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पर्यटकों को लुभाते हैं धौलपुर के ऐतिहासिक और पाकृतिक स्थल

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10 Mar 22
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पर्यटकों को लुभाते हैं धौलपुर के ऐतिहासिक और पाकृतिक स्थल

कोटा | चंम्बल राष्ट्रीय घडियाल अभ्यारण्य एवं पूर्वी राजस्थान का प्रवेश द्वार के नाम से पहचान बनाने वाला धौलपुर जिला 3034 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ पर्यटन के लिहाज से ऐतिहासिक और प्राकृतिक दर्शनीय स्थल है। यहां के किले,महल,मन्दिर, झील,तालाब और अभयारण्य पर्यटकों को खूब लुभाते हैं। एक और चम्बल की ऊॅची-नीची मिट्टी की घाटियां हैं तो दूसरी ओर सपाट पहड़ियां हैं।यहां के भू - गर्भ में विश्व प्रसिद्ध ’धौलपुर स्टोन’ का अथाह भण्डार छुपा है। इसके उत्खनन, परिशोधन और दोहन पर जिले के करीब एक तिहाई लोगों को रोजगार प्राप्त है। 
        भौगोलिक दृष्टि से यह जिला चंबल की उपत्यकाओं के बीच बसा है। जिले का पश्चिमी भाग पठारी एवं उत्तरी भाग उपजाऊ है। स्थानीय बोली में इस क्षेत्र को डांग क्षेत्र कहा जाता है। धौलपुर, राजाखेडा, बाड़ी एवं बसेड़ी जिले के प्रमुख स्थल हैं। जिले की जलवायु प्राय: शुष्क है। यहाँ का अधिकतम तापमान गर्मियों में 49 डिग्री तथा न्यूनतम सर्दियों में 10 सेंटीग्रेट तक पहुंच जाता है। जिले में वार्षिक औसत वर्षा 64 सेमी. होती है। चम्बल, पार्वती एवं गम्भीर जिले की प्रमुख नदियां हैं। पार्वती नदी पर पार्वती बांध परियोजना जिले की महत्वपूर्ण योजना है। वन्य-जीवों की दृष्टि से चम्बल राष्ट्रीय घडियाल अभयारण्य, वन विहार अभयारण्य, राम सागर अभयारण्य जिले के प्रमुख वन्य-जीव स्थल हैं। जिले में रीछ, हिरन, नीलगाय, जरख, भेड़िया एवं बारहसिंगा मुख्यत: पाये जाते हैं।
         ऐतिहासिक रूप से धौलपुर पर कभी राजपू तों, कभी मुगलों, जाटों और अंग्रेजों का आधिपत्य रहा। बताया जाता है कि तटरक्षक का कार्य करने वाले तोमर राजा ने धौलपुर बसाया था। वर्ष 1782 ई. से यह धौलपुर राजाओं के आधीन आया। राजस्थान निर्माण के समय इसे भरतपुर का उपखण्ड बनाया दिया गया। यही उपखंड धोलपुर नाम से 15 अप्रैल 1982 को पृथक   27 वें जिले के रूप में अस्तित्व में आया। धौलपुर जिले से उत्तरप्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों तथा भरतपुर एवं करौली जिलों की सीमाएं लगती हैं। आज यह जिला  भरतपुर संभाग में शामिल है।
          यहां कीअर्थव्यवस्था मुख्यत कृषि पर आधारित है। कृषि आधारित उद्योग इकाइयां भी यहां स्थापित हैं। जिले में ग्लास फक्ट्री एवं सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम दी हाई टैक प्रीसीजन ग्लास वर्क्स बड़े उद्योग हैं। धौलपुर कांच के लिए प्रसिद्ध है। जिले में गैस आधारित पावर उत्पादन संयंत्र विद्युत उत्पादन करता है। सेंड स्टोन, लाईम स्टोन, लाल पत्थर, मेसनरी स्टोन जिले में पाये जाने वाले प्रमुख्य खनिज हैं। आसपास आगरा-फतहपुर सीकरी आदि की इमारतों में लाल पत्थर का उपयोग किया गया है। धौलपुर ’’नैरोगेज रेलवे लाइन’’ के लिए भी प्रसिद्ध है। यह रेल 1908 में रियासत के समय शुरू हुई थी जो आज भी धौलपुर से मथुरा तक चलती है।
       कला एवं संस्कृति की दृष्टि से बाडी क्षेत्र में भेंट ख्याल लोक नाट्य तथा मचकुण्ड का मेला प्रसिद्ध है। धौलपुर का सैनिक स्कूल राजस्थान में प्रसिद्ध है जिसकी स्थापना 16 जुलाई 1962 में की गई थी। यह स्कूल केसरबाग में स्थित है। मचकुंड जिले का प्रमुख तीर्थ है। जिले में शेरगढ़ एवं बाडी के किले, केसरबाई एवं जहॉगीर के महल (तालाबशाही के किनारे) तथा जारजरीना का मकबरा दर्शनीय स्थल है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 3 (आगरा से मुंबई) धौलपुर जिले से होकर गुजरता है।
