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नारी तू नारायणी तूझे कोटि-कोटि प्रणाम

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18 Feb 21
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नारी तू नारायणी  तूझे कोटि-कोटि प्रणाम

स्त्री का जीवन एक  है पर इस एक जीवन में उसके रूप अनेक हैं। स्त्री अपने सम्पूर्ण जीवन में वो अनेक रूपों को धारण करती है। और हर रूप में उसे कई नई चुनौतियों का सामना करना होता है। इसीलिए कहा जाता  है - नारी तू नारायणी है। क्योंकि नारी शक्ति ही है जो उभय कुल की लाज को समेटते हुए ही आगे बढ़ने का साहस रखती है।

नारी ही है जो एक नयी जिंदगी को जनम देने का साहस रखती है। कहा जाता है माँ के रूप में नारी का नया जन्म होता है, पर मैं कहूंगी कि नारी कई जनम लेती है। अपने एक जीवन में नारी का जनम एक बार तब होता है जब वो खुद जनम लेती है,  फिर जब उसकी शादी हो जाती और अपना सब कुछ भूल कर वह नए घर को अपना बनाती  है तब वो दुबारा जनम लेती है। और तीसरी बार फिर जन्म लेती है जब वो खुद मौत के मुँह में जाकर अपनी संतान को दुनिया में लाती  है।  इन्हीं विविध रूपों को चरितार्थ करता ये लेख ‘नारी तू नारायणी’ की थीम और यथार्थ पर केन्दि्रत है।

माँ के रूप में 

घर के अंदर आधी रोटी हो और खाना खाने बैठे तो ‘‘मैंने खाना खा लिया है अब तू खा ले बेटा” यह शब्द बोलने वाली माँ ही हो सकती है। माँ जो खुद मरकर एक जिन्दगी को जन्म देने का साहस रखती है, यही अपने आप में बहुत बड़ी बात है।

माँ जो अपने बच्चो के भविष्य को सँवारने के लिए हर पल प्रयासरत रहती है, वही माँ अपने बच्चों पर विपदा आने पर नारी से नारायणी का रूप भी धर सकती है। बच्चों की हर जरूरत का बिना कहे जान लेना ही नारी को माँ से जगत जननी की प्रतिष्ठा देता है।  

बेटी के रूप में

माता-पिता से दूर रहकर भी हर पल उनके पास रहना, इसे कहते हैं बेटी। जब वह छोटी होती है तो छोटी-छोटी बातों पर पापा से जिद करने वाली बेटियां बड़ी आसानी से पापा की हर बात मान भी जाती हैं।  पिताजी भूखे हैं। उनकी आँखों की भाषा और दिल के भाव को समझने वाला अगर कोई होता है तो वो सिर्फ पुत्री ही होती है। 

एक बेटी जिसे पता होता है कि माँ-बाप दूर हैं फिर भी हर समय उनके करीब रहती है। यही आत्मीय जुड़ाव बेटी को बेटी से नारी व नारी से नारायणी का रूप प्रदान करता है।

 

बहन के रूप में

बहन के रूप मे वह हमेशा भाई के लिए ढाल बनकर खड़ी होती है। घर मे अगर बहन होती है तो भाई की सारी शरारत माफ हो जाती है। अपने घर से भी ज्यादा अगर उसे किसी की चिंता होती है तो वह घर होता है भाई का। भाई के लिए वह बलिदान देने के लिए भी तैयार होती है। भाई की कलाई पर राखी बांधकर रक्षा का वचन तो भाई से लेती है पर हर समय जब भी भाई पर आपदा आती है तो बहन ही है जो हमेशा आगे खड़ी मिलती है

सखी के रूप में

वह इन्सान को ऊर्जामय और उल्लास से रखती है तो वो इसका स्वरूप है सखी का। यह सखी के रूप में हर आपत्ति में साथ देने के लिए खड़ी होती है। एक ऎसा आत्मीय रिश्ता जिसे हम सब कुछ बिना सोचे-समझे बता सकें, जो हमारे सुख में सुखी व दुःख में दुखी हो जाये वो होती है सखी। सखी को बहन, माँ, भाई, पिता आदि किसी भी रूप में आँका जा सकता है  क्योंकि आपको जिस समय भी उसकी आवश्यकता होगी, हो सकता है अन्य सभी आपसे बहुत दूर हों, पर यह हमेशा आपके पास, आपके साथ खड़ी होगी।

गृहलक्ष्मी के रूप में

घर की शोभा गृहिणी से होती है। गृहिणी के बिना घर को घर नहीं कहा जा सकता। संवेदनशील सेवा सर्मपिता की आकृति वो पत्नी के रूप मे समाहित हो जाती है। घर आते ही थके पतिदेव को क्या देना है, इसकी सोच पत्नी अर्थात गृहलक्ष्मी को बहुत पहले से होती है।

घर पर कब क्या आवश्यकता है उसका ध्यान रखना, पति देव की आदतों के अनुरूप खुद ढल जाना यही सब लेकर आती है। अपना घर छोड़कर एक नए घर को अपना बनाने वाले इसी रूप में उसे नारायणी का दर्जा, अन्नपूर्णा, लक्ष्मी आदि उपाधियों से अलंकृत किया गया है

बहू के रूप में

घर के हर सदस्य का ध्यान रखने का दायित्व यह निभाती है। परिवार के हर सदस्य के दुःख में दुःखी होती है। सभी की समस्याआें का समाधान करने का प्रयत्न करती है। इस रूप मे यह खुद को भूलकर दूसरों के लिए जीने लगती है।

किसको किस समय क्या चाहिये व किसकी क्या पसंद है, ये ध्यान वो खुद की जरूरतों को भुला कर रखती है। सुबह की चाय से लेकर रात की रोटी तक का समय पर पूरा होना, इस लक्ष्य पर अल सुबह से लग जाना और कभी किसी से कोई शिकायत का भाव न रखना, ये भाव ही नारी को नारायणी का दर्जा दिलाते हैं।

इस तरह हम कह सकते हैं कि हर रूप में एक ही नारी के अनेक किरदारों का पूरी जिम्मेदारी के साथ निवर्हन करते हुए आजकल की नारी हर तरह से हर एक दिशा में समाज-जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में बाहर आकर खुद को साबित कर रही है। अब वह अपनी घरेलू जिम्मेदारियों के साथ खुद की पहचान बनाने में भी आगे है।  इसलिए कहा जाता है कि एक नारी के सौ रूप हैं और वो नारी से महारानी बनकर अब आगे आ रही है।

पिण्ड को चैतन्य रूप बना दे वो माँ होती है।

करुणा की गंगा तो वात्सल्य का झरना दे वो माँ होती है।

माँ के रूप मे ये भगवान से भी महान होती है।

माँ कलम है, दवात है, स्याही है माँ।
माँ परमात्मा की स्वयं एक गवाही है माँ।
माँ के रूप मे नारी फूल से भी कोमल तो वज्र से भी कठोर होती है ।
माता के रूप मे त्रिलोकीनाथ की भी जनेता है।

 

- रीना अरविन्द छंगानी

(स्त्री विमर्श लेखिका)

8094117117

reenachhngani@gmail.com


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