच के लोक गीत. (हीर हेलेवाइन), खजाने की रक्षा करने वाली भूतिया आत्माएं (विट्टे वीवेन) आदि से पाठक परिचित हो सकते हैं। प्रसिद्ध आलोचक डॉ. परमानंद चौबे ने प्रभापन्त की लोककथाओं पर  अपनी टिप्पणी में लिखते है कि,  "जीवन उतार-चढ़ाव से भरा है। जीवन में निराशा का अंधेरा हमेशा छाया रहता है। इसके बावजूद, परेशानियों को दूर करने के लिए हमेशा आशा की किरण दिखाई देती है। न्याय और अन्याय के बीच युद्ध है। राजाओं को हमेशा विभिन्न परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। पशु और मनुष्य के बीच स्थायी संबंध है। स्थितियाँ पल-पल बदलती रहती हैं, समस्याएँ नए रूपों में फिर से प्रकट होती हैं। इन सभी चक्रों का सामना करते हुए जीवन की वास्तविकता, लोककथा का वाहन बनती है - जो मानव जीवन को उद्देश्यपूर्ण ढंग से बिताने के लिए बहुत उपयोगी है। यह डॉ. प्रभा पंत द्वारा लिखित 'फोकटेल ऑफ कुमायूँ' की सैद्धांतिक अवधारणा है।”
नीदरलैंड को अक्सर हालैंड भी कहा जाता है। जहां समतल भूमि, नदियां, नहरें, सागर भरे हुए हैं। यहां की लोककथाओं में वे जादुई प्राणी, चुडैल आत्माएं, देवतागण और नैतिकता पर आधारित कथानक ज्यादा हैं, जो ईसाईकरण के कारण धीरे-धीरे लोक कहानियों और किंवदतियों में बदल गई। नीदरलैंड में कभी प्राचीन जर्मनिक जनजातियां (जैसे. फ्रिसियन और बैटेवियन) रहा करती थी जो दक्षिणी स्कैंडिनेविया और उतरी जर्मन से आई। फिर शुरू हुई वहाँ, प्रकृति की पूजा, नदी-नालों की पूजा, पेडों की पूजा आदि। अक्सर हम ‘बेनेलेक्स’ शब्द सुनते हैं, जिसका अर्थ होता है - बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग। अतः नीदरलैंड की लोककथाओं में डच, फ़्लेमिश या क्षेत्रीय भाषा का भरपूर प्रयोग होता है। नीदरलैंड की लोककथाएं व्यावहारिक एवं प्रकृति-केंद्रित होती है- स्कैंडिनेवियाई या आयरिश मिथकों की तुलना में कम भव्य; मगर अधिक वास्तविक। इस वजह से नीदरलैंड की लोककथाएं विश्व में अपना वांछित स्थान नहीं बना पाई और उन्हें ‘फोकलोर ऑफ द लो कंट्रीज’ में गिना जाता है।
कुमायूं की लोककथाओं में भी पहाड़-पर्वत, साधु संत, जादूगर, भूत-प्रेत, तंत्र-टोटका आदि कथानक के रूप में उभरते है। उत्तराखंड में कई संस्कृतियों, परपंराओं, आस्थाओं, संवेदनाओं और मूल्यों का समावेश है, इस वजह से यहाँ की लोककथाओं में विविधता है। लोक-साहित्य, जैसे पंचतंत्र, हितोपदेश, कथासरित्सागर आदि शिक्षा का पुरातन तरीका माना जाता था। यह ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में मौखिक रूप से अग्रसरित हुआ। लोक कथाओं को केवल समय बिताने की सामग्री न मानकर समाज को नई दिशा देने वाला माध्यम मानना चाहिए। 
सभ्यता, संस्कृति, भाषा और ज्ञान-भंडार ही तो मानव विकास का मूलाधार है। अनगिनत अनाम लेखकों ने संस्कृति, सभ्यता और मानवता के विकास में अद्वितीय योगदीन दिया, अपने अर्जित अनुभवों, भावनाओं और विचारों के आधार पर लोककथाओं को जन्म देकर। लोक कथाओं की खासियत यह है कि लेखक अज्ञात रहता है और उन कथाओं पर किसी एक का विशेषाधिकार नहीं है, वह समग्र समाज की देन है। जिस तरह प्रो. प्रभापंत कुमायूं के गाँवों में घूम-घूमकर वहाँ के बड़े-बुजुर्गां से लोक कथाएं सुनकर या उनकी आवाज रिकॉर्ड कर अपने घर जाकर उन कथाओं को कागज पर उतारा है, उसी तरह डॉ ऋतु शर्मा ने नीदरलैंड की अधिकांश लोक-कथाओं को स्थानीय लोगों से सुनकर लिखा और कुछ वहाँ की प्रचलित लोककथाओं का विभिन्न डच पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित उन कथाओं इस संकलन के लिए अनुवाद किया हैं। 
