उदयपुर। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के शेक्षणेतर कर्मचारी संघ ने आज प्रसार शिक्षा निदेशक की उपस्थिति में माननीय कुलगुरु को एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा। यह ज्ञापन विश्वविद्यालय के वित्त नियंत्रक कार्यालय में व्याप्त प्रशासनिक अनियमितताओं, सेवा नियमों की अवहेलना, वित्तीय अनुशासनहीनता और नियमित कर्मचारियों के प्रति अमर्यादित व्यवहार के गंभीर आरोपों से संबंधित है।
संघ ने ज्ञापन में उल्लेख किया है कि वित्त नियंत्रक कार्यालय में राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना सेवानिवृत्त कर्मचारियों को अनधिकृत रूप से कार्य पर रखा गया है, जो न केवल विश्वविद्यालय सेवा नियमावली बल्कि राज्य वित्त नियमों का भी उल्लंघन है। यह कार्यवाही नियमित भर्ती प्रक्रिया और पारदर्शिता की भावना के विपरीत है। संघ ने इसे विश्वविद्यालय के सीमित वित्तीय संसाधनों के अनुचित उपयोग की श्रेणी में बताया है।
संघ ने यह भी कहा कि जब नियमित कर्मचारियों द्वारा इन अनियमितताओं पर आपत्ति जताई गई, तो वित्त नियंत्रक महोदय ने उनके प्रति अपमानजनक, अशोभनीय एवं मानसिक रूप से क्षोभ उत्पन्न करने वाली भाषा का प्रयोग किया। इस तरह का व्यवहार सेवा आचरण नियमों के पूर्णतः विपरीत है और कार्यालयीन वातावरण को विषाक्त बना रहा है।
एक अत्यंत गंभीर तथ्य यह भी सामने आया कि वित्त नियंत्रक महोदय द्वारा पूर्व में विश्वविद्यालय की निविदा प्रक्रिया (टेंडर) से संबंधित गड़बड़ियों पर प्रकाशित समाचार को दबाने के उद्देश्य से एक तथाकथित जांच समिति गठित की गई, जिसमें उन्होंने स्वयं को ही समिति का अध्यक्ष (चेयरमैन) नामित कर लिया।
संघ ने इसे हितों के टकराव (Conflict of Interest) का स्पष्ट उदाहरण बताया है और कहा है कि किसी अधिकारी के विरुद्ध जांच उसी अधिकारी के नेतृत्व में कराना न केवल अनुचित है, बल्कि जांच की निष्पक्षता पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
संघ ने ज्ञापन के माध्यम से कुलगुरु महोदय से तीन प्रमुख मांगें की हैं —
वित्त नियंत्रक कार्यालय में कार्यरत सेवानिवृत्त कर्मचारियों की नियुक्तियों की वैधता की जांच हेतु स्वतंत्र समिति गठित की जाए।
बिना शासन स्वीकृति के कार्यरत कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से कार्यमुक्त किया जाए।
नियमित कर्मचारियों से किए गए दुर्व्यवहार की निष्पक्ष जांच कर अनुशासनात्मक कार्यवाही सुनिश्चित की जाए।
संघ ने चेतावनी दी है कि यदि निर्धारित समयावधि में विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उचित कार्रवाई नहीं की जाती है, तो संघ कर्मचारियों के हितों की रक्षा हेतु लोकतांत्रिक एवं विधिसम्मत आंदोलनात्मक कदम उठाने के लिए बाध्य होगा। ऐसी स्थिति में उत्पन्न प्रशासनिक, शैक्षणिक एवं विधिक परिणामों की पूर्ण जिम्मेदारी विश्वविद्यालय प्रशासन की होगी।
अंत में संघ ने कहा कि यह कदम किसी व्यक्ति विशेष के विरुद्ध नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय की गरिमा, अनुशासन और प्रशासनिक पारदर्शिता की रक्षा के उद्देश्य से उठाया गया है। संघ को विश्वास है कि कुलगुरु महोदय इस गंभीर प्रकरण पर शीघ्र और निर्णायक निर्णय लेकर विश्वविद्यालय के नैतिक मानदंडों की पुनर्स्थापना सुनिश्चित करेंगे।