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 भारत को जाने - अनन्त प्राकृतिक सौंदर्य का धनी लद्दाख

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17 Feb 21
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 भारत को जाने - अनन्त प्राकृतिक सौंदर्य का धनी लद्दाख

नवगठित केंद्र शासित राज्य बौद्ध भूमि लद्दाख को साहसिक गतिविधियों के केन्द्र के रूप में ख्याती प्राप्त है। प्रकृति का अनन्त सौन्दर्य ,महल, मठ, हेमिस एवं सोलर उत्सव यहाँ की खास पहचान हैं।

नवगठित लद्दाख संघ राज्य का गठन 31 अक्टूबर 2019 को किया गया। राज्य में कारगिल तथा लेह दो जिले हैं। लेह नवगठित संघीय राज्य की राजधानी बनाया गया। राष्ट्रपति ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (कठिनाइयों को हटाना) द्वितीय आदेश, 2019 द्वारा नए लद्दाख़ संघ राज्य क्षेत्र के लेह जिले को, कारगिल ज़िला बनने के बाद, 1947 के लेह और लद्दाख़ ज़िले के शेष क्षेत्र में 1947 के गिलगित, गिलगित वजारत, चिल्हास और ट्राइबल टेरिटॉरी जिलों के क्षेत्रों को समावेशित करते हुए परिभाषित किया है। भारतीय संविधान के सभी प्रावधान इन इस संघीय राज्यों पर लागू होंगे। अब इस संघीय राज्य के विकास का मार्ग प्रशस्त हो गया है। 

इतिहास-भूगोल

लद्दाख एक तरफ चीन एवं दूसरी तरफ पाकिस्तान की सीमा से जुड़ा है। लद्दाख के उत्तर में काराकोरम तथा दक्षिण में हिमालय स्थित है। बताया जाता है कि चीनी यात्री फाहियान् में जब इस क्षेत्र की यात्रा की तब उसके बाद इसका नाम लद्दाख रखा गया है।

प्रकृति का उपहार एवं लद्दाख क्षेत्र का प्रमुख शहर लेह सिंधु नदी द्वारा बनाये गये पठार के शिखर पर 11562 फीट ऊँचाई पर स्थिति एक छोटा सा नगर है। रव्री-त्सुगल्दे द्वारा इस नगर को 14 वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था। शुरू में इसका नाम स्ले या ग्ले था परन्तु 19 वीं शताब्दी में मोरोविलियन मिशनरी ने इसका नाम बदलकर लेह कर दिया। यहां का क्षेत्रफल 59146 वर्ग किमी.है तथा 2011 की जनगणना के मुताबिक जनसंख्या 2,74,289 है। वन क्षेत्र नहीं के बराबर है।

संस्कृति

         लेह में गोम्पाओं के उत्सवों में किये जाने वाला नृत्य नाटक देखते ही बनता है। नृत्य में भयानक आकृति के मुखौटे लगाकर, चमकदार ड्रेस पहनकर स्वांग रचना एवं विभिन्न धार्मिक पक्षों का प्रदर्शन करना प्रमुख आकर्षण होते हैं। पद्मासम्भव को समर्पित ”हेमिस“ सबसे बड़ा और प्रसिद्ध बौद्धमठ उत्सव है। हर वर्ष नवम्बर माह में आयोजित होने वाला लोसर उत्सव भी लोकप्रिय है। यह उत्सव 15 वीं शताब्दी पुराना है और आजतक निरन्तर आयोजित किया जा रहा है। यह एक युद्ध पूर्व का उत्सव है, जिसे यह सोचकर मनाया जाता है कि युद्ध में मारे जायेंगे या बचेंगे। अगस्त माह में पर्यटन विभाग द्वारा लद्दाख उत्सव का आयोजन विशेष रूप से पर्यटकों के लिए किया जाता है। इस दौरान पर्यटकों को बौद्धमठों में होने वाले धार्मिक आयोजनों को भी निकट से देखने का अवसर प्राप्त होता है। यहां के लोगों में फिरोजी पत्थर का नग विशेष रूप से लोकप्रिय है। इससे आकर्षक गहने बनाये जाते है। महिलाएं इस नग को सुहाग की निशानी मानती है और हर महिला नग को धारण करती है। महल के संग्रहालय में रानियों के ताज में भी इनकी सुन्दरता झलकती है। यहां के रसोईघर भी देखने लायक होते हैं जहां एल शेप में लगाई गई चैकियों पर भोजन परोसा जाता है। यहां कि संस्कृति पर तिब्बति संस्कृति का प्रभाव होने से इसे छोटा तिब्बत भी कहा जाता है। हिंदी,लद्दाखी और तिब्बती यहाँ की आधिकारिक भाषाएं हैं।

परिवहन

लेह के लिए दिल्ली, चण्डीगढ़, जम्मू एवं श्रीनगर से इण्डियन एयर लाइन्स की नियमित सेवाएं उपलब्ध हैं। सड़क मार्ग से लेह श्रीनगर से 434 कि.मी. तथा मनाली से 475 कि.मी. दूरी पर स्थित है। दोनों ही जगह रात्री विश्राम करना होता है। दिल्ली से वाया मनाली, लेह 1030 कि.मी. दूरी पर है, इस यात्रा में 36 घण्टे लगते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन चण्डीगढ़ एवं जम्मू में हैं।

दर्शनीय स्थल

लद्दाख के राजाओं द्वारा लेह में कई महल, बौद्धमठ एवं धार्मिक भवनों का निर्माण करवाया गया। यहां यारकंद एवं कश्मीर के व्यापारियों द्वारा इस्लाम धर्म का आगमन हुआ। 

नामग्याल महल

राजा सिंगे नामग्याल का नौ मंजिला महल तिब्बत वास्तुकला का सुन्दर उदाहरण है। यहां महात्मा बुध के जीवन की घटनाओं की दीवारों पर चित्रकारी की गई है जो अब धुमिल पड़ गई है। महल में 12 मंदिर एवं 2 शाही मठ बने हैं। महल को अब संग्रहालय में बदल दिया गया है। जहां ठंग्का चित्रों, स्वर्ण प्रतिमाओं एवं तलवारों का संग्रह किया गया है।

सेमो गोम्पा 

 महल के पीछे एक शाही माॅनेस्ट्री दर्शनीय है। यहां चम्बा की बैठी हुई मुद्रा में दो मंजिला ऊँची पवित्र प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा के अंगों की बनावट एवं सन्तुलन, चेहरे की सौम्यता तथा आँखों की भावपूर्णता देखने वालों को एक बारगी स्तब्ध और आश्चर्यचकित कर देती है।

लेह माॅनेस्ट्री 

महल वाली पहाड़ी की एक चोटी पर स्थित 281 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में बनी लेह माॅनेस्ट्री से शहर का सुन्दर नजारा देखने को मिलता है। अनेक गलियारे युक्त इस भवन गोम्पा में अमूल्य चित्रावलियां एवं पाण्डुलिपियां प्रदर्शित की गई हैं। यहां प्रदर्शित चित्र समूचे परिवेश की प्रकृति पर आधारित एवं मोहक हैं। यहां लाम्बा विद्यार्थियों के लिए एक स्कूल का संचालन भी किया जाता है। 

लेह मस्जिद 

राजा सिंगे नामग्याल ने अपनी माता की स्मृति में 1594 ई. में इस मस्जिद का निर्माण कराया था। मुख्य बाजार में स्थित यह मस्जिद ईरानी और तुर्की वास्तुकला एवं बारिक कारीगरी का अनुपम उदाहरण है। लेह मेें बना पारिस्थितिक केन्द्र पूर्व मोरोबिन, पूर्व तामकार भवन एवं खांग का आधुनिक सर्वोदशीय मंदिर भी यहां के दर्शनीय स्थल हैं। 

लद्दाख

बर्फ से ढ़की चोटियां मानों बर्फ का रेगिस्तान हो, रेत के टीले, सुबह के घने बादल, मनोहारी प्राकृति के कई अजूबे अपने में समाए लद्दाख समुद्र तल से 3500 मीटर ऊँचाई पर 97 हजार वर्ग कि.मी. में सबसे बड़ा क्षेत्र है।  लद्दाख ने जहां झोलीभर कर प्राकृतिक सौन्दर्य लुटाया है वहीं यहां की सांस्कृतिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक विरासत इसे महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल बना देती है। लद्दाख के धर्म स्थल गोम्पा कहे जाते हैं। इनमें रक्खी गई पीतल की बड़ी-बड़ी मूतियां मंत्रमुग्ध करती हैं। बड़े-बड़े प्रेयर व्हील प्रार्थना अर्थात पहिये घुमाकर प्रार्थना करना अपने-आप में एक अनोखा अनुभव होता है। मान्यता है कि इन पहियों को घुमाने से मंत्र उच्चारण का प्रभाव उत्पन्न होता है। 

दर्शनीय स्थल 

सर्दियों में यहां देश-विदेश के सैलानी बड़ी संख्या में आते हैं और बर्फ गिरने, बर्फ के मैदान तथा इस पर बर्फ क्रीड़ा का लुप्त उठाते हैं। वैसे लद्दाख को देखने के लिए किसी भी समय पहुँचा जा सकता है। गर्मियों का मौसम भी आने वालों को शीतलता प्रदान करता है। दुनिया की सबसे ऊँची खारी झील भी लद्दाख में है। लद्दाख जाने का सर्वथा अनुकूल समय मई से अक्टूबर माह का है।आईस हाॅकी का मजा दिसम्बर से फरवरी तक लिया जा सकता है। पर्वतारोहण करने वालों के मध्य लद्दाख सर्वाधिक लोकप्रिय जगह है। यहां का दूसरा सबसे बड़ा कस्बा कारगिल है। यह श्रीनगर-लेह राजमार्ग के बीच आता है। कारगिल में हरास, सुरूघाटी, मुलबेक बुरदान आदि दर्शनीय स्थल हैं। लद्दाख पहुँचने के लिए लेह होकर जाना पड़ता है।

 


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