 जहां प्रभापन्त कहती हैं – ‘लोक कथाएं संग्रह के दौरान कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जो यह कहता है कि उसने वह कहानी लिखी है। ये हमारे पूर्वजों की विरासत है, जिसे बचाए रखना हमारा परम कर्त्तव्य है।’ वहीं पर ऋतु शर्मा भी मानती है कि यदि हम अपनी वैश्विक परंपराओं को पूरी तरह से नहीं जानते हैं तो समग्र मानव-जीवन के भविष्य की प्रगति के बारे हमे नहीं जान पाएंगे। 
‘बातों री फुलवारी’ के लेखक प्रसिद्ध राजस्थानी लोक-कथाकार विजयदान देथा लिखते हैं, "मैंने अपनी सभी कहानियों को अपने गांव बोरुंदा से ही इकट्ठा किया है। लोक-गीतों की तरह ही लोक कथाओं का यह खजाना भी मुझे यहाँ की महिलाओं के पास से मिला है। मैंने खुद सुनकर इन कहानियों को अपनी कला और कल्पना के आधार पर उनके पारंपरिक रूपों को फिर से सजाया है।”
पुरवाई पत्रिका, लंदन के संस्थापक-संपादक श्री तेजेन्द्र शर्मा डॉ ऋतु के इस संकलन के आमुख में लिखते हैं कि “ऐसे गिने-चुने प्रवासी भारतीय साहित्यकार हैं, जिन्होंने अपने अपनाए हुए देश की भाषा में लिखे गए साहित्य को हिन्दी में अनुवाद करके हिंदी जगत के पाठकों को उपलब्ध करवाया हो।” 
रामानुजन मानते हैं कि दक्षिण भारत की लोक-कथाएँ संस्कृत-ग्रंथ जैसे पंचतंत्र, कथा सरित्सागर या पाली जातक, हिंदू और जैन पुराण से सीधे नहीं आई हैं। कभी ये कथाएं मौखिक परंपरा के रूप में थीं और विभिन्न संतों द्वारा दृष्टांतों में बताई गई थीं। रोमांटिक धारणाओं के विपरीत, सहजता या स्वाभाविकता ही लोककथाओं का परिचय हैं। कोई भी लोककथा अपने भीतर सांस्कृतिक संदर्भ समेटे रहती है; जिसका अलग-अलग समय और स्थानों पर कुछ बदलावों के साथ फिर से दोहराया जाता है। 
इस आलोच्य-संकलन की सारी कहानियों की थीम अलग-अलग है। कहीं चुड़़ैल है तो कहीं भूत-प्रेत, जादूगरनियां। कहीं पशु-पक्षी, चुहिया, घोड़ा, गधे आदि है तो कहीं सिक्के, पत्थर, लकड़ी का संदूक, झाड़ू आदि को भी लोक कथा का आधार बनाया है। इस संकलन में 13 कहानियां है जैसे कि समझदार आनतुन, जादुई पत्थर, चुहिया की शादी, बिन बुलाए मेहमान, खिलड़न की आत्मकथा, भूतिया हवेली और यान के चीले, भूखड़ ओले-बोले, कुबड़ा, जादुई घोड़ा, बुद्धिमान गधा, लकड़ी का संदूक और समझदार किसान आदि।
डॉ, प्रभापंत की कुमायूं की लोक-कथाओं में हंसावली परी, सात भाइयों की एक बहिन, लिख्खू, भिटौली, पैटीकोट का पैच, राजा विक्रमादित्य, अमरू, सात अप्सराएं, कद्दू की शादी, राक्षस, कुत्री मूयाँ, चिड़िया और जानवरों की भाषा, कलविष्ट, सर्प राजकुमार, गरीब ब्राह्मण, ग्वालदेव, जादुई अंगूठी, खकरमून आदि।
