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पुस्तक चर्चा "केनवास के परे "( कहानी संग्रह )

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24 Jul 25
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पुस्तक चर्चा    "केनवास के परे "( कहानी संग्रह )

कोई दो माह पूर्व जब विजय जोशी के घर जाना हुआ तो किशन प्रणय और उनके बीच जोशंकर साहित्य पर चर्चा हो रही थी। मैंने भी रची पूर्वक चर्चा को सुना। आते समय उनका कहानी संग्रह केनवास के परे पढ़ने के लिए ले आया। समय निकाल कर कहानियां पढ़ी। ये कहानियां परम्पराओं की आड में विडंबनाओं का एहसास कराती है। उनका यह दूसरा कहानी  संग्रह यद्यपि वर्ष 2000 में प्रकाशित हुआ तथापि जब भी पढ़ें कहानियां नई लगती हैं।

     परम्पराओं की आड़ में पनपते ढकोसलों ढहाने की बात उभरती कहानी है "अपने-अपने कैक्ट्स" जिसमें  मध्यमवर्ग के संघर्ष का यथार्थ चित्रण देखने को मिलता है। "रिसते रिश्ते" में उत्पीड़न को उभरा हैं तो कहानी "पहल" में जड़ हुए संस्कारों की टूटन एवं आगे बढ़ने की पहल को उकेरा गया है। अतिवादिता का विरोध करती दिखाई देती कहानी " बैकुण्ठगामी" में वात्सल्य की करुणा भी  है।  कहानी में धार्मिक आस्थाओं का खुला बयान है जिसमें समाज के तरंगिक पृष्ठ हैं तो बालक का सहज मनोवृत्ति चित्रण तथा नारी संवेदना का सरल रूपांकन भी है। 

         प्रकृति चित्रण के साथ एक माँ का भावनात्मक और समर्पित रूप उजागर किया गया है " माँ " कहानी में जिसमें वह पागल होते हुए भी अपने ममत्व को मुखरित किए हुए हैं। "साक्षी" कहानी में पुरातनी ढकोसलों का मुकाबला करती प्रगतिशील महिला का संघर्षमयी जीवन प्रस्तुत किया है जिसमें नारी मुक्ति, नारी संचेतना और अधिकारों की बात कही है। "तथापि" कहानी परिवार के उस अध्याय की कहानी है जिसमें पिता की मजबूरी और संतान की घुटन का मार्मिक चित्रण है। साथ ही संतान का अपने भविष्य के लिए अधिकार स्वरूप उठाया गया कदम माता-पिता को अपने कर्तव्य के प्रति सावचेत करता है। "बिलावल" सुन्दर प्रकृति बिम्ब से प्रारम्भ हुई कहानी में उदात्त प्रेम की भावना को बड़े भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया गया है। जिसमें सामाजिक ढकोसले की आवाज है, वहीं सांस्कृतिक गंध भी।  "ध्वस्त आसर" कहानी में वर्तमान के यथार्थ का खुला बयान है जिसमें संघर्ष की पराकाष्ठा तो है ही, जीवन मूल्यों की गंध भी फैली हुई है।  "लौट आओ " कहानी वतन से जुड़ाव के साथ माँ के द्वंद्व को दर्शाती है। 

           ' कैनवास के परे के कथा चित्र ' शीर्षित भूमिका में डॉ. प्रेमचंद विजयवर्गीय ने कहानीकार और कहानियों की सटीक विवेचना की है। वे लिखते हैं - " कहानीकार विजय जोशी की  प्रतिबद्धता  केवल कहानी और कथानक के साथ है । वे  वही लिखते हैं जो उन्होंने देखा, सुना या अनुभव किया है, इसी वजह से उनके लेखन में स्वतंत्रता, मौलिकता और सच्चाई है। उनकी खुली सजग आँखें कथा वस्तुओं और चरित्रों का चयन तुरन्त कर लेती हैं और उनकी प्रतिभा तथा रचना क्षमता उन्हें एक सजीव एवं सार्थक कहानी के रूप में सहज ही ढाल देती है। इस कारण उसके कथानक और पात्र हमें अपने आस-पास के, स्वाभाविक तथा विश्वसनीय लगते हैं। श्री जोशी  कल्पनाशीलता के एक सफल रचनात्मक साहित्यकार हैं। वे एक भावना प्रधान संवेदनशील व्यक्ति हैं, जो दूसरों की वेदना को समझते और अनुभव करते हैं और उनमें वह सृजनात्मक प्रतिभा है जो उन अनुभूतियों को रचना में रूपायित कर देती है। संवेदनशीलता के कारण ही उन्होंने अपनी इन कहानियों में दिखाया है कि सास-बहू के अपने-अपने कैक्ट्स क्या होते हैं और कैसे चुभते हैं, पति-पत्नी के बीच रिश्ते किस प्रकार रिसते रहते हैं, पति की ईष्या और अहम् से तिरस्कृत अपनी चित्रकला से आहत चित्रकार पत्नी स्वयं के अतीत, वर्तमान और आकांक्षित भविष्य को कैनवास पर पूर्णतः चित्रांकित करने का प्रयास करने पर भी किस प्रकार कैनवास के परे ही रह जाती है। कहानियों में जुड़ते-टूटते दाम्पत्य संबंध, नारी-मनोविज्ञान, पारिवारिक एवं सामाजिक समस्याएँ और सुधार, कलाकार स्त्री-पुरुष पात्रों के उगते पनपते, सफल-असफल, प्रणय-संबंध आदि आयाम है। नारी और पुरुष के संबंधों को लेकर लिखी गई कहानियों में आकर्षण है, प्रेम है तो तनाव और संघर्ष के दुष्परिणाम दिखाते हुए रिश्तों की वापसी भी दर्शाई है। 

    कैनवास के परे' अपनी अन्तर्वस्तु की दृष्टि से ही विशिष्टता सम्पन्न नहीं है, अपने शिल्प सौन्दर्य से भी अलंकृत है। इस शिल्प सौन्दर्य के अनेक आयाम हैं। इनमें से बिम्बात्मकता प्रमुख है। इनके साथ - साथ कहानियों की भाषा और शैली, प्रसंग, परिस्थिति और भाव स्थिति के अनुरूप कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जो उनके समकालीन युवा कहानीकारों में एक विशिष्ट पहचान बनाती हैं।"

       अन्य साहित्यकारों ने अपने- अपने मत में इस कहानी संग्रह की विशेषताओं को रेखांकित किया है। राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर द्वारा रामगंजमंडी महाविद्यालय में 29 जनवरी 2002 को केनवास के परे पर आयोजित पाठक मंच संगोष्ठी में प्रो. राधेश्याम मेहर ने कहा - " कहानीकार ने पहले कहानी संग्रह के बाद अपनी ख़ामोशी तोड़कर संभावनाओं को साकार किया है। इस संग्रह के पात्र दर्द की धड़कन को साकार करते हैं। मध्यमवर्गीय परिवार से लिए गए इन पात्रों में चरित्र के विविध पक्ष उजागर होते हैं तथा उनमें यथासंभव परिवर्तन भी दिखलाई पड़ता है। यह साधारण कथानक में असाधारण कथ्य पिरोने का प्रयास है।" यहीं पर  पत्रवाचक स्वाति शर्मा ने कहा - " विजय जोशी की कहानियां किसी वाद या आंदोलन से प्रतिबद्ध नहीं हैं। उनकी प्रतिबद्धता केवल कहानी के साथ है। यह कथन उनके सृजन का मूल मंत्र ही प्रतीत होता है। उनकी समस्त कहानियों।में नारी अपने तेवर के साथ पाठक मन को उद्वेलित करती हैं। संपूर्ण कथा - संकलन अपने परिवेश में जीवन के अनुभवों को समेट कर, जीवन के उत्सव ने छिपी विडंबनाओं को चित्रित करती है।" इसी प्रकार दूसरे पत्र वाचक चन्द्र प्रकाश मेघवाल ने कहा है - " इसमें ऐसे चित्र हैं जिनमें वर्तमान के सामाजिक जीवन, व्यक्तिगत सोच और पारिवारिक प्रश्न संवाद करते नजर आते हैं। जो मनुष्य  के संघर्ष के नए आयाम बन जाते हैं। ये कहानियाँ पाठक मन को गहरे तक प्रभावित करती है।"

        रेनबसेरा, अहमदाबाद, मार्च 2004 और वीणा, इंदौर,जून 2002 में  डॉ. रामचरण महेंद्र लिखते हैं - " लेखक कहीं भी उपदेशक के रूप में प्रकट नहीं होता है। प्रत्येक पात्र अपने परिवेश में जीता है। कहानियां  समाज में आती हुई नई जागृति की संदेश वाहक हैं। भाषा सौंदर्य के मोह में न पड़ कर लेखक ने प्रचलित भाषा का ही प्रयोग किया है। लेखक का अध्ययन और निरीक्षण अत्यंत सूक्ष्म है। कृति मौलिक साहित्य की अनुपम दें है, सभी वर्ग के पाठक इस साहित्य का रसपान कर सकते हैं।" वरिष्ठ साहित्यकार श्रीनंदन चतुर्वेदी लिखते हैं - " विजय जोशी का यह सृजन मौलिक और नवीन भावनाओं  से परिपूर्ण है। पात्र शालीन हैं संयम नहीं खोते। संघर्ष से सब कुछ पाने के आकांक्षी हैं।आशावादी हैं। कहानियां सहज - स्वाभाविक और प्रेरणास्पद लगती हैं।"

    इस कहानी संग्रह पर डॉ. दयाकृष्ण विजयवर्गीय ' विजय ' का यह कथन कि " सच में ये कहानियाँ मनोविश्लेषण प्रधान तथा जर्जर रूढ़ियों के विरुद्ध अभियान छेड़ती, आधुनिक भावबोध की जीवंत कथाएँ हैं। इन कथाओं का सौन्दर्य यही है कि कथाकार कथा को उस मोड़ पर लाकर छोड़ देता है जहाँ पाठक का मनोविज्ञान प्रारम्भ होता है। सभी कहानियाँ संघर्षपूर्ण लौकिक व्यवहारों का ऐसा प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करती है जो पाठक को उचित परिणाम सोचने को विवश कर देती है।" विजय जोशी को सफल कहानीकार के रूप दर्शाता है इसलिए की वे पाठक को जोड़ते हैं। उनमें पाठक अपने स्वयं को उपस्थित होता सा लगता है।

 

पुस्तक - केनवास के परे (कहानी संग्रह)

कहानीकार - विजय जोशी

प्रकाशक - साहित्यागार, जयपुर

प्रकाशन वर्ष - 2000

मूल्य - 75 रुपए

ISBN - 81 - 7711 - 076 - 0

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