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एमपीयूएटी के डॉ. नारायण लाल पंवार एवं डॉ. विनोद सहारण विश्व के शीर्ष 2% वैज्ञानिकों की सूची में शामिल

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25 Sep 25
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एमपीयूएटी के डॉ. नारायण लाल पंवार एवं डॉ. विनोद सहारण विश्व के शीर्ष 2% वैज्ञानिकों की सूची में शामिल

उदयपुर,स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय और एल्सिवियर द्वारा विश्व के शीर्ष 2% वैज्ञानिकों की सूची जारी कर दी गई है। गर्व की बात है कि दुनिया के शीर्ष दो प्रतिशत वैज्ञानिकों में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के 2 वैज्ञानिकों ने जगह बनाई है। एमपीयूएटी के कुलगुरू डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि इस प्रतिष्ठित सूची में शामिल होना डॉ. नारायण लाल पंवार एवं डॉ. विनोद सहारण के उत्कृष्ट शोध एवं विकास कार्यों के योगदान का परिणाम है। दोनों विशेषज्ञों ने कई शोध लेख, पेटेंट और पुस्तकें लिखी हैं, और उनके पेटेंट मीडिया में भी प्रदर्शित किये गये हैं। यह सम्मान न केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि यह उनकी पूरी यात्रा में उन्हें मिले निरंतर समर्थन, सहयोग और प्रेरणा का भी प्रतिबिंब है। यह सम्मान व्यापक शोध मानकों पर आधारित होता है। वैज्ञानिकों के साइटेशन, एच-इंडेक्स, सह-लेखन और एक समग्र सूचकांक के आधार पर यह रैंकिंग जारी की गई है। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय हर साल यह वैश्विक रैंकिंग जारी करता है। वैज्ञानिकों का वर्गीकरण 22 प्रमुख वैज्ञानिक क्षेत्रों और 174 उप-क्षेत्रों के आधार पर किया जाता है।


डॉ. नारायण लाल पंवार महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर, राजस्थान के इंजीनियरिंग संकाय में नवीकरणीय ऊर्जा इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष हैं। नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में उनके शोध योगदान के लिए उन्हें स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा दुनिया के शीर्ष 2% वैज्ञानिकों में सूचीबद्ध किया गया है। डॉ. पंवार लगातार पिछले पांच वर्षो से इस सूचि में शामिल होते आये है। इस वर्ष डॉ. पंवार भारत के शीर्ष 500 वैज्ञानिकों की सूचि में स्थान हासिल किया है।

डॉ. पंवार औद्योगिक और ग्रामीण अनुप्रयोगों के लिए उन्नत चूल्हों, बायोमास गैसीफायरों और सौर तापीय उपकरणों के डिजाइन और विकास में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं। उनके पास एक व्यापक शैक्षणिक और व्यावसायिक पोर्टफोलियो है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित 200 से अधिक शोध पत्र, नवीकरणीय ऊर्जा पर 20 पुस्तकें और 15 पेटेंट शामिल हैं। डॉ. पंवार के इस योगदान के लिये उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले हैं, जिनमें वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों पर उनकी उत्कृष्ट पुस्तक के लिए भारत सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा "प्राकृतिक ऊर्जा पुरस्कार" भी शामिल है। उन्हें 2014 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली से "श्रीमती विजय-उषा सोढ़ा अनुसंधान पुरस्कार", राजस्थान सरकार से 2018 में राजस्थान ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार और द्विवार्षिक 2023-2024 के लिए राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (एनएएएस) मान्यता पुरस्कार भी मिला है।

प्रोफेसर विनोद सहारण वर्तमान में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के आणविक जीवविज्ञान एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं। उन्हें उनके नैनोबायोटेक्नोलॉजी क्षेत्र में अनुसंधान योगदान के लिए स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय ने दुनिया के टॉप 2% वैज्ञानिकों की सूची में शामिल किया है। डॉ. सहारण 2007 से इस विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। उन्होंने पीएचडी शोध इजराइल के बेन-गुरियन विश्वविद्यालय से वर्ष 2005 में किया है और इसके बाद 2007 में वोल्केनी रिसर्च इंस्टिट्यूट, इजराइल से पोस्टडॉक्टोरल किया है। डॉ. सहारण पौधों के नैनोबायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में संलग्न हैं और विभागीय, राष्ट्रीय एवं औद्योगिक परियोजनाओं में सक्रिय भाग ले रहे हैं। उन्होंने भारतीय सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, कृषि मंत्रालय, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और औद्योगिक तकनीकी उन्नयन परियोजनाओं के तहत कई अनुसंधान परियोजनाओं में अपनी अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने अब तक 20 निष्णात और 8 विद्यावाचस्पति छात्रों का मार्गदर्शन किया है। वर्तमान में, वे नैनो-स्केल सामग्री एवं बायोस्टिमुलंट का कृषि में उपयोग पर कार्य कर रहे हैं। वे भारतीय सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग की कार्यबल समिति के सदस्य हैं। उनके जैवपॉलिमर क्षेत्र में कार्य को देखते हुए 5000 से अधिक लेख संदर्भित (साइटेशन) हुए हैं। उन्हें अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए विदेशों में जैसे चीन, जापान, सिंगापुर, जर्मनी, पोलैंड, दुबई, इजराइल आदि में व्याख्यान देने के लिए मोखा मिला है। उनकी प्रयोगशाला में वर्तमान में करीब 2.3 करोड़ रुपये की अनुसंधान परियोजनाए चल रही है। अपने शोध कार्य के दौरान, उन्होंने कई पेटेंट भी हासिल किए हैं। डॉ. सहारण का योगदान जैव पॉलिमर और नैनोबायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो कृषि एवं उद्योग के विकास में सहायक साबित हो रहा है।


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