‘समझदार आनतुन’ लोककथा नीदरलैंड के किसी गाँव के जमींदार के परिवार की है। जिसमें तीन बेटे हैं, दो अच्छे खासे पढ़े-लिखे और तीसरा कुछ भोला-भाला, जिसे व्यंग्य में वहाँ के लोग उसे ‘समझदार आनतुन’ कहते हैं। किसी राजा की बेटी के स्वयंवर में जमींदार के बेटे आमंत्रित किए जाते है। एक भाई लैटिन भाषा की डिक्शनरी, समाचार पत्र के सारे संस्करण याद रखने वाला तो दूसरा भाई कानून और राजनीति का अच्छा जानकार। तीसरा भाई इनसे कोसों दूर। दोनों भाई सज-धजकर घोड़े पर बैठकर राजकुमारी के स्वयंवर में जाते है। वे आनतुन को  छोड़कर चले जाते हैं। जब उसे पता चलता है तो वह बकरे पर सवार (बॉकेन राइडर) होकर  वहां पहुंचता है। रास्ते से उसे मरा हुआ कौआ, पुराने लकड़ी के जूते (क्लोंपन), गीली मिट्टी मिलती है, जिसे वह अपनी जेब में भरकर राजमहल जाता है। 
स्वयंवर के दौरान राजमहल में अच्छी-खासी गर्मी होती है, इसके बारे में  राजकुमारी कहती है - “आज शाम के खाने के लिए मेरे पिताजी ने यहां मुर्गे भुनवाये हैं।”
किताबी ज्ञान रखने वाले दो बड़े भाई इसका न तो अर्थ समझ पाते हैं और न ही कुछ उत्तर दे पाते हैं। मगर तीसरा भाई हाजिर जबाव; तुरंत उत्तर देता है - ‘क्या मैं अपना कौआ भी भून सकता हूँ ?’ फिर भूनने के लिए बर्तन की बात आती है तो वह पुराने लकड़ी के जूते दिखा देता है और चटनी के बारे में राजकुमारी पूछती है तो दोनों जेब से गीली मिट्टी बाहर निकालता है। आखिरकार आनतुन की प्रत्युत्पन्नमति से राजकुमारी काफी प्रभावित हो जाती है और विवाह के लिए तैयार हो जाती है। यद्यपि यह नीदरलैंड की पृष्ठभूमि है, मगर भारतीय दंतकथाओं में कालिदास और विद्योतमा का विवाह-प्रसंग भी तो इस रूप से देखा जा सकता है। कालिदास द्वारा विद्योतमा एक अंगुली दिखाने से एक आंख फोड़ना समझकर वह दो अंगुली दिखाता है, राजकुमारी की दोनों आँखें फोड़ने के इरादे से। राजकुमारी द्वारा हाथ दिखाने से थपड्ड समझकर उसे मुक्का दिखाता है। गलत संकेतों के भी वांछित भावार्थ समझने से विद्योतमा की कालिदास के साथ शादी हो जाती है। यदि नीदरलैंड की इस लोककथाओं की तुलना करने पर ‘आनतुन’ कालिदास जैसा है और नीदरलैंड की राजकुमारी ‘विद्योतमा’ की तरह। 
दूसरा प्रसंग, “हू विल किल द केट इन फर्स्ट नाइट?” कहानी में का है, जिसमें राजकुमारी के स्वयंवर की शर्त में टेबल पर दूध रखा हुआ होता है और उसके पास में पालतू बिल्ली छिपकर बैठी होती है। स्वयंवर में भाग लेने वाले राजकुमारों के लिए शर्त निर्धारित होती है - ‘जो टेबल पर रखा हुआ गिलास उठाकर दूध पीएगा। राजकुमारी उसके साथ शादी करेगी।’
जैसे ही स्वयंवर में भाग लेने वाले राजकुमार दूध का गिलास उठाकर पीने के लिए उद्यत होते है तो बिल्ली आकर दूध गिरा देती है। परिणामस्वरूप, राजकुमार स्वयंवर में विफल। मगर एक सिरफिरा बंदा आता है, उसके पास कटार होती है। जब वह स्वयंवर कक्ष में जाता है और एक हाथ से दूध के लिए गिलास उठाता है तो जैसे ही बिल्ली आक्रमण करने वाली होती है तो दूसरे हाथ से कटार निकालकर उसे मार देता है। ‘मेरी बिल्ली को क्यों मारी?’ राजकुमारी द्वारा पूछने पर वह उत्तर देता है - ‘हमारे बीच में अगर कोई तीसरा आएगा तो वह भी इसी बिल्ली की तरह मारा जाएगा।’
