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कविता-मानव का दम्भ

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06 Oct 21
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- लक्षमीनारायण खत्री

कविता-मानव का दम्भ

तेरे
तितर-बितर 
रिश्ते 
वापस आत्मा से 
कभी नहीं जुड़ते 
मन के 
बंद दरवाजे 
पर लगे 
अलगाव के ताले 
नहीं खुलते 
जब तक 
इंसान के 
भीतर भरे 
दम्भ का नाश 
नहीं होता 
तेरे मानव
होने का
एहसास नहीं होता।


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