गोपेन्द्र नाथ भट्ट
लुप्त पौराणीक सरस्वती नदी को पुनर्जीवित करने के लिए राजस्थान की भजन लाल सरकार और हरियाणा की नायाब सैनी सरकार द्वारा किए जा रहें सामूहिक प्रयास रंग ला रहे है। यदि यह प्रयास सफल रहें तो राजस्थान के रेगिस्तान को समाप्त करने और सुखे क्षेत्र को हराभरा बनाने में बहुत बड़ा योगदान हो सकता है।
राजस्थान सरकार विलुप्त हुई सरस्वती नदी को पुर्नजीवित करने का कार्य को गंभीरता से ले रही है। राइजिंग राजस्थान ग्लोबल इन्वेस्टमेंट समिट के दौरान 09 दिसंबर 2024 को राजस्थान सरकार के जल संसाधन विभाग और डेनमार्क दूतावास के बीच एक समझौता ज्ञापन (एम ओ यू ) पर हस्ताक्षर भी किए गए है । यह समझौता सरस्वती पुराप्रवाह (पेलियोचैनल्स) के पुर्नरुद्धार पर सहयोग से संबंधित हैं। जो राजस्थान के जल सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता के लक्ष्यों में योगदान देगा। इसके अतिरिक्त डेनमार्क दूतावास के प्रतिनिधियों के साथ मंगलवार को एक बैठक भी आयोजित की जा रही है। इस महत्वपूर्ण सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए केंद्रीय और राज्य भूजल विभाग को शामिल करने का अनुरोध किया। जोधपुर की कजरी संस्था और बनारस आई आई टी ने इस परियोजना में भाग लेने की सहमति दे दी है।
इसी प्रकार सरस्वती हेरिटेज बोर्ड हरियाणा के पदाधिकारियों, विषय वस्तु विशेषज्ञों व वैज्ञानिकों के साथ बिरला विज्ञान अनुसंधान, जयपुर में एक बैठक का आयोजन हुआ है जिसमें प्रदेश के जल संसाधन मंत्री, सुरेश रावत भी शामिल हुए और सरस्वती बोर्ड हरियाणा के डिप्टी चेयरमैन धूमन सिंह कीरमिच एवं बिरला विज्ञान अनुसंधान संस्थान, जयपुर के सुदूर संवेदन विभाग प्रमुख डॉ0 महावीर पूनिया एवं जल संसाधन विभाग राजस्थान के मुख्य अभियन्ता भुवन भास्कर भी उपस्थित रहे। इसके साथ ही इसरो के रिटायर्ड डायरेक्टर डॉ जे आर शर्मा और डॉ0 बी के भद्रा ने भी बैठक में वीसी के माध्यम से जुड़कर अपने अनुभव एवं विचार साझा किये।
सरस्वती हेरिटेज बोर्ड, हरियाणा के डिप्टी चेयरमैन धूमन सिंह कीरमिच द्वारा हरियाणा में वैदिक सरस्वती नदी के पुनर्जीवन पर किये गये कार्यों का उल्लेख किया तथा इस बाबत् प्रजेन्टेंशन भी प्रस्तुत किया।
राजस्थान के जल संसाधन मंत्री रावत द्वारा कहा गया कि सरस्वती नदी राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में भूमिगत रूप से युगों से बह रही है। इस लुप्त प्राय नदी का लाभ राज्य के पश्चिमी क्षैत्र के किसानों को मिल सके इसके लिये मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के मार्गदर्शन में इस नदी को धरातल पर लाने का कार्य हरियाणा राज्य के साथ प्रारम्भ किया गया है।
हरियाणा सरकार द्वारा भी इस प्रोजेक्ट को धरातल पर लाने हेतु आवश्यक प्रयास किये जा रहे है।
सरस्वती नदी, जिसे वैदिक ग्रंथों में नदीतमा कहा गया है, एक प्राचीन भारतीय नदी है जो अब विलुप्त हो चुकी है। यह हिमालय से निकलकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात से होकर बहती थी और अरब सागर में गिरती थी। सरस्वती नदी को ऋग्वेद में भी वर्णित किया गया है और यह वैदिक सभ्यता में एक महत्वपूर्ण नदी थी।सरस्वती नदी का इतिहास वैदिक कालीन है।प्राचीन काल में
सरस्वती नदी वैदिक सभ्यता में एक प्रमुख नदी थी और इसका वर्णन ऋग्वेद में मिलता है।
मनुस्मृति, महाभारत और पुराणों और विभिन्न ग्रंथों में भी सरस्वती नदी का उल्लेख मिलता है.
माना जाता है कि जलवायु और भू-आकृतिक परिवर्तनों के कारण सरस्वती नदी लगभग 5000 बी.पी. में विलुप्त हो गई थी लेकिन
कुछ लोग मानते हैं कि सरस्वती नदी आज भी भूमिगत रूप में थार रेगिस्तान के नीचे बहती है।
कुछ पौराणिक कथाएं बताती हैं कि सरस्वती नदी को दुर्वासा ऋषि ने श्राप दिया था, जिसके कारण वह कलयुग के अंत तक लुप्त रहेगी, और कल्कि अवतार के बाद ही उसका पुन: आगमन होगा।
श्रद्धालु लोग प्रयागराज में त्रिवेणी संगम में सरस्वती नदी को भूमिगत रूप से बहते हुए देखते हैं, जो गंगा और यमुना नदियों के साथ मिलती है।सरस्वती नदी को एक पवित्र नदी माना जाता है और इसका धार्मिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से महत्व है।
केयर्न द्वारा पश्चिम राजस्थान में भूमिगत तेल और गैस के भंडारों की खोज के वक्त भी थार रेगिस्तान में पानी के भी अथाह भंडार मिले है। यदि हकीकत में विलुप्त सरस्वती नदी पुनः लोटती है तो राजस्थान के रेगिस्तान और सूखे को समाप्त करने में वरदान बनेगी?