यह उत्तर सुनकर राजकुमारी प्रभावित हो जाती है और उससे शादी कर लेती है। डॉ. ऋतु शर्मा की इस लोककथा में भी आनतुन की स्पष्टवादिता और प्रत्युत्पन्नमति से प्रभावित होकर राजकुमारी शादी कर लेती है। 
इस लोककथा में एक और कहानी याद आती है, पंचतंत्र के चार दोस्तों की। तीन दोस्त अच्छे-खासे पढ़े-लिखे, अलग-अलग विद्याओं के ज्ञाता और चौथा दोस्त मूर्ख। वे चारों एक जंगल से गुजर रहे होते हैं। रास्ते में हड्डियों का ढेर दिखाई देता है। पहला दोस्त हड्डियों के ढेर को मंत्र से जोड़ता है, दूसरा दोस्त मंत्र बल से उस पर त्वचा का आवरण पहना देता है, और तीसरा दोस्त उसमें प्राण फूंकने जा रहा होता है कि चौथा दोस्त उसे यह करने के लिए मना करता है क्योंकि वह जानता है की जुड़ी हुई हड्डियों का अस्थि-पंजर शेर की आकृति ले चुका होता है, उसमें जान फूंकने से वह उन सभी को जान से मारकर खा सकता है। लेकिन तीसरा दोस्त उसकी बात को नहीं मानते हैं तो चौथा दोस्त किसी पेड़ पर चढ़ जाता है। तीसरा दोस्त जैसे ही मंत्रबल से जान फूंकता है तो शेर जीवित हो उठता है और तीनों पर आक्रमण कर देता है और उन्हें मार देता है। कहने का अर्थ यह है कि किताबी ज्ञान की तुलना में व्यावहारिक ज्ञान ज्यादा प्रभावी व श्रेष्ठ होता है। ‘समझदार आनतुन’ में दो भाई अपने विषयों के अच्छे-खासे ज्ञाता हैं, मगर जरूरत पड़ने पर कुछ भी नहीं बोल पाते हैं, जबकि तीसरा भाई भोला होते हुए भी तुरंत जवाब दे देता है और राजकुमारी का दिल जीत लेता है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है, कि लोक कथाएं नीदरलैंड की हो या भारत की - सभी में सार्वभौमिक मूल्यों की उपस्थिति सहजता से देखी जा सकती है। 
डॉ. ऋतु शर्मा के इस संकलन की दूसरी लोककथा ‘जादुई पत्थर’ में सैनिक मताईस तीन चमत्कारी पत्थरों से सबके लिए सूप तैयार करता है और ‘जादुई घोड़ा’ कहानी में खरौनिंगन शहर का लड़का जादुई घोड़े की वजह से अपनी क्रूर सौतेली माँ से जान बचाता है। इसी तरह डॉ. प्रभापंत की ‘जादुई अंगूठी’ में एक व्यापारी का निष्कासित बेटा विपत्तियों में उस अंगूठी से अपनी रक्षा करता है। 
‘चूहिया की शादी’ नीदरलैंड के किसी गाँव के जमींदार परिवार की कहानी है, जिसमें पूर्व और पश्चिम में जाने वाले दो बेटों की शादी योग्य लड़की मिल जाती है, जबकि उत्तर दिशा में जाने वाले तीसरे बेटे डेनियल के लिए केवल रेंडियरों और भेड़ियों की बस्ती में कहां से कोई लड़की शादी योग्य मिल सकती है! उसे एक घर में चुहिया मिलती है। जो उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाती है। लोककथा में बाद में पता चलता है कि एक अभिशप्त राजकुमारी चुहिया की देह में अपना जीवन-यापन कर रही होती है। जब डैनियल उससे प्यार करने लगता है तो वह अपने असली रूप में आ जाती है। भारतीय लोक-कथाओं में एक ऋषि चुहिया को कन्या बना देता है फिर उसकी शादी के लिए बादल, पवन, पहाड़ आदि को प्रस्ताव भेजता है। 
बादल कहता है, ‘पवन मुझसे ज्यादा ताकतवर है, इसलिए वह हमें छितर-बितर कर  देती है।’
पवन कहती है,’ पहाड़ हमसे ज्यादा ताकतवर है, जो हमें बहने से रोक देता है।’ 
