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तीन दिवसीय नाट्य लेखन एवं निर्देशन कार्यशाला का हुआ आगाज़

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27 May 23
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तीन दिवसीय नाट्य लेखन एवं निर्देशन कार्यशाला का हुआ आगाज़

, उदयपुर।  राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर द्वारा भारतीय लोक कला मण्डल के सहयोग से तीन दिवसीय नाट्य लेखन एवं निर्देशन कार्यशाला का हुआ आगाज।
भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डॉ. लईक हुसैन ने बताया कि संस्था में राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर के साझे में तीन दिवसीय राष्ट्रीय लेखक एवं निर्देशन कार्यशाला प्रारम्भ हुई। जिसमें देश एवं प्रदेश के लगभग 50 ख्यातनाम एवं प्रसिद्ध नाट्य विद, नाटककार, नाट्य निर्देशक, समीक्षक एवं चिन्तक भाग ले रहे है। भारतीय लोक कला मण्डल के गोविन्द कठपुतली प्रेक्षालय में आयोजित कार्यशाला के उद्घाटन सत्र के प्रारम्भ में श्रीमती बिनाका जेश मालु, अध्यक्ष, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर ने कार्यशाला में पधारे सभी अतिथियों एवं वक्ताओं का माला, शॉल, मोमेंटो एवं साफा पहनाकर स्वागत किया। इसके पश्चात सभी गणमान्य अतिथियों ने भारतीय लोक कला मण्डल के संस्थापक, प्रसिद्ध नाट्य लेखक एवं निर्देशक पद्मश्री देवीलाल सामर साहब की तस्वीर पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यशाला का उद्घाटन किया। कार्यशाला के उद्घाटन सत्र की  अध्यक्षता रमेश बोराणा, उपाध्यक्ष राजस्थान मेला प्राधिकरण, राज्य मंत्री एवं प्रसिद्ध नाट्य विद ने की। श्री बोराणा ने दिनांक 26 से 28 मई के मध्य आयोजित हो रही  कार्यशाला की परिकल्पना एवं उद्देश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि उक्त कार्यशाला राजस्थान के महान कला एवं संस्कृति प्रेमी पद्मश्री देवीलाल सामर की धरती उदयपुर में इसलिए कर रहे है कि देश के नाट्य लेखक एवं निर्देशक दोनों एक साथ बैठकर अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढ सके। उद्घाटन सत्र में बीज वक्तव्य प्रसिद्ध निर्देशक एवं चिंतक श्री भानु भारती ने दिया उन्होंने कहा कि नाटक लेखक और निर्देशक के अंतर संबंधों को उजागर करता है। सत्र का अध्यक्षीय भाषण प्रसिद्ध नाट्य लेखक एवं समीक्षक (बीकानेर) श्री नन्द किशोर आचार्य, ने दिया। अपने अध्यक्षीय भाषण में श्री आचार्य ने कहा कि रंगमंच सिर्फ मंच नहीं है बल्कि जीवन में घटीत घटनाओं को संप्रेशित करने का बहुत बड़ा माध्यम है।
 दोपहर बाद कार्यशाला का द्वितीय सत्र प्रारम्भ हुआ जिसमें प्रतिभागियों द्वारा अपना परिचय दिया गया। उसके पश्चात नाट्य शास्त्र व पश्चिमी नाटक के संदर्भ में निर्देशक की परिकल्पना व भूमिका विषय पर प्रसिद्ध लेखक एवं निर्देशक श्री बी.एम. व्यास, लेखक-निर्देशक (मुम्बई) ने अपना वक्तव्य दिया अपने वक्तव्य में उन्होंने नाट्य शास्त्र के इतिहास, उसके रचना काल की जानकारी देते हुए निर्देशक, रचनाकार एवं सूत्रधार जैसे शब्दों की उत्पत्ति के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला। इसी सत्र में भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डॉ. लईक हुसैन ने नाट्य लेखक एवं निर्देशक का संबंध विषय पर अपना वक्तव्य दिया। अपने वक्तव्य में डॉ. हुसैन ने कहा कि लेखक एवं निर्देशन का आपसी तालमेल आवश्यक है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एक अच्छे नाटक के मंचन के लिए एक अच्छी कहानी की आवश्यकता होती जितनी प्रभावी कहानी होगी नाटक का मंचन भी उतना ही अधिक प्रभावित होगा।  उक्त सत्र का संचालन श्री अभिषेक मुद्गल ने किया।

कार्यशाला के तृतीय सत्र में ‘‘उद्बोधन विषय एवं वक्ता’’ में जयपुर के प्रसिद्ध लेखक-समीक्षक  श्री राघवेन्द्र रावत ने नाटक और सामाजिक सरोकार विषय पर प्रकाश डाला तो इसी सत्र में देश के प्रसिद्ध नाट्य लेखक-समीक्षक  नन्द किशोर आचार्य (बीकानेर) ने नाट्य लेखन: दर्शन और प्रतिबद्धता  विषय पर अपना उद्बोधन दिया उसके पश्चात नाट्य निर्देशक एवं चिंतक: श्री भानु भारती, (उदयपुर) ने निर्देशक की दृष्टि और नाट्यालेख विषय पर अपना उद्बोधन दिया इस सत्र का संचालन विपिन पुरोहित ने किया।

उसके पश्चात् सभी प्रतिभागीयों ने संस्था के गोविन्द कठपुतली प्रेक्षालय में ही कठपुतली एवं लोक नृत्य प्रदर्शन  का कार्यक्रम देखा। उसके पश्चात् सभी ने भारतीय लोक कला मण्डल के मेला ग्राउंड में शाम 8 बजे आलम शाह खान साहब की कहानी ‘‘मौत का मजहब’’ को देखा उक्त नाटक की प्रस्तुति दि परफोरमर्स कल्चरल सोसायटी, उदयपुर के कलाकारों द्वारा युवा लेखक एवं नाट्य निर्देशक कविराज लईक के निर्देशन में हुई।


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