आर्यसमाज के मूर्धन्य विद्वान एवं शिरोमणी गीतकार पं0 सत्यपाल पथिक जी आजकल वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के पांच दिवसीय शरदुत्सव में पधारे हुए हैं। आज उनसे प्रातःकाल यज्ञ के बाद लम्बी वार्ता हुई। पथिक जी की यह महानता है कि वह हमारे प्रति अत्यन्त स्नेह का भाव रखते हैं। पथिक जी से अनेक विषयों पर बातें हुई। जब यशस्वी आर्य संन्यासी स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती जी की दिल्ली में मृत्यु हुई थी तो दिल्ली के निगम बोध घाट में उनकी अन्त्येष्टि वैदिक रीति से सम्पन्न की गई थी। उन्होंने बताया कि शवयात्रा में एक गाड़ी पर स्वामी जी महाराज का शव रखा गया था जो सबसे आगे चल रही थी। उसके बाद की गाड़ी में पं0 सत्यपाल पथिक जी चल रहे थे। इस दुःख के वातावरण में पथिक जी ने कार में बैठे-बैठे इस गीत को तैयार किया था। यह भी कह सकते हैं कि उस वातावरण में उनके हृदय में यह भाव उत्पन्न हुए थे। यह गीत बहुत मार्मिक गीत बन गया है जो किसी आर्य विद्वान की मृत्यु के अवसर गाया जाये तो इसे श्रवण कर मन हल्का हो जाता है और साथ ही वियुक्त आत्मा को भी स्मरण कराने और उनकी स्मृतियों को ताजा करने में सहायक होता है। किन्हीं कारणों से यह भजन आर्यसमाज की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित नहीं हुआ है। हमने इस भजन को कुछ वर्ष पूर्व सामवेदभाष्यकार एवं वेदों के मूर्धन्य विद्वान ऋषि भक्त डा0 रामनाथ वेदालंकार जी की मृत्यु के बाद आयोजित उनकी प्रथम वर्षी पर पथिक जी के ही श्रीमुख से सुना था। हम इस महत्वपूर्ण गीत वा भजन को यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। हमने इसे टाईप करते हुए इसके शब्दों को कई बार पढ़ा है। हमें यह भजन पथिक जी के अन्य प्रभावशाली भजनों के समान प्रिय लगता है। इसे सुनकर आत्म-सन्तुष्टि अनुभव होती है। पथिक जी द्वारा बताई इस गीत की रचना की भूमिका को उनसे जानकर इस भजन का महत्व हमारे लिये कहीं अधिक बढ़ गया है।
-:भजनः-
आकाश बता क्या बात हुई क्यों धैर्य तुम्हारा टूट गया।
सीने में गगन के छेद हुआ इक और सितारा टूट गया।
आकाश बता क्या बात हुई.......
1- यह कौन गया है महफिल से हर आंख से आंसू बहने लगे।
सब ओर उदासी फैल गई अरमान दिलों के कहने लगे।
इस आर्य समाज की नदियां का मजबूत किनारा टूट गया।
आकाश बता क्या बात हुई.......
2- इक फूल सिमट कर बिखर गया चहुं ओर महक बिखरा कर के।
इक दीप बुझा है जन जन को जीने की राह दिखा कर के।
जो ज्ञान के जल से पूरित था वह कलश हमारा टूट गया।
आकाश बता क्या बात हुई.......
3- नजरों ने जिसे सजते देखा अनगिनत विशाल सभाओं में।
हर बार नया चिन्तन देता निष्णात अनेक कलाओं में।
अब नजर कहीं न आयेगा नजरों का नजारा टूट गया।
आकाश बता क्या बात हुई.......
4- चलते चलते इन राहों पे कोई साथ अचानक छोड़ गया।
ऋषिराज दयानन्द के पथ का इक और ‘पथिक’ दम तोड़ गया।
क्या हाल कहें अपने दिल का जब दिल ही बेचारा टूट गया।
आकाश बता क्या बात हुई.......
(समाप्त)
हम आशा करते हैं कि हमारे सभी मित्रों को भी यह भजन अच्छा लगेगा। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
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