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जलन से जल तरंग का सफल मंचन  एसिड अटैक पीड़िता की संघर्षपूर्ण दास्तान

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30 Jul 25
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जलन से जल तरंग का सफल मंचन  एसिड अटैक पीड़िता की संघर्षपूर्ण दास्तान

कोटा / रंगीतिका संस्था के द्वारा मदर टेरेसा स्कूल के सभागार में राम शर्मा कापरेन द्वारा लिखित जलन से जल तरंग नाटक का मंचन किया गया । जलन से जल तरंग नाटक का मंचन साहित्यकार और शिक्षाविद स्नेहलता शर्मा ने किया । नाटक को भरत मुनि ने पंचम वेद की संज्ञा की । कार्यक्रम के संचालक विजय जोशी ने नाटक के साहित्यिक और दार्शनिक आमंत्रण पत्र की व्याख्या प्रस्तुत की और पंच महाभूतों की नाटकीय संदर्भ में व्याख्या प्रस्तुत की । 
     नाटक एसिड अटैक पीड़िता की व्यथा और उसके आंतरिक संघर्ष को बड़ी शिद्दत से व्यक्त करता है । कुछ वर्ष पहले महिलाओं और युवतियों पर एसिड अटैक की घटनाएं बहुत तेज़ी से हुई थी । उसमें मुंबई की एक पीड़िता ने इस मर्मान्तक कष्ट और आत्म संघर्ष से उभरते हुए बाद में किस तरह दूसरी पीड़िताओं को राह दिखायी यह नाटक पृष्ठभूमि में उस वीरांगना को एक प्रणाम है ।
     नाटक की मुख्य पात्र निम्मो जिसकी भूमिका लावण्या जोशी ने निभाई है ने अपनी भूमिका के साथ पूर्ण न्याय किया है । एसिड पीड़िता के अंतर्द्वद्व को उसकी मनोबल के माध्यम से दूसरी पीड़िताओं के उद्धार को जीवन का लक्ष्य बनाने का सम्पूर्ण चित्रण उभारने में निर्देशक स्नेहलता शर्मा सफल हुई हैं ।
        निम्मों की माँ के रूप में हिमानी शर्मा , पिता की भूमिका में राम शर्मा का अभिनय अत्यंत प्रभावी रहा है । दोनों की पति पत्नी के रूप में केमेस्ट्री भी कमाल की रही है । संवाद काफ़ी प्रवाहशील हैं और उनमें अंग्रेज़ी , उर्दू शब्दों का प्रयोग पात्रों की स्थिति के अनुसार किया गया है । मूल रचित नाटक से काफ़ी इंप्रूवाइजेशन राम शर्मा ने मंचित नाटक में किया है । जैसे मुख्य पात्र निम्मो द्वारा पढ़ी गई कविता और गीता के श्लोक का नाटक के अंत में प्रभावी प्रयोग । नाटक के मार्मिक प्रसंगों जैसे निम्मो के एसिड के बाद की मनःस्थिति , माता पिता की उसके उपचार के दौरान मानसिक और आर्थिक कष्टों से उत्पन्न स्थितियों पर अभिनय उभर कर आया है । बाकी छोटे से रोल में अब्दुल ऑटोवाले की भूमिका सराहनीय रही है । नाटक दर्शकों को बांधने में सफल रहता है और मुख्य पात्रों का जानदार अभिनय नाटक को फ़लाग़म तक आसानी से ले जाता है । नाटक की समाप्ति सुखांत और आशावादिता से होती है । जो कि भारतीय नाट्य शास्त्र की पृष्ठभूमि है । किसी भी नाटक का सबल पक्ष प्रकाश और ध्वनि संयोजन होता है इस मामले में अंशु दाधीच और अश्वत्थामा का संगीत पक्ष नाटक के प्रभाव को द्विगुणित कर देता है । 
     दर्शकों की उत्साहजनक उपस्थिति ने अभिनेताओं का मनोबल बढ़ाया । राम शर्मा और उनकी टीम सीमित संसाधनों से शिवराम स्वर्णकार और शारद तैलंग , मास्टर राधाकृष्ण जी की लुप्त होती परंपरा को बचाने का प्रयास कर रही है । उनकी यह कोशिश स्तुत्य है । कार्यक्रम के अतिथियों डा अतुल चतुर्वेदी , डॉ गिरी , दीपक सक्सेना ने सारगर्भित टिप्पणियों से नाटक के सबल पक्ष को दर्शकों के सम्मुख रखा । सुझाव मात्र इतना है कि नाटक में प्रॉप्स का प्रयोग सावधानी से किया जाए तो और श्रेयस्कर हो ।
 


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