पहाड़ कहता है, ‘चूहा हमसे ज्यादा ताकतवर है, वह हमारे भीतर छेद करता है, अपना बिल बनाने के लिए।’
अंत में, उस कन्या को ऋषि फिर से चूहिया बनाकर चूहे से शादी कर देता है। इस कथा का शीर्षक है - ‘पुनर्मूषक भवः’। चूहिया को कन्या और फिर कन्या को चूहिया। नीदरलैंड की कहानी में चुहिया से राजकुमारी बनती है। 
प्रोफेसर प्रभापंत की लोककथा 'सर्प राजकुमार'  में नागिन अपने पति 'नाग' के प्रति समर्पण और वफादारी को दिखा रही है, यहां तक कि वह अपना मिशन पूरा करने के बाद उसके पास लौटने का वादा भूल गया था। उसे राजकुमारी के साथ सोते हुए देखकर उसने बदला नहीं लिया। उनके द्वारा किया गया बलिदान अनुकरणीय है और भारत में स्त्री के गुणों को दर्शाता है।
‘नखरीली सुई’ और ‘खिलड़न की आत्मकथा’ लोक-कथाओं में कपड़ा सिलाई करते समय सुई के टूटने, फिर उस पर लाख लगाकर नखरीली सुई को जीवित रखने की कथा है, जिसके आधार पर नीदरलैंड में सिलाई की टोकरी रखने की प्रथा है। उसी तरह ‘खिलड़न की आत्मकथा’ में नीदरलैंड के सिक्के की जेब से निकलकर दूसरे देश की यात्रा के दौरान खोटे  सिक्के के नाम से अपमानित होने पर आधारित लोक कथा है, जबकि खिलडन पर नीदरलैंड के टकसाल की मोहर भी लगी होती है। दूसरे देश में खोटा सिक्का घोषित होने पर उसके बीच में छेदकर किसी बच्चे के गले में लॉकेट की तरह लटका दिया जाता है। 
‘बिन बुलाई मेहमान’ कथा नीदरलैंड के अपिंगदाम शहर की कहानी है, जहां एक लेखक श्रीमान माईरमन रहते हैं। वह चुड़ैलों पर मनगंढ़त कहानी लिखने के कारण दो चुड़ैलें  जुलिया और जूटा उसके घर आकर कहती है कि हम चुड़ैलें कुछ भी गलत काम नहीं करते हैं। न तो मकड़ी जाल वाला पैन कैक खाती है, न भेड़ के बच्चों को। न बच्चों के सपनों में आकर डराती हैं, न खंडहरों में नाचती हैं। इसलिए उन पर गलत साहित्य लिखना बंद कर दिया जाए। 
‘भूतिया हवेली और यॉन के चीलें’ नीदरलैंड की प्रोफेंसी फ्रिसलैंड के शहर में एक बहुत बड़ी तीन मंजिला हवेली, जो सुनसान है और वहां भूत रहते हैं - के कथानक वाली लोक कथा है। जो प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक अल्फ्रेड हिचकॉक के ‘हाउन्टेड हाउसफुल’ की याद दिलाती है। नीदरलैंड के भूत अच्छे हैं, भारतीय भूतों की तरह लोगों को परेशान नहीं करते हैं और न ही डराते हैं। हैं। यही वजह है कि प्रसिद्ध ओड़िया और अँग्रेजी के लेखक स्वर्गीय मनोज दास को ‘भूतनी की विदाई’ जैसी कहानी लिखने की जरूरत नहीं पड़ती। नीदरलैंड की भूटिया हवेली में यॉन को रूकने के कारण एक भूत धन के तीन घड़ों के बारे में बताता है और ले जाने के लिए कहता है की वह एक घड़ा गरीबों की सेवा, दूसरा घड़ा चर्च के लिए उपयोग में लें, और तीसरा उसके अपने उपयोग के लिए। जबकि भारत में भूत धन का स्थान नहीं बताते, बल्कि देवी-देवता धन की जगह दिखाते हैं, उदाहरण के तौर पर ओडिशा के सम्बलपुर की अधिष्ठात्री समलेई देवी एक आदिवासी महिला सँअरन को हीराकुंड के पास सात हीरों के ढेर को हीराकुड के रेत के टीले के नीचे दबे होने के बारे में बताती है। गरीबी के बुरे दिनों में भी मानवता के प्रति त्याग और सेवा की भावना को दर्शाने वाली प्रभापन्त की ऐसी ही एक लोक-कथा 'कुत्री मुया' जीवन के मुख्य पहलू को दर्शाती है। 