शेरगढ़
शेरगढ़ का किला कभी यहां का गौरव था आज भग्न और उपेक्षित हालत में है। समुद्र तल से 750 फुट ऊंचाई पर 500 बीधा जमीन पर बने किले का निर्माण मारवाड़ शासक मालदेव ने 1532 ई. में करवाया था। शेरशाह सूरी ने 1540 ई. में इसे नया स्वरूप प्रदान किया और तब से ही यह किला शेरगढ़ के नाम से जाना जाने लगा। दुर्ग में स्थित प्राचीन मन्दिरों के दरवाजे कलात्मक हैं। दुर्ग की 15 फीट मोटी चारदीवारी में गोलियां दागने के लिए हजारों मोरियाँ बनी हुई हैं।  दुर्ग में मन्दिर के पीछे स्थित बारहदरी में बैठकर चारों दिशाओं का अवलोकन किया जा सकता है। अष्ट धातु की विशालकाय तोपें जो कभी युद्ध में काम आती थीं, दुर्ग की दीवारों पर जगह-जगह रखी हुयी हैं। दुर्ग के दरवाजे पर हनुहुंकार नाम की विशालकाय तोप थी जिसे जनता ने वहां से हटा कर शहर के मुख्य बाजार स्थित इन्द्रा पार्क में पर्यटकों के लिए रख दी है। इन तोपों के गोले आज भी दुर्ग में इधर-उधर पड़े हुए मिल जाते हैं। भग्नावस्था में प्राचीन दुर्ग के राज प्रसाद के समक्ष बने हनुमान मन्दिर में किसी जमाने में राजा-रानी पूजा अर्चना करने आते थे। किले में युद्ध के समय एवं गर्मियों में पानी की आपूर्ति के लिए दो बावड़ियां बनी हुई हैं। यहां 1532 ई. के राजपूतकालीन  भित्ति चित्र बने हुए हैं। काल के थपेड़ों व संरक्षण के अभाव में ये चित्र धूमिल होकर नष्ट होते जा रहे हैं।
रामचन्द्र व हनुमान मंदिर
धौलपुर शहर से 4 कि.मी. की दूरी पर पुरानी छावनी में स्थित हनुमान व रामचन्द्र जी का प्रसिद्ध मंदिर है जो राजा कीरत सिंह के काल में निर्मित हुआ था। इसमें हनुमान जी की सात फुट ऊँची प्रतिमा वास्तुकला की अनुपम धरोहर है। इसी मंदिर में भगवान राम के 24 अवतारों की अष्ट धातु की मूर्ति स्थापित है। धौलपुर में स्थित राधाबिहारी का मंदिर भी प्रमुख मंदिरों में से है।
सेठ कन्हैयालाल की हवेली
धौलपुर निवासी सेठ कन्हैयालाल की हवेली दर्शनीय है। हवेली का मुख्य हाल रासलीला के लिए बनवया गया था। दूसरी मंजिल पर चारों ओर महिलाओं के लिए रासलीला देखने हेतु खुले कमरे व बरामदे बनवाये गये थे। सेठजी की अन्य तीन हवेलियां पुराने शहर में भी बनी हैं, जहाँ वे आजीवन रहे। उन्होंने अपनी सारी दौलत कलाओं व गुणों की अभिव्यक्ति  के साथ महल रूपी हवेली में लगा दी थी। वे अक्सर मथुरा वृन्दावन में श्रीकृष्ण जन्मभूमि में जाते रहते थे और लोग उन्हें वल्लभी कहते थे। यह हवेली उन्होंने भगवान कृष्ण को समर्पित करते हुए बनवायी थी। हवेली की नींव धौलपुर के अन्तिम राजा उदयभानसिंह ने वर्ष 1931 में रखी थी। सेठजी इतने समृद्ध थे कि उस युग में नींव रखते समय मिट्टी खोदने के लिए फावड़े एवं पराती क्रमशः सोने व चांदी के बनवाये थे।  धौलपुर रेलवे स्टेशन के समीप बनी हवेली पुरातत्व का नमूना है। प्रवेशद्वार के दोनों कोनों पर सुन्दर कलात्मक ’गोवक्ष’ लालसफेद पत्थर की बनी हुई हैं। इनके निर्माण में केवल पत्थर का प्रयोग किया है।
चौपड़ा मंदिर
      भारतीय वास्तुशिल्प का अनूठा नमूना, लुभावनी मूर्तिकला, उन्नत कलात्मक शिखर, दीवारों की दरवाजों पर कलात्मक मूर्तियां, अष्टकोणीय सुन्दर गर्भगृह जैसी विशेषताएं समेटे धौलपुर का चौपड़ा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस अद्भुत मंदिर का निर्माण धौलपुर के महारावल भगवन्त सिंह के मामा राजधर कन्हैया लाल ने 1856 ईस्वीं में करवाया था। वे धौलपुर राजघराने के दीवान थे। मंदिर की ऊंचाई 150 फीट है तथा मंदिर की आठ दीवारें हैं, जिनमें आठ दरवाजे बने हैं। मंदिर में पूजा-अर्चना पूरे शास्त्रोक्त विधान से की जाती है। यहां हर वर्ष महाशिवरात्रि के समय श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है। बताया जाता है कि जगत गुरू शंकराचार्य एवं स्वामी जयेन्द्र सरस्वती यहां आये थे और शिव का अभिषेक किया था।  
