राज्यपाल श्री हरिभाउ किसनराव बागड़े ने कहा कि मेवाड़ देश पर मर मिटने वालों की धरा है। इतिहास साक्षी है कि भारत वर्ष पर जब-जब पश्चिम की ओर से बाहरी आक्रमण हुए, तब-तब मेवाड़ प्रहरी के रूप में खड़ा रहा है।
राज्यपाल श्री बागड़े बुधवार शाम को प्रताप गौरव केंद्र राष्ट्रीय तीर्थ स्थित कुम्भा सभागार में वीरशिरोमणि महाराणा प्रताप की जयंती की पूर्वसंध्या पर आयोजित संगोष्ठी को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बप्पा रावल से महाराणा प्रताप तक और उनके बाद के शासकों ने विदेशी आक्रांताओं को खदेड़कर देश की रक्षा की। महाराणा प्रताप का संपूर्ण जीवन स्वाभिमान के लिए संघर्ष की प्रेरणा देता है। देश की अस्मिता की रक्षा के लिए उनके योगदान को युगों-युगों तक याद रखा जाएगा।
प्रारंभ में राज्यपाल श्री बागड़े सहित अतिथियों का वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के अध्यक्ष प्रो भगवतीप्रकाश शर्मा, सचिव महावीर चपलोत सहित अन्य ने मेवाड़ी पगडी पहनाकर व शॉल ओढ़ाकर स्वागत किया। साथ ही महाराणा प्रताप का स्मृति चिन्ह भी भेंट किया। राज्यपाल श्री बागड़े सहित अतिथियों ने वीरशिरोमणि महाराणा प्रताप की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। अतिथियों ने हल्दीघाटी युद्ध के 450 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में वर्षपर्यन्त प्रस्तावित कार्यक्रमों के पोस्टर का भी विमोचन किया। इससे पूर्व राज्यपाल श्री बागड़े ने प्रताप गौरव केंद्र परिसर में महाराणा प्रताप के जीवन पर आधारित पैनोरमा का अवलोकन किया। गौरव केंद्र के निदेशक अनुराग सक्सेना ने पैनोरमा में प्रदर्शित तथ्यों के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
इतिहास में झूठे तथ्य अंकित किए
राज्यपाल श्री बागड़े ने कहा कि प्रारंभिक दौर में भारत का इतिहास विदेशियों ने लिखा। इसमें कई झूठे तथ्य अंकित किए गए। उन्होंने आमेर की राजकुमारी और अकबर के विवाह को भी झूठा बताया। उन्होंने कहा कि अकबर की आत्म कथा अकबरनामा में इसका कोई जिक्र नहीं हैं। इसके अलावा महाराणा प्रताप की ओर से अकबर को संधि की चिठ्ठी लिखने का तथ्य भी पूरी तरह से भ्रामक है। प्रताप ने कभी अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं किया। इतिहास में अकबर के बारे में ज्यादा और महाराणा प्रताप के बारे में कम पढ़ाया जाता है। हालांकि अब धीरे-धीरे स्थितियां सुधर रही हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में नई पीढी को अपनी संस्कृति और गौरवशाली इतिहास को सहेजते हुए हर क्षेत्र में अग्रसर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
शिवाजी-महाराणा प्रताप समकालीन होते तो तस्वीर दूसरी होती
राज्यपाल श्री बागड़े ने कहा कि महाराणा प्रताप और शिवाजी महाराज राष्ट्र भक्ति के पर्याय थे। दोनों के जन्म के बीच 90 साल का अंतराल है। यदि वे दोनों समकालीन होते तो देश की तस्वीर दूसरी होती। वीरता और देशभक्ति को लेकर दोनों को समान दृष्टि से देखा जाता है। यहां तक कि शिवाजी महाराज का भौंसलेवंश तो स्वयं को मेवाड़ के सिसोदिया वंश से जोड़ता है। महाराणा प्रताप की वीरता को सम्मान देने के लिए संभाजीनगर में प्रताप की अश्वारूढ़ प्रतिमा स्थापित की गई है।
महाराणा प्रताप भारत के स्व की लड़ाई के पुरोधा
मुख्य वक्ता ऑर्गनाइजर समाचार पत्र के प्रधान संपादक प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि महाराणा प्रताप भारत के स्व अर्थात् स्वराज और स्वाभिमान की लड़ाई के पुरोधा हैं। यही लड़ाई 1857 की क्रांति का मूल है। वीर सावरकर ने देश के स्वाभिमान के संघर्ष के जो छह पृष्ठ लिखे, उसमें से एक पृष्ठ मेवाड़ के संघर्ष का है। उन्होंने कहा कि उसी स्व के संघर्ष को जीवित रखने के लिए प्रताप गौरव केंद्र जैसे स्थलों की स्थापना की आवश्यकता महसूस हुई, उसी स्व को जीवित रखने के लिए महाराणा प्रताप की जयंती मनाना आवश्यक है। श्री केतकर ने कहा कि महाराणा प्रताप द्वारा मेवाड़ के स्वाभिमान की रक्षा के लिए किए गए संघर्ष को लेकर कई भ्रामक बातें फैलाई जाती हैं। जब आधुनिक टेक्नोलॉजी के समय में ऑपरेशन सिंदूर के वीडियो तक दिखाए गए, इसके बावजूद देश में ही मौजूद कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं तो हल्दी घाटी युद्ध के दौर के बारे में कुछ अनर्गल कहा जाए तो कोई बड़ी बात नहीं है। उस दौर में भी प्रताप को अपनों से संघर्ष करना पड़ा था और आज भी यही हो रहा है।
श्री केतकर ने कहा कि महाराणा प्रताप ने न केवल युद्ध के मैदान में अपने पराक्रम से मेवाड़ का मान बढ़ाया, अपितु संघर्षों के बीच भी कुशल प्रशासक के तौर पर मेवाड़ की कला-संस्कृति और साहित्य को संरक्षित एवं संवर्धित किया। उन्होंने मेवाड़ की कला - संस्कृति को रेखांकित करते हुए कहा कि मुगल स्थापत्य के नाम पर आज बहुत कुछ बेचा जा रहा है, जबकि मेवाड़ की स्थापत्य कला को पढ़ाया जाना चाहिए। चावण्ड की चित्रकला की प्रदर्शनी लगनी चाहिए, ताकि नई पीढ़ी हमारी गौरवशाली धरोहर का महत्व समझ सके।
यह भी रहे मौजूद
कार्यक्रम में राज्यसभा सांसद मदन राठौड़, राज्यसभा सांसद चुन्नीलाल गरासिया, लोकसभा सांसद डॉ मन्नालाल रावत, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष शांतिलाल चपलोत, युआईटी पूर्व अध्यक्ष रविन्द्र श्रीमाली, समाजसेवी चंद्रगुप्तसिंह चौहान सहित बड़ी संख्या प्रबुद्धजन एवं गणमान्य नागरिक मौजूद रहे।