नीदर लैंड की लोकसभा ‘भूक्खड़ ओले-बोले’ एक पेटू की कहानी है जो भूनी हुई पूरी भेड़, दस रोटियां और बैल भी खा लेता है। उसके बाद भी उसकी भूख खत्म नहीं होती है तो वह रास्ते में मिलने वाली किसी बुढ़िया के आडू और चीज खा जाता है। क्या आपको नहीं लगता हैं कि भारतीय मिथकों में भीम और दुर्वासा मुनि ऐसे ही पात्र है ? महाभारत में एक बार दुर्वासा नहा-धोकर द्रोपदी के पास भोजन की मांग करता है। जितना भी भोजन देने से उसकी भूख खत्म नहीं होती है, ठीक भुक्खड़ ओले-बोले की तरह। अंत में, कृष्ण भगवान द्रोपदी को तुलसी का पत्ता देते हैं, जिसे खाकर दुर्वासा मुनि की भूख शांत हो जाती है। इस तरह भारत और नीदरलैंड की लोक कथाओं में काफी समानता देखने को मिलती है। 
‘कुबड़ा’ लिंबर्ग की कहानी है, नीदरलैंड से किसी हिस्से की। इस कहानी में कुबड़ा वायलिन  बजाने वाला कलाकार है। रात में किसी जंगल में वॉयलिन बजाता है तो अप्सराएं उसे सोने के सिक्के इनाम स्वरूप देती है। इस प्रकार कुबड़े की दुरावस्था समाप्त हो जाती है और अप्सराओं की मदद से उसका कुबड भी खत्म हो जाती है। नीदरलैंड की यह लोककथा शेक्सपियर के नाटक ‘मिडसमर नाइट’ज ड्रीम’ की याद दिलाती है। साथ ही साथ, कृष्ण द्वारा कुब्जा के कुबड़ को मिटाने वाली कहानी की भी। ऐसी की एक लोककथा प्रभापन्त ने संकलित की है, 'कलबिष्ट' शीर्षक से, जिसमें कल्याण सिंह बिष्ट नमक एक साधारण व्यक्ति के देवता में परिवर्तित होने के बारे में है। गुरु गोरखनाथ की कृपा से कालबिष्ट को दिव्य शक्ति मिलती है।
नीदरलैंड के किसान के बेटे के जीवन पर आधारित ‘बुद्धिमान गधा’ लोक कथा में माँ-बेटी दो चुड़ैलें है, जो झाड़ू पर बैठकर किसी अज्ञात स्थान पर जाती है, नृत्य करने तथा जीवन का आनंद लेने के लिए। मगर नीदरलैंड के ब्राबनद शहर में रहने वाला किसान के बेटे को चुड़ैल की बेटी से प्यार हो जाता है, इसलिए वह उसका पीछा करता है, झाड़ू पर बैठकर उसी की तरह मंत्रोच्चारण के बाद वह उस अज्ञात स्थान पर पहुँच जाता है। बेटी उस स्थान पर आया देखकर उसे गधा बना देती है, जो समय आने पर अपनी बुद्धि से फिर मनुष्य बन जाता है। झाड़ू पर बैठकर उड़ने वाला दृश्य विश्व में बहुचर्चित फिल्म ‘हैरी पोटर’ की याद दिलाती है। और चुड़ैलों द्वारा अपने प्रेमी को गधे में बदलने की प्रक्रिया मन में कहीं-न-कहीं कामाख्या देवी की याद तरोताजा करती है, जहां चुड़ैलें अपनी तंत्र-शक्ति से आदमियों को दिन में जानवर बना देती हैं और रात में फिर से आदमी बनाकर अपनी कामुक इच्छाओं की तृप्ति करती है। ऐसी ही ‘खकरमून’ कहानी प्रभापंत की है, जिसमें छोटी बकरी खकरमून अपनी  चतुराई से न केवल अपनी बल्कि पूरे परिवार की जान बचाती है, रणनीतिक रूप से बाघिन, को मार देती है। 
‘लकड़ी का संदूक’ लोककथा में संदूक भानुमती के पिटारे की तरह है, जिसमें टोपी और बांसुरी रखी हुई होती है। पिता की मृत्यु के बाद दोनों बेटों में एक टोपी ले लेता है तो दूसरा बांसुरी। संदूक की ये दोनों चीजें अलाऊद्दीन के चिराग की तरह है, जिसे रगड़ने पर जिन्न पैदा होता है। इस लोक कथा में बांसुरी और टोपी से जिन्न निकलता है। एक भाई किसी राजकुमारी के छलावे में आकर ये दोनों चीजें खो देता है, तो वहां के नाशपाती के माध्यम से फिर से वह प्राप्त कर लेता है। बड़ी नाशपाती खाने से नाक बढ जाता है और छोटी खाने से फिर सामान्य हो जाता है। इसी ट्रिक का फायदा उठाकर वह राजकुमारी से अपनी हड़पी हुई चीजें हासिल कर लेता है। यह नीदरलैंड के जीलैंड की लोककथा है, जहां लोग आज भी नाशपाती खाने से डरते हैं कि कहीं उनकी नाक लंबी न हो जाए। ऐसी ही लोककथा प्रभापन्त की भी है, ‘सात अप्सराएं’, जिसमें उन्होने ब्राह्मण की सादगी और बूढ़ी औरत के डॉ ऋतु के ‘लकड़ी का सन्दूक’ की राजकुमारी की तरह धोखेबाज स्वभाव को दर्शाया है। जिस तरह नीदरलैंड का नवयुवक नाशपाती खाकर अपना जीवन बचाता है, उसी प्रकार करची (करछुल), जादुई चम्मच, जादुई रजाई, उड़ान खटोला और पिटने वाली छड़ी प्रभापन्त के ब्राह्मण को बचाती है। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि डॉ. प्रभा पंत और डॉ ऋतु शर्मा की ये लोक-कथाएँ दैनिक जीवन की व्यावहारिक समस्याओं को हल करने के तरीके के बारे में 'रेडी रेकनर' की तरह काम करती है।
इन संकलन की अंतिम कहानी है - ‘समझदार किसान’। इस लोक कथा में किसान की पत्नी बहुत चालाक होती है, और उसके पेट में कोई बात नहीं रह पाती है। पंचतंत्र की कहानी ‘वाचालो लभते नाशम्’ की याद दिलाती है। किसान अपनी पत्नी की इस आदत के कारण खेत में मिले गुप्तधन को बचाने के लिए उसे तरह-तरह की बातें करता है जैसे राजा के बेटे की शादी, मछलियों की बरसात, मीठी रोटी के पेड़ होना आदि। ताकि गुप्त धन के बारे में लोगों को बोलने पर भी, यहां तक कि राजा के पास खबर जाने पर भी वह अपने गुप्तधन को बचा पाएगा, यह कहकर उसने शायद सपना देखा होगा, तभी तो उलटी-सीधी अनर्गल बातें करती है। इस प्रकार वह किसान अपनी समझदारी से गुप्तधन की रक्षा कर लेता है। इससे मिलती-जुलती प्रभपांत की लोक-कथा है 'गरीब ब्राह्मण'।जिसमें ईश्वर पर अंधविश्वास किए बगैर हमारे जीवन की दरिद्रता को दूर करने के लिए कड़ी मेहनत में विश्वास और समझदारी की आवश्यकता को दर्शाया गया है। 
अंत में, नीदरलैंड की लोक-कथाओं का भारतीय लोक-कथाओं के साथ तुलनात्मक विवेचन करने पर यह पता चलता है कि यद्यपि नीदरलैंड की लोक-कथाओं ने भारतीय लोक-कथाओं से समानता होने के बावजूद अभी तक भारत में अपना कोई विशिष्ट स्थान नहीं बनाया है, इस कमी को पूरा करने का सार्थक प्रयास किया है डॉ. ऋतु शर्मा ननंन पांडे ने, जिनका नाम प्रवासी साहित्यकार के रूप में वैश्विक स्तर पर बड़े आदर के साथ लिया जाता है। उन्होंने नीदरलैंड की लोक कथाओं को अनुवाद के माध्यम से हिंदी में लाकर दोनों देश के बीच न केवल सांस्कृतिक भाषायी समन्वय का कार्य किया है, बल्कि ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना को प्रतिपादित करते हुए दोनों देशों की एकता को अटूट रखने का संदेश दिया है, जो राम मनोहर लोहिया के ‘विश्वभाषा’, ‘विश्व संविधान’ और ‘विश्व नागरिक’ के पथ को प्रशस्त करता है।
 


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