कोटा । इन्डो-इजराइल कलस्टर सेमीनार के दूसरे दिवस गुरूवार को इजराइल और देशभर के विभिन्न सेन्टर ऑफ एक्सीलेन्स सेन्टर के कृषि वैज्ञानिकों ने कोटा संभाग की जलवायु के अनुसार नीबूवर्गीय फलोत्पादन की संभावनाओं व विशोषताओं को किसानों के खेतों में जाकर देखा तथा कीट व्याधियों के प्रयोगात्मक विधि से लक्षण व उपचार का अध्ययन किया।
इजराइल से आये सिट्रस विशेषज्ञ सलोम सेमूली ने नर्सरी प्रबन्धन, नींबू वर्गीय फसलों की कार्ययोजना के बारे में विस्तार से बताया, देशभर के सेन्टर ऑफ एक्सीलेन्स सेन्टर से आये विशेषज्ञों को केनौपी मेनेजमैन्ट के बारे में केन्द्र पर प्रयोगात्मक विधि से जानकारी दी। कोटा के एक्सीलेंस सेन्टर पर किये गये नवाचारों को उन्होंने सराहना करते हुए कहा कि यहां की मृदा और जलवायु नीबूवर्गीय पौधों के लिए अनुकूल है इससे किसानों की आय में वृद्वि के साथ उच्च गुणवत्ता के फलो का उत्पादन हो सकेगा। उपनिदेशक उद्यान शंकरलाल जांगिड़ ने सभी कृषि वैज्ञानिकों को सेन्टर पर तैयार की गई विभिन्न प्रजातियों व किस्मों का अवलोकन कराया तथा कोटा संभाग में फलोत्पादन को बढावा देने के लिए सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। सेमीनार में भाग लेने वाले सभी कृषि वैज्ञानिकोें को प्रमाण पत्र देकर सेमीनार का समापन किया गया।
कमलपुरा में देखे संतरा के बगीचे-
इजराइल से आये सिट्रस विशेषज्ञ सलोम सेमूली के नेतृत्व में सभी कृषि वैज्ञानिक रामगंजमंडी तहसील के ग्राम कमलपुरा पहुचें जहां सेन्टर ऑफ एक्सीलेन्स फॉर सिट्रस की सहायता से किसान अरविन्द अहीर द्वारा लगाये गये नीबू वर्गीय पौधों में लगन वाले कीट व्याधियों का प्रायोगात्मक विधि से लक्षण और उपचार के बारे में अध्ययन किया। ग्रामीणों को कृषि वैज्ञानिकों के दल ने अधिक फलोत्पादन के बारे में जानकारी दी तथा उनकी शंकाओें का समाधान भी किया। उन्होंने किसानों द्वारा बगीचे स्थापना के लिए अपनाई जा रही तकनीकी और कीट प्रबन्धन प्रणाली का भी अध्ययन किया।
कोटा में फलोत्पादन की विपुल संभावना-
राष्ट्रीय बागवानी मिशन द्वारा वित्त पोषित इन्डो-इजराइल परियोजना के तहत स्थापित कोटा का एक्सीलेन्स सेन्टर की स्थापना नौ हेक्टेयर क्षेत्र में की गई है। केन्द्र पर नींबू वर्गीय बगीचों के प्रबंधन तथा उच्च उत्पादकता प्राप्त करने, उच्च गुणवत्ता युक्त एवं कीट व्याधि रहित पौध तैयार करना है। इजराइल से आये सिट्रस विशेषज्ञ सलोम सेमूली ने कोटा में नींबू वर्गीय फलोत्पादान के लिये विपुल सम्भावनाएं बताई। उन्होंने कहा कि यहां की जलवायु संतरा उत्पादन के लिये उत्तम है। 650 से 1000 मि.ली. वर्षा तथा काली, जलोढ़ मिट्टी संतरे की उत्तम खेती के लिये अनुकूल है। उन्होंने उचित सिंचाई प्रबन्धन मृदा जनित कवक कीट व्याधि प्रबन्धन के साथ-साथ किसानों को फसलोत्तर प्रबंधन व मूल्य संवर्धन की जानकारी प्रदान करने का सुझाव दिया।
उप निदेशक शंकर लाल जांगिड ने बताया कि सेमीनार में मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा प्रदेशों के एक्सीलेन्स सेन्टरों के कृषि विशेषज्ञों ने भी सुझाव दिए। इस अवसर पर डॉ. सुमन मीणा द्वारा सिंचाई एवं उर्वरक प्रबन्धन पर प्रायोगिक कार्य के माध्यम से अधिक फलोत्पादन के बारे में बताया। सेमीनार में संयुक्त निदेशक उद्यान पीके गुप्ता, संयुक्त निदेशक कृषि डॉ. रामावतार शर्मा, क्षेत्रीय अनुसंधान निदेशक डॉ. एनएल मीणा, संयुक्त निदेशक सीओई संतरा झालावाड़ आरडी सिंह, परियोजना निदेशक (शस्य) डॉ. कल्पना शर्मा, उप निदेशक उद्यान राशिद खान, उपनिदेशक खेमराज शर्मा, उप निदेशक कृषि रामनिवास पालीवाल, उपनिदेशक रणधीर सिंह सहित विभिन्न प्रदेशों से आये कृषि विशेषज्ञ और किसान भी उपस्थित रहे।
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