 मुचुकुंद सरोवर
     धौलपुर में  मुचुकुंद सरोवर भी प्रमुख धार्मिक स्थल है। इसे सभी तीर्थों का भान्जा कहा जाता है। प्रकृति की गोद में यह जलाशय वास्तुकला में अद्भुत है तथा पालराजाओं के समय 775 ईस्वीं से 915 ईस्वीं तक बने अनेक छोटे - बडे़ मंदिर दर्शनीय हैं। यहां प्रति वर्ष भाद्रपद शुक्ल ऋषिपंचमी और बलदेव छट को विशाल मेला आयोजित किया जाता है। हर अमावस्या पर हजारों तीर्थयात्री यहां स्नान कर मुचुकुंद तीर्थ की परिक्रमा कर पुण्य कमाते हैं। हर पूर्णिमा को सायंकाल मुचुकुंद  सरोवर की महाआरती की जाती है जिसमें सैकड़ों की तादात में श्रद्धालु भाग लेते हैं। यह स्थल धौलपुर के निकट ग्वालियर-आगरा मार्ग के बायीं ओर करीब 2 किलोमीटर पर स्थित है। मान्यता के अनुसार  राजा मुचुकुंद यहां सो रहे थे, उसी समय असुर कालयवन भगवान श्री कृष्ण का पीछा करते हुए यहां पहुंच गया। उसने कृष्ण के भ्रम में राजा मुचुकुंद को जगा दिया। मुचुकुंद की नजर पड़ते ही कालयवन यहीं भस्म हो गया। तब से यह स्थान धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है। इस स्थान के आस-पास ऐसी कई जगह है जिनका निर्माण या जीर्णोद्धार मुगल सम्राट अकबर ने करवाया था। 
कमल फूल बाग
तीर्थ के समीप ही कई सौ वर्ष पुराना कमल फूल बाग है। मुगल सम्राट बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुके बाबरी में मीराने बाग (लोटस गार्डन) के नाम से इस बाग का वर्णन किया है। इस बाग में लाल पत्थर में तराशे गये कमल-पुष्पों में फव्वारे लगे हुए थे। बाबर इब्राहीम लोदी को परास्त करने के बाद धौलपुर के इस बाग में भी आया था।
केसर बाग वन्य जीव अभयारण्य
धौलपुर-बाड़ी रोड पर 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस बाग में पूर्व में महाराजा धोलपुर उदयभान का निवास स्थान था। कहते है कि महाराजा जानवरों के इतने प्रेमी थे कि वे अपने हाथों से चीतल, सियार, भेड़ियों आदि को खिलाते थे। उनकी आवाज मात्र से ही जानवर उनके पास आ जाते थे। उस समय जानवरों, पक्षियों के शिकार पर पाबंदी थी। आजकल इस महल में स्कूल चलाता है। पिकनिक के लिए यहाँ एक पुराना बांध भी है।  अभयारण्य की घोषणा सात नवम्बर 1955 को की गई जिसका कुल क्षेत्रफल 14.76 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ पर प्रमुख रूप से भेड़िया, जरख, लोमड़ी, चीतल, नीलगाय आदि दिखाई देते हैं। कभी-कभी बघेरा व भालू भी इस क्षेत्र में दिखाई दे जाते हैं। 
       धौलपुर से 38 किमी पर रामसागर झील और अभयारण्य  एवं 27 किमी पर खूबसूरत तालाब-ए-शाही और महल दर्शनीय हैं।झील का निर्माण शाहजहाँ ने 1617 ईसवीं में करवाया था। इस झील को देखने के लिए काफी संख्या में पर्यटक यहाँ आते हैं। धौलपुर में ठहरने के लिए 
जगन होटल, राज निवास पैलेस और जया पैलेस जैसे कुछ प्रसिद्ध होटल सहित बजट होटल उपलब्ध हैं। यहां पहुंचने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट 54 किमी दूरी पर आगरा में है। रेल मार्ग द्वारा धौलपुर से दिल्ली 240 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है सड़क मार्ग द्वारा भरतपुर से धौलपुर 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।


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