प्रसिद्ध कथाकार आलमशाह खान की स्मृति में ‘‘वर्तमान परिदृश्य और प्रतिरोध का साहित्य‘‘ विषय पर राज्य स्तरीय संगोष्ठी का आयोजन शुक्रवार को माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी कॉलेज के सभागार में हुआ। संगोष्ठी में मुख्य वक्ता समयान्तर मासिक पत्रिका के सम्पादक एवं वरिष्ठ साहित्यकार पंकज बिष्ट ने कहा कि साहित्य की आत्मा प्रतिरोध में ही निहित है। आलमशाह खान की रचनाओं का मूल स्वर प्रतिरोध ही था। वर्तमान समय में प्रादेशिक भाषाओं में प्रतिरोध का साहित्य प्रचुर मात्रा में लिखा जा रहा है किंतु हिन्दी में इसका अभाव दिखाई देता है। बदलते दौर में छोटी पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है।
वरिष्ठ साहित्यकार फारूक आफरीदी ने कहा कि वर्तमान समय में स्वतंत्र सोच को अभिव्यक्ति देना कठिन हो चला है। ऐसे में साहित्य को अपनी प्रतिरोध की प्रकृति को नहीं छोड़ना चाहिए। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रसिद्ध रंगकर्मी भानूभारती ने कहा कि जीवन का सबसे बड़ा जहां अवरोध होता है वहीं प्रतिरोध होता है। जीवन के सामने मृत्यु सबसे बड़ा अवरोध है इसीलिए जीवन को संघर्ष की उपमा दी जाती है और मृत्यु को पलायन की।
आलमशाह खान यादगार समिति की तराना परवीन ने बताया कि विशिष्ट अतिथि डॉ.रेणु व्यास एवं अन्य अतिथियों ने भी विचार व्यक्त किये। युवा नाट्य निर्देशक कविराज लईक ने खान की कहानी सांसों का रेवड़ का बहुत ही सुंदर वाचन किया। स्वागत समिति अध्यक्ष आबिद अदीब ने, संचालन हेमेन्द्र चंडालिया ने तथा धन्यवाद डॉ. तबस्सुम खान ने ज्ञापित किया। इस अवसर पर डॉ. बने सिंह, डॉ. मलय पानेरी, डॉ. फरहत बानू, माणक, लईक हुसैन, हिम्मत सेठ, सत्यनारायण व्यास, माधव नागदा, किशन दाधीच, उग्रसेन राव, सुनील टांक सहित शहर के कई साहित्यकार व बुद्धिजीवी उपस्थित रहे।
कथाकार के रूप मे उदयपुर को किया था गौरवान्वित
प्रो. आलमशाह खान अपने समय के ऐसे कथाकार थे जिनकी कहानियां प्रकाशित करने के लिए तत्कालीन साहित्यिक पत्रिकाओं में होड मची रहती थी। अपना प्रारंभिक जीवन अभावों के बिताने वाले खान कलम के ऐसे धनी निकले कि उन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से उदयपुर का नाम साहित्य के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया। उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान देते हुए कई उपलब्धियां हासिल की और उनकी कथाएं आज भी साहित्य जगत के लिए प्रेरणा का स्रोत है।