कोटा / आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के लिए कोटा के वरिष्ठ मनोरोग चिकित्सक डॉ.एम.एल.,अग्रवाल ने बताया कि पारिवारिक ,सामाजिक,आर्थिक, व्यक्तिगत समस्याए, मानसिक रोग (अवसाद) चिंता, विकार, आर्थिक समस्या, प्रेम संबंध, परीक्षा,
आर्थिक समस्याएं, अकेलापन, सामाजिक बहिष्कार आदि अन्य कारण आत्महत्या के लिए प्रमुख जिम्मेदार कारक हैं । फंदा लगा कर मरना सबसे मुख्य तरीका हैं साथ ही साथ विषेले पदार्थ का सेवन (विशेषकर किसानों) में धारदार हत्यार, दवाईयां एवं ऊचाई से कुदना अन्य तरीके हैं । जीवन के प्रति संतुलित नजरिया अपना कर एवं सकारात्मक सोच रखते हुए आत्महत्या की घटनाओं पर काफी हद तक नियंत्रण पाना संभव है।
आत्महत्या रोकथाम जागरूकता अभियान के तहत डॉ.अग्रवाल ने बताया कि प्रायः यह देखा गया है कि आत्महत्या करने वाला सहायता की गुहार करता है। नजदीकी लोगों को इस सहायता की पुकार को सुनना है और उसकी सहायता करनी हैं। अधिकतर लोग नींद, भूख नहीं लगना, बात चीत नहीं करना, मरने-मारने की बात करना, अपनी प्रिय वस्तु बांटना, लोगों से माफी मांगना, हिसाब-किताब साफ करने की बात करते हैं। समय से ऐसे चिन्हों को पहचान कर हम लोगों की जान बचा सकते हैं।
उन्होंने बताया हमारे परिवार एवं संस्कारों के कारण भारत में यह दर पश्चिमी देशों की अपेक्षा कम है। हर कोई सहायता कर सकता हैं। डॉक्टर अथवा स्वास्थ्यकर्मी होना आवश्यक नहीं हैं, यदि आपको कुछ ठीक नहीं लग रहा, तो बात करें और सीधा पूछे की वो अपने को नुकसान पहुंचाना तो नहीं चाह रहे है या आत्महत्या के बारे में सोच तो नहीं रहे है ?
वह बताते हैं कि अवसाद ग्रस्त व्यक्ति को सहयोग की पेशकश करें, उनको डॉक्टर को दिखाये, नियमित उपचार लेने के लिए प्रेरित करे । संस्कार द्वारा उनका जीवन अमूल्य है और इश्वरी देन है कि जानकारी दे उनको नियमित व्यायाम प्राणायाम ध्यान और वर्तमान में जीने की कला सिखाने के लिए प्रेरित करें।
वह बताते हैं कि यह समस्या केवल भारत में ही नहीं विश्व की समस्या है। समस्या की भयावहता के बारे में बताते हैं अनुमान है कि विश्व में प्रतिवर्ष 8 लाख लोग आत्महत्या करते हैं और इससे 25 गुणा ज्यादा आत्महत्या का प्रयास करते हैं। लिथुनिया, दक्षिण कोरिया, रूस, चीन इत्यादि में आत्महत्या की सर सब से ज्यादा हैं। हमारे देश में सिक्किम, छत्तीसगढ़, तेलंगाना तमिलनाडू, कर्नाटक इत्यादि में ये दर अधिक है। भारत में करीब 1.39 लाख लोग आत्महत्या के कारण मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं। यह दर सबसे ज्यादा 18-45 आयु वर्ष के बीच देखी